Charlie Chaplin चार्ली चैपलिन, संकट में भी मुस्कुराहट साथ दिया करती थी

By SHUBHAM SHARMA

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Charlie Chaplin

सर चा‌र्ल्स स्पेंसर चैपलिन (Sir Charles Spencer Chaplin) को हम सभी चार्ली चैपलिन (Charlie Chaplin) के नाम से ज्यादा जानते हैं। फिल्म जगत में यह एक ऐसा नाम है, जिसे पर्दे पर देखनेभर से किसी के भी चेहरे पर बरबस मुस्कुराहट आ जाती है। 16 अप्रैल, 1889 को लंदन में जन्मे इस कॉमिक एक्टर और फिल्ममेकर ने पूरी जिंदगी लोगों को हंसाने में ही गुजार दी थी। वह मूक फिल्मों के बेहतरीन कलाकार थे। दुनियाभर में मशहूर इस कलाकार ने जिंदगी की त्रासदियों से भी हंसाने की कला को रुपहले पर्दे पर बखूबी उकेरा।

1940 में चार्ली ने हिटलर पर फिल्‍म द ग्रेट डिक्टेटर बनाई थी। इसमें उन्‍होंने स्‍वयं हिटलर का किरदार निभाया था। इस फिल्‍म के जरिए उन्‍होंने हिटलर को कॉमिक रूप में पेशकर वाहवाही बटोरी थी। फिल्‍म में हिटलर का मजाक बनाए जाने पर कुछ लोगों ने उनकी सराहना की थी, जबकि कुछ लोग उनके खिलाफ उतर आए थे। अपने शानदार अभिनय के जरिए लोगों को हंसने के लिए मजबूर करने वाले चार्ली को 1973 में अभिनय जगत के सबसे बड़े पुरस्‍कार यानी ऑस्‍कर अवार्ड से नवाजा गया। इसके अलावा भी उन्‍हें कई पुरस्‍कार दिए गए। 

88 साल की उम्र में उनका 25 दिसंबर 1977 को देहावसान हो गया, मगर अब भी उनकी बातें और जीवन को जीने की कला हमें मुसीबत में भी मुस्कुराने की वजह देती है। जब समूची दुनिया कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रही है, तब उनका जीवन दर्शन और भी प्रासंगिक हो जाता है। आइए उनके 131वें जन्मदिन पर कोरोना जैसी महामारी के बीच हम भी मुस्कुराएं और ख्यातिनाम लोगों से उनके बारे में कुछ जानें। 

सकारात्मकता की सीख

भोपाल के वरिष्‍ठ माइम आर्टिष्‍ट के मनोज नायर ने का कि चार्ली के अभिनय को देखें तो समझ में आता है कि वे हर हाल में सकारात्मक रुख रखते थे। चाहे जैसी परिस्थिति हों, हमें खुश रहना चाहिए और दूसरों को भी खुश रखना चाहिए। कोरोना संकट में भी हम भारतीयों ने कई सकारात्मक परिवर्तन देखे हैं। हम सीमित संसाधनों में काम चला ले रहे हैं। संकट का समय जरूर है, लेकिन यह भी कुछ अच्छे के लिए हो रहा है। यही सीख उनसे मिलती थी।

दर्द से भी बिखेरी हंसी

भोपाल के वरिष्‍ठ नाट्यकर्मी अशोक बुलानी ने कहा कि चार्ली का मानना था कि मेरा दर्द किसी के हंसने का कारण हो सकता है, लेकिन मेरी हंसी किसी के दर्द का सबब नहीं बननी चाहिए। कोरोना जैसी बीमारी के दौर में जीवन का यह बड़ा सूत्र है। ऐसी मुसीबत में भी चेहरे पर मुस्कुराहट रखिए। आप मुस्कुराएंगे तो दुनिया मुस्कुराएगी। 

हताशा का असर नहीं 

भोपाल के वरिष्‍ठ नाट्यकर्मी केजी त्रिवेदी ने कहा कि चार्ली का निजी जीवन बेहद उतार-चढ़ाव भरा रहा था। वे अपने जीवन से काफी हताश थे, लेकिन इसका असर उन्होंने अपने काम पर नहीं पड़ने दिया। उन्होंने अपने आप को हमेशा सामान्य रखा। यह भी कह सकते हैं कि उन्होंने निजी जीवन की परेशानियों को अभिनय में ताकत के रूप में इस्तेमाल किया। यह सिखाता है कि चाहे जो मजबूरी हो, हमारे काम पर असर नहीं पड़ना चाहिए। 

उनकी आत्मकथा पढ़नी चाहिए

वरिष्ठ रंगकर्मी और मप्र स्कूल ऑफ ड्रामा के पूर्व निदेशक संजय उपाध्याय ने कहा कि चार्ली अभिनय को एक पूर्ण विश्राम की स्थिति मानते थे। ऐसा करना हर किसी के बस की बात नहीं है। सभी को उनकी आत्मकथा पढ़नी चाहिए।  

चार्ली का यह था जीवन दर्शन 

– आप जिस दिन हंसते नहीं हैं, वह दिन बेकार हो जाता है। 

– मैं सिर्फ मसखरा बनकर जीना चाहता हूं। 

– मेरी जिंदगी में बेशुमार दिक्कतें हैं, मगर मेरे होंठ यह बात नहीं जानते। उन्हें तो केवल मुस्कुराना आता है। 

– हम लोग सोचते बहुत हैं, मगर महसूस बहुत कम करते हैं। 

– आईना मेरा सबसे अच्छा दोस्त है, क्योंकि जब मैं रोता हूं तो वह कभी नहीं हंसता।

– इस दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है, यहां तक कि मुश्किलें और मुसीबतें भी नहीं। 

-इंसान का असली चरित्र तभी सामने आता है, जब वह नशे में होता है। 

-मुझे बारिश में चलना पसंद है, क्योंकि उसमें कोई भी मेरे आंसू नहीं देख सकता। 

– पास से देखने पर जिंदगी ट्रेजडी लगती है और दूर से देखने पर कॉमेडी।

SHUBHAM SHARMA

Shubham Sharma is an Indian Journalist and Media personality. He is the Director of the Khabar Arena Media & Network Private Limited , an Indian media conglomerate, and founded Khabar Satta News Website in 2017.

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