सागर ज्योति शर्मा :-बेरोजगारी शब्द का अर्थ हम अपनी भाषा में ऐसे समझ सकते हैं कि किसी व्यक्ति द्वारा रोजगार की तलाश किए जाने पर भी उसे काम नहीं मिल पाता तो ऐसी अवस्था या स्थिति को बेरोजगारी कहा जा सकता है। इसे वर्ष के आंकड़े के हिसाब से बेरोजगारी दर के रूप में मापा जाता है। भारत में बेरोजगारी संबंधित जानकारी व आंकड़े राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय द्वारा बताए जाते हैं।
भारत में बेरोजगारी लंबे समय से एक अभिशाप के रूप में व्याप्त रही है। इसमें सुधार के लिए कई योजनाएं, विकास कार्यक्रमों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। हर सरकार अपने नागरिकों को विभिन्न प्रकार की सुविधाएं प्रदान करने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों की शुरूआत करती है। ये कार्यक्रम शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, रोजगार और सभी नागरिकों के सामाजिक उत्थान से संबंधित हो सकते हैं।
कुछ कार्यक्रम जैसे प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) और डिजिटल भारत कार्यक्रम आदि समाज के कमजोर वर्गों की मदद करने के लिए शुरू किये गए हैं । लेकिन फिर भी बेरोजगारी किसी भी देश के विकास की प्रमुख बाधाओं में से एक है।भारत में बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा है बेरोजगारी के कारणों में शिक्षा का अभाव, रोजगार के अवसरों की कमी और कुछ अन्य समस्याएं हैं।
बेरोजगारी की समस्या सिर्फ देश के आर्थिक विकास की बाधा नहीं बल्कि व्यक्तिगत व समाज की एक बड़ी समस्या है जो समाज पर नकारात्मक प्रभाव डालती है । अब एक बात यह भी देखने को मिलती है कि कुछ लोग रोजगार की तलाश करते हैं पर उन्हें रोजगार का अवसर नहीं मिल पाता और कुछ लोग स्वेच्छा से ही बेरोजगार रहते हैं।
भारत में बेरोजगारी की दर में निरंतर बढ़ोतरी एक बड़ी समस्या है जिस प्रकार भारत में जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। उसी प्रकार बेरोजगारी की समस्या भी निरंतर बढ़ रही है। भारत में वर्ष 2018 के आंकड़ों के अनुसार जनसंख्या 135.26 करोड़ थी उसी के हिसाब से भारत में बेरोजगारी की समस्या एक बहुत ही विकराल रूप को धारण किए हुए हैं और बेरोजगारी की समस्या आज ना सिर्फ भारत बल्कि विश्व भर की बड़ी समस्या है।
आज हमारे देश में बेरोजगारी की समस्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण वर्तमान समय का युवा वर्ग है। जिसके पास शिक्षा और डिग्रियां होते हुए भी आज उसे रोजगार की तलाश में भटकना पड़ता है। आज के युवा की निगाहें अखबार में नौकरियों के विज्ञापन ,दीवारों पर चिपके विज्ञापन, दफ्तरों के चक्कर , इंटरनेट के जरिए नौकरी खोजने में ही उनकी जिंदगी निकली जा रही है परंतु उन्हें रोजगार प्राप्त नहीं हो रहा है।
बड़ी-बड़ी डिग्रीधारी युवा को भी आज बेरोजगार के स्तर में रखा जा रहा है। बेरोजगारी के कारण युवा वर्ग तनावग्रस्त भी होते जा रहा है या कहा जा सकता है कि बेरोजगारी युवाओं में तनाव पैदा करने का जरिया बन रही है क्योंकि आज का युवा शिक्षा प्राप्त करके सुख सुविधाओं युक्त जीवन निर्वहन करना चाहता है परंतु जब उसका उद्देश्य पूर्ण नहीं हो पाता तो उसका मन असंतुष्ट रहता है तथा उसको शिक्षा से प्राप्त उपलब्धियां निरर्थक लगने लगते हैं जिसके कारण युवाओं में मानसिक तनाव बड़े पैमाने पर बढ़ता जा रहा है।
