डेस्क।कोरोना काल में लगातार दूसरे वर्ष भी गुरू पूर्णिमा पर्व पर शहर में रौनक नही दिखेंगी। आश्रम,मठों और मंदिरों में गुरू पर्व की तैयारियां चल रही है। साफ सफाई के साथ आश्रमों को सजाने संवारने का भी कार्य चल रहा हैं।
कोरोना काल के पहले गुरूपूर्णिमा पर्व पर पड़ाव स्थित भगवान अवधूत राम आश्रम, रवींद्रपुरी स्थित बाबा कीनाराम स्थली, क्रीं कुंड, गढ़वाघाट आश्रम में लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। इन आश्रमों में गुरु दर्शन के लिए पूर्व संध्या से ही शिष्यों और आस्थावानों के जत्थे पहुंचने लगते है। सर्वेश्वरी समूह आश्रम पड़ाव, संत मत अनुयायी आश्रम मठ गड़वाघाट, बाबा कीनाराम स्थली क्रीं कुंड समेत गुरु दरबारों के आसपास मेला भी सजता रहा हैै।
लेकिन इस वर्ष भी आश्रमों में चुनिंदा भक्त ही कोविड प्रोटोकाल का पालन कर पहुंच पायेंगे।
बताते चले,गुरू पुर्णिमा 24 जुलाई को है। माना जाता है कि महर्षि वेदव्यास ने ही पहली बार चारों वेदों का ज्ञान दिया था। इस लिए महर्षि व्यास को पहले गुरु की उपाधि दी गई है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाया जाता है। पूर्णिमा तिथि इस बार 23 जुलाई को सुबह 10 बजकर 43 मिनट से आरंभ होगी, जो कि 24 जुलाई की सुबह 08 बजकर 06 मिनट तक रहेगी।
ऐसे में उदया तिथि 24 जुलाई को गुरू पूर्णिमा का पर्व मनाया जायेगा। सनातन धर्म में मान्यता है कि पूर्णिमा तिथि को भगवान विष्णु की पूजा करने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। गुरु पूर्णिमा पर भक्त अपने गुरु का आदर सम्मान करते हैं और उन्हें यथा शक्ति गुरु दक्षिणा प्रदान कर कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं।
सनातन संस्था के गुरूराज प्रभु ने बताया कि गुरुपूर्णिमा गुरु पूजन का दिन है । गुरु पूर्णिमा का एक अनोखा महत्त्व भी है। अन्य दिनों की तुलना में इस तिथि पर गुरु तत्त्व सहस्र गुना कार्यरत रहता है । इसलिए इस दिन किसी भी व्यक्ति द्वारा जो कुछ भी अपनी साधना के रूप में किया जाता है, उसका फल भी उसे सहस्र गुना अधिक प्राप्त होता है।
गुरूराज प्रभु ने बताया कि गुरु स्वयं ही ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा महेश्वर हैं, वे ही परम ब्रह्म हैं। गुरु-शिष्य परंपरा हिन्दुओं की लाखों वर्षों की संस्कृति की अद्वितीय परंपरा है। राष्ट्र और धर्म पर जब संकट मंडरा रहा हो, तब सुव्यवस्था बनाने का महत्कार्य गुरु-शिष्यों ने किया है, यह गौरवशाली इतिहास भारत का है।
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन, आर्य चाणक्य ने सम्राट चंद्रगुप्त तथा समर्थ रामदास स्वामी ने छत्रपति शिवाजी महाराज के माध्यम से तत्कालीन दुष्प्रवृत्तियों का निर्मूलन किया तथा आदर्श धर्माधारित राज्यव्यवस्था की स्थापना की थी। ऐसी महान गुरु परंपरा की विरासत की रक्षा करने तथा श्री गुरु के चरणों में शरणागत भाव से कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है गुरुपूर्णिमा । गुरुपूर्णिमा के दिन गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने की परंपरा अनादि काल से चल रही है।
उन्होंने बताया कि गुरुपूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं, गुरुपूर्णिमा पर सर्वप्रथम व्यास पूजन किया जाता है।
एक वचन है – व्यासोच्छिष्टम् जगत् सर्वंम्। इसका अर्थ है, विश्वका ऐसा कोई विषय नहीं, जो महर्षि व्यास जी का उच्छिष्ट अथवा जूठन नहीं है अर्थात कोई भी विषय महर्षि व्यासजीद्वारा अनछुआ नहीं है। महर्षि व्यास ने चार वेदों का वर्गीकरण किया। उन्होंने अठारह पुराण, महाभारत इत्यादि ग्रंथोंकी रचना की है। महर्षि व्यास के कारण ही समस्त ज्ञान सर्व प्रथम हम तक पहुंच पाया। इसीलिए महर्षि व्यास को ‘आदिगुरु’ कहा जाता है । ऐसी मान्यता है कि उन्हीं से गुरु-शिष्य परंपरा आरंभ हुई। आद्य शंकराचार्य को भी महर्षि व्यास का अवतार मानते हैं।
कैसे मनाये गुरू पूर्णिमा
गुरूराज प्रभु ने बताया कि गुरु पूजन के लिए चौकी को पूर्व-पश्चिम दिशा में रखिए । जहां तक संभव हो, उसके लिए मेहराब अर्थात लघु मंडप बनाने के लिए केले के खंभे अथवा केले के पत्तों का प्रयोग कीजिए। गुरु की प्रतिमा की स्थापना करने के लिए लकड़ी से बने पूजाघर अथवा चौकी का उपयोग कीजिए। थर्माकोल का लघुमंडप न बनाइए। थर्माकोल सात्त्विक स्पंदन प्रक्षेपित नहीं करता। पूजन करते समय ऐसा भाव रखिए कि हमारे समक्ष प्रत्यक्ष सदगुरु विराजमान हैं। सर्वप्रथम श्री महागणपति का आवाहन कर देशकाल कथन किया जाता है।
श्री महागणपति का पूजन करने के साथ-साथ भगवान विष्णु को स्मरण किया जाता है। उसके उपरांत सदगुरु का अर्थात महर्षि व्यास का पूजन किया जाता है। उसके उपरांत आद्य शंकराचार्य का स्मरण कर अपने-अपने संप्रदायानुसार अपने गुरु के गुरु का पूजन किया जाता है। यहां पर प्रतिमा पूजन अथवा पादुका पूजन भी होता है । उसके उपरांत अपने गुरु का पूजन किया जाता है। उन्होंने बताया कि सुबह का समय पूजन के लिए उत्तम माना गया है। जिन्हें सवेरे पूजन करना संभव है, वे सवेरे का समय सुनिश्चित कर उस समय पूजन करें।
कुछ अपरिहार्य कारण से जिन्हें सवेरे पूजन करना संभव नहीं हो, वे सायंकाल का एक समय सुनिश्चित कर उस समय; परंतु सूर्यास्त से पहले अर्थात सायंकाल 07 बजे से पूर्व पूजन करें । जिन्हें निर्धारित समय में पूजन करना संभव नहीं है, वे अपनी सुविधा के अनुसार परंतु सूर्यास्त से पहले पूजन करें।