लिखना कोई आसान काम नहीं है, यह सिर्फ लिखने वाले ही समझ सकते हैं। सिर्फ लिखना ही क्यों,कोई भी पेशा कोई भी काम आसान नहीं है। हम अपना मनचाहा तो किसी भी वक्त लिख सकते हैं, पर हर किसी के मन की चाहत को तुरंत काग़ज पर उतार पाना मुश्किल होता है। दिल करता है कि कलम उठाएं और बस लिखते चले जाएं – दो कविताँए ,चार कविताँए , 8 कविताँए…पर कभी-कभी यह संभव नहीं हो पाता।
क्या आपने कभी सुना है किसी डॉक्टर को डॉक्टर ब्लॉक हो गया हो। साइंटिस्ट को साइंटिस्ट ब्लॉक हुआ हो, लॉयर को लॉयर ब्लॉक हुआ हो??? नहीं ना!! सुनेगे भी कैसे??ऐसा कुछ होता ही नहीं है। फिर क्यों लेखन एकमात्र ऐसा पेशा है जहां काम करने की कठिनाई को एक विशेष नाम दे दिया गया है -“रायटर्स ब्लॉक” ।
परिचित होने वाली यह मुश्किल इस विशेष नाम के कारण हम सभी को अपरिचित सी लगती है। मैं नहीं मानती कि राइटर ब्लॉक जैसी कोई चीज़ किसी भी लेखक के जीवन में होती है, ब्लॉक होते है तो उनके ‘विचार’। समस्या विचारों के ब्लॉक हो जाने की है जहां लेखक के विचारों का ब्लॉक हो जाना राइटर्स ब्लॉक के नाम से जाने जाना लगा है…
पहले मैं लिखने से डरती थी, क्योंकि मुझे लगता था कि पढ़कर लोग क्या सोचेंगे !!
पर अब मुझे डर नहीं लगता, क्योंकि मैं कुछ भी साबित करने के लिए नहीं लिखती ,मैं लिखती हूँ क्योंकि मैं चीजों को महसूस करती हूँ… “शायद औरों से कुछ ज्यादा “। हाँ, हो सकता है कि पढ़ने वाले की राय मुझसे ज़रा अलग हो पर विचारों का मतभेद तो कहीं भी हो सकता है। क्या भला हम सबकी राय कहीं ना कहीं दूसरे से अलग नहीं होती??
लिखना बात करने जैसा है…अगर आप लिखने से डरते हैं तो आप बात करने से भी डरेंगे। मेरे साथ ऐसा अक्सर होता है जब मेरे विचार जम जाते हैं , मुझे पता होता है कि वह हैं, पर उस वक्त उन्हें पिघलाकर कहानी की शक्ल देना नामुमकिन सा लगता है। इसे ही राइटर्स ब्लॉक कहा जाता है…
आमतौर पर विचार जमते भी नहीं है…दरअसल कुछ वक्त के लिए ढेरों विचार मस्तिष्क पर राज करने लगते हैं, जिसके चलते किसी एक विचार को कहानी का स्वरूप देना या काग़ज पर उतारना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में किसी भी विचार को कहानी में डालने की कोशिश करती हूँ तो खुद ही ब्लॉक हो जाती हुँ….
अपने विचारों को इस कैद से निकालने के लिए खुद को कुछ वक्त के लिए कलम और डायरी से भी दूर करना पड़ता है.. कभी टहलने निकल जाती हुँ ,अकेले बैठ गाने गुनगुनाती हुँ , पेंटिंग करती हूं, मेडिटेशन करती हूंँ, तो कभी भीड़ से दूर खुद के साथ वक्त बिताती हुँ। जो मन आता है वह कर अपने विचारों को आज़ाद करने की कोशिश करती हूँ… विचारों के ब्लॉक को अनब्लॉक करने के लिए :- अपने शब्दों को थोड़ा स्पेस दें…उन्हें काग़ज पर बिखरने के लिए न छोड़ दें, ‘बिखरे हुए शब्द मजबूरी का लेखन बन जाते हैं ‘.. उन्हें उभरने का वक्त दें…पिछले कुछ दिनों से मैं इस भ्रम में थी कि मुझे “राइटर ब्लॉक “हुआ है.. कुछ लिख नहीं पा रही थी। रोज़ अपनी डायरी और कलम लेकर बैठती और कहीं दूर विचारों में जम जाती। पर देखो !! राइटर ब्लॉक के बारे में ही लिख, मैंने अपने राइटर ब्लॉक के भ्रम को तोड़ दिया।
क्योंकि ब्लॉक राइटर नहीं ,वर्ड नहीं , उसके विचार होते हैं….!!