90 के दशक में राजस्थान के अजमेर शहर में देश के सबसे बड़े सेक्स कांड का घटना घटा। इस घटना को आधार बनाकर ‘अजमेर 92’ नामक एक फिल्म बनाई गई है। लेकिन मुस्लिम संगठनें इस फिल्म का विरोध कर रही हैं।
अजमेर शरीफ दरगाह कमेटी ने बताया है कि इस फिल्म के माध्यम से एक विशेष समुदाय को निशाना बनाने की कोशिश की गई है।
यदि इस फिल्म से अजमेर शरीफ दरगाह और ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की छवि को कोई नुकसान पहुंचाया जाता है, तो उन्होंने फिल्म निर्माताओं के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की धमकी दी है। पहले ही फिल्म की रिलीज से पहले दरगाह कमेटी को फिल्म दिखाने की मांग की गई है।
इस फिल्म के बारे में इंडिया मुस्लिम फाउंडेशन के मुखिया शोएब जमाई ने भी एक ट्वीट किया है। उन्होंने ट्वीट में कहा है, “अजमेर दरगाह कमेटी के सदर सैय्यद गुलाम किब्रिया और जनरल सेक्रेटरी सरवर चिश्ती के साथ खादिम कमेटी की मीटिंग के बाद आधिकारिक घोषणा की है कि फिल्म ‘अजमेर 92’ शहर में हुई एक अपराधिक घटना तक सीमित है, इसलिए हमें कोई समस्या नहीं है।
लेकिन अगर इस षड्यंत्र के तहत अजमेर शरीफ दरगाह और ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की छवि को कोई हानि पहुंचाई जाती है, तो हम कानूनी कार्रवाई करेंगे। साथ ही देश में शांतिपूर्ण विरोध होगा।”
दरगाह के खादिमों की संस्था, अंजुमन सैयद जागदान के जनरल सेक्रेटरी, सैयद सरवर चिश्ती ने फेसबुक पर एक वीडियो साझा की है जिसमें उन्होंने फिल्म के खिलाफ आपत्ति जताई है। उन्होंने ‘अजमेर 92’ को राजनीतिक हथकंडा बताया है।
उन्होंने कहा है कि कर्नाटक में चुनाव होने के समय ‘द केरल स्टोरी’ निर्मित की गई थी। अब राजस्थान में चुनाव होने के समय ‘अजमेर 92’ बनाई जा रही है। उन्होंने कहा है कि इस फिल्म पर प्रतिबंध लगाना चाहिए क्योंकि यह एक ही समुदाय को लक्ष्य बनाती है।
मौलाना महमूद मदनी, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख, ने भी इस फिल्म को लेकर यह कहा था कि यह फिल्म अजमेर शरीफ दरगाह को बदनाम करने की उद्देश्य से बनाई गई है। उन्होंने इस पर तत्काल प्रतिबंध लगाने की मांग की थी।
मदनी ने कहा था, “आपराधिक घटनाओं को मजहब से जोड़ने की बजाय इसके खिलाफ एकजुट कार्रवाई करने की जरूरत है। वर्तमान समय में समाज को विभाजित करने के बहाने खोजे जा रहे हैं। यह फिल्म समाज में दरार पैदा करेगी।”