नई दिल्ली। कोरोना काल में देश के छोटे व मझोले उद्यमों की माली हालत काफी खराब हुई है। माना जा रहा है कि इस श्रेणी के लाखों उपक्रमों के लिए दिवालिया प्रक्रिया शुरू करनी पड़ सकती है। इस समस्या को देखते हुए सरकार ने एक नया तरीका पेश किया है। इसके तहत जो सूक्ष्म, लघु व मझोली औद्योगिक इकाइयां (एमएसएमई) एक करोड़ रुपये तक के बैं¨कग कर्ज का भुगतान नहीं कर पा रही हैं, उनके लिए पहले से स्वीकृत दिवालिया प्रक्रिया (प्री पैकेज्ड इंसॉल्वेंसी प्लान) लागू की जाएगी। इससे फायदा यह होगा कि मौजूदा दिवालिया कानून के तहत ही इन छोटी इकाइयों पर बकाए कर्ज के भुगतान का मामला बहुत ही कम लागत में और कम समय में सुलझा दिया जाएगा।
बैंकों व वित्तीय देनदारों के लिए भी यह काफी सहूलियत वाला होगा क्योंकि कम समय में कर्ज का निपटारा हो जाएगा। इस नए फ्रेमवर्क को लागू करने के लिए इंसॉल्वेंसी एंड बैंक्रप्सी कोड (आइबीसी) में संशोधन के लिए सरकार ने रविवार को आवश्यक अधिसूचना जारी कर दी है।केंद्र सरकार ने पिछले साल कोरोना की शुरुआत के बाद एक समिति गठित की थी। इसका उद्देश्य बकाए कर्जे का भुगतान नहीं होने की स्थिति में एमएसएमई के लिए ऐसी व्यवस्था सुझाना था, जिससे दिवालिया प्रक्रिया आसानी से पूरी हो सके। इस समिति की सिफारिशों के आधार पर ही आइबीसी में एक नई धारा 54 सी जोड़ी गई है। इसमें सारी प्रक्रिया 120 दिनों के भीतर पूरी करने का प्रविधान है।
मौजूदा आइबीसी के मुकाबले इस प्रविधान के तहत दिवालिया प्रक्रिया में शामिल कंपनी या उपक्रम को एक बड़ी राहत यह दी जा रही है कि सामान्य तौर पर उनके प्रबंधन में कोई बदलाव नहीं होगा। आइबीसी के तहत दिवालिया प्रक्रिया शुरू होने पर कंपनी प्रबंधन के अधिकार जब्त कर लिए जाते हैं और कोर्ट की तरफ से नियुक्त प्रोफेशनल को प्रबंधन सौंप दिया जाता है। अभी अगर एमएसएमई चला रहे प्रबंधन के खिलाफ कोई धोखाधड़ी आदि की शिकायत आती है, तभी ऐसा किया जा सकेगा अन्यथा वह काम करता रहेगा। इससे कंपनी सामान्य तौर पर काम करती रहेगी।
एक अन्य बड़ा अंतर यह है कि इस प्रक्रिया में एमएमएमई ही अपने बकाए कर्जे के भुगतान के लिए प्लान दे सकते हैं। एमएसएमई के प्रवर्तकों की तरफ से दिए गए इस प्लान में यह साफ तौर पर बताना होगा कि कंपनी के प्रदर्शन को सुधारने के लिए वह आगे क्या-क्या करने जा रहे हैं और कर्ज को चुकाने का रास्ता क्या होगा। 60 फीसद क्रेडिटर्स (कर्ज देने वाले वित्तीय संस्थान या बैंक) की स्वीकृति के बाद प्लान को लागू किया जा सकता है। अगर कॉरपोरेट क्रेडिटर्स इसे मंजूर नहीं करते हैं, तो दूसरा प्लान मंगवाया जा सकता है।