जिससे युवा नशे की लत, अकेलापन और खुदकुशी करने तक के कदम उठा लेते हैं। वर्तमान समय मे कोरोना वाइरस के कारण फैली महामारी से बेरोजगारी दर मे बढ़ोतरी के कारण ऐसी ही कई घटनाओं के बारे में सुनने को आया है। महामारी के कारण भारत में लॉकडाउन से सभी मॉल,रेस्टोरेंट, होटल, प्राइवेट संस्थान व फैक्ट्रियां, कारखाने बंद हो जाने से बेरोजगारी में बढ़ोतरी हुई है।
सीएमआईई रिपोर्ट के अनुसार सिर्फ़ रोज़गार नहीं गये। साथ ही बचत और संपत्ति रखने वाले बड़े उद्यमियों की हालत भी ख़राब है। इस वर्ग में 23 फ़ीसदी रोज़गार कम होने का अनुमान है। ये इसलिए महत्वपूर्ण है कि कोई भी व्यापारी या उद्यमियों तभी ख़ुद को बेरोज़गार बताता है जब उसे लगता है कि उसका धंधा पूरी तरह चौपट हो गया हो।
इससे ये भी पता चलता है कि सिर्फ़ नौकरी करने वालों पर ही नहीं, बल्कि व्यापार-धंधा करने वालों पर इस लॉकडाउन से बड़ी चोट लगी है। 2019-20 में बड़े उद्यमियों की औसत संख्या 7.8 करोड़ थी अप्रैल 2020 में वह घटकर 6 करोड़ रह गई। यानी 1.8 करोड़ लोगों का काम ख़त्म हो गया है।
भारत में बेरोजगारी के कारण में सबसे बड़ा कारण भारत की इतनी ज्यादा जनसंख्या का होना है जो हर वर्ष निरंतर बढ़ती जा रही है। उसी के साथ हर वर्ष बड़ी संख्या में नौकरियों की मांग भी बढ़ रही है साथ ही बेरोजगारी के कारणों में आर्थिक विकास मंदी, मशीनीकरण,शिक्षा और योग्यता में कमी तथा छोटे उद्योगों का बंद होना है।
भारत में बेरोजगार व्यक्तियों के वास्तविक आंकड़ों को रोजगार कार्यालय में अंकित लोगों के आधार पर भी निकाला जा सकता है। यदि हम बेरोजगारी के आंकड़े देखें तो पिछले कुछ साल में बेरोजगारी से संबंधित आंकड़े डरा देने वाले हैं जिसमें राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार 2017-18 में बेरोजगारी की दर पिछले 45 साल में सबसे अधिक रही इस रिपोर्ट के अनुसार 2017 में बेरोजगारी दर 6 फ़ीसदी थी जो की 1972-73 के बाद सबसे अधिक है। 2012 में बेरोजगारी दर 2.2 फीसदी थी। इस हिसाब से 5 साल में बेरोजगारी के आंकड़ों में 3 गुना बढ़ोतरी हुई है।
वही सीएमआईई की रिपोर्ट के अनुसार 2016 में नोटबंदी और 2017 में जीएसटी लागू होने के बाद 2018 में करीब 1.1 करोड़ लोगों को अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा है।
सीएमआईई के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल माह में मासिक बेरोजगारी दर में 23.52 प्रतिशत दर्ज की गई जबकि मार्च में यह 8.74% थी। इस रिपोर्ट के अनुसार शहरी इलाकों में बेरोजगारी ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक है ।सीएमआईई के सर्वे के अनुसार शहरी भारत में इस दौरान बेरोजगारी की दर 9 फ़ीसदी तक पहुंच गई यानी शहरों में बेरोजगारी राष्ट्रीय औसत से भी ज्यादा है। ग्रामीण भारत में इस दौरान बेरोजगारी 6.8 फीसदी रहे।
यह हाल तब है जब कुल बेरोजगारी में करीब 66 फ़ीसदी हिस्सा ग्रामीण भारत का है रिपोर्ट में बताया गया है कि शहरों में खासकर उच्च शिक्षित युवाओं में बेरोजगारी की दर बहुत ज्यादा है। रिपोर्ट के अनुसार 20 से 24 वर्ष के युवाओं में बेरोजगारी की दर 35 फ़ीसदी है और इनमें से ग्रैजुएट्स में बेरोजगारी की दर 60 फ़ीसदी तक पहुंच गई है। ग्रैजुएट्स में बेरोजगारी की औसत दर 2019 में 63.4 पहुंच गई थी ।
वर्ष 2020 में भारत की बेरोजगारी दर :-
कोरोना वायरस के कारण अर्थव्यवस्था पर तो बड़ी चोट पहुंची ही है साथ ही बेरोजगारी दर भी तेजी से बढ़ी है । कोरोनावायरस से फैली महामारी के कारण देश में लॉकडाउन किया गया । इस लॉकडाउन के कारण लाखों मजदूरों ने अपने गांवों की ओर पलायन किया । लॉकडाऊन के दौर में ठप्प पड़ी अर्थव्यवस्था की वजह से करोड़ों मज़दूरों और कर्मचारियों का रोज़गार छिन गया है।
लॉकडाउन के दौरान बेरोजगारी दर मई मे 27.1 प्रतिशत हो गयी है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) ने एक सर्वे रिपोर्ट जारी की जिसमें बेरोजगारी की दर में अच्छी-ख़ासी बढ़ोतरी बताई गयी है। 3 मई 2020 को ख़त्म हुए सप्ताह के दौरान बेरोजगारी दर पिछले महीने जारी आंकड़े के मुकाबले, 23.5 से बढ़कर 27.1 प्रतिशत तक पहुँच गयी ।
सीएमआईई की रिपोर्ट में बताया गया है कि सबसे अधिक 9.1 करोड़ छोटे व्यापारियों और दिहाड़ी मजदूरों का रोजगार छिन गया । रिपोर्ट के मुताबिक मई के इस सर्वे के डेटा को देखने से ये भी पता चलता है कि ये बेरोजगारी दर आगे और भी बढ़ सकती है।
2019-20 के दौरान रोजगार का कुल औसत 40.4 करोड़ था जो अप्रैल 2020 में करीब 30 प्रतिशत की गिरावट के साथ 28.2 करोड़ पर आ गया है। जिसका मतलब करीब 12.2 करोड़ रोजगार कम हो गए।
सीएमआईई का अनुमान है कि अप्रैल में दिहाड़ी मजदूर और छोटे कारोबारी सबसे ज्यादा बेरोजगार हुए हैं। सर्वे के अनुसार 12 करोड़ से ज्यादा लोगों को नौकरी गंवानी पड़ी । इनमें फेरीवाले, सड़क के किनारे सामान बेचने वाले, निर्माण उद्योग में काम करने वाले मजदूर और कई लोग हैं जो रिक्शा, ठेला चलकर गुजारा करते थे।
सीएमआईई आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल के अंत में दक्षिण भारत में पुदुचेरी में सबसे अधिक 75.8 फीसदी बेरोजगारी थी। इसके बाद पड़ोसी राज्य तमिलनाडु में 49.8 प्रतिशत, झारखंड में 47.1 फीसदी और बिहार में 46.6 फीसदी बेरोजगारी थी। सीएमआईई के मुताबिक महाराष्ट्र में बेरोजगारी दर 20.9 फीसदी थी, जबकि हरियाणा में 43.2 फीसदी, उत्तर प्रदेश में 21.5 फीसदी और कर्नाटक में 29.8 फीसदी थी।
सीएमआईई की रिपोर्ट में कहा गया ,कि जून मे शहरी बेरोजगारी दर पूर्व-लॉकडाउन स्तरों से अधिक थी । लेकिन ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी घटी है। मनरेगा और खरीफ सीजन की बुआई जारी होने से गांवों में लोगों को रोजगार मिला । 21 जून को सप्ताह की सीएमआईई रिपोर्ट में बेरोजगारी दर गिर कर 8 . 5 फीसदी पर आ गई। जबकि अप्रैल और मई में बेरोजगारी दर 23.5 फ़ीसदी के साथ उच्च स्तर पर आ गई थी ।
लॉकडाउन के दौरान आर्थिक गतिविधियां ठप हो गई थी जिसके कारण लोगों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा था । जब से लॉकडाउन खुला है , तब से परिस्थितियों में बदलाव देखने को मिल रहा है। दिसम्बर 2020 में जहा देश में बेरोजगारी दर 9.06 फीसदी थी।वह जनवरी 2021 में 6.5 फीसदी पर आ गई है।
इस प्रकार वर्ष 2021 आते ही कुछ लोगो को रोजगार तो मिला है परतु फिर भी बहुत बड़ा आंकड़ा है जो अभी भी बेरोजगार है इसलिए यह चिंतनीय विषय है ।