सिवनी, बरघाट: वर्षों से सहकारिता विभाग में चुनाव न होने की स्थिति ने व्यवस्थाओं को बुरी तरह प्रभावित किया है। सहकारी समितियों में चुने हुए प्रतिनिधियों के अभाव ने प्रशासकों को संचालन की बागडोर सौंप दी है। स्थिति यह है कि एक ही प्रशासक के अधीन एकाधिक समितियों का संचालन किया जा रहा है, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही दोनों पर प्रश्नचिन्ह लग गया है।
धारनाकला, आष्टा, लालपुर और खामी जैसी समितियों का संचालन एक ही प्रशासक दिलीप कुमार डहेरिया के हाथों में है। इन समितियों की कार्यप्रणाली का स्तर इस बात से आंका जा सकता है कि वित्तीय दस्तावेज़ों पर प्रशासक सड़कों पर खड़े होकर हस्ताक्षर कर देते हैं, जबकि नियम के अनुसार समिति कार्यालय में उपस्थित होकर निर्णय लेना चाहिए।
समिति प्रबंधकों पर निर्भर प्रशासक का कार्यशैली
यह भी सामने आया है कि समिति के दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर इस बात पर निर्भर करता है कि प्रबंधक, प्रशासक की सेवा में कितना तत्पर है। जो समिति प्रबंधक प्रशासक की सेवा करता है, उसके दस्तावेज़ों पर तत्काल हस्ताक्षर हो जाता है, चाहे वह सड़क हो, चौराहा हो या वाहन के अंदर। दूसरी ओर, जो प्रबंधक सेवा में अक्षम रहता है, उसे सिवनी बुलाकर कार्य करवाया जाता है।
इतना ही नहीं, सिवनी से समिति तक आने-जाने का भत्ता या खर्चा भी प्रशासक समिति प्रबंधक से वसूलने का प्रयास करते हैं, जबकि प्रशासक को सरकारी कर्मचारी होने के नाते यह सुविधा विभाग द्वारा मिलनी चाहिए। यह सब दर्शाता है कि समिति संचालन अब निजी संबंधों पर आधारित हो चला है, न कि नियमों और उत्तरदायित्वों पर।
प्रशासक की वित्तीय कार्यशैली और हस्ताक्षर प्रणाली पर प्रश्न
वर्तमान में समितियों के सभी वित्तीय दस्तावेजों, खाद्यान्न वितरण, बिल भुगतान, परमिट जारी करने आदि सभी प्रक्रियाओं में प्रशासक के हस्ताक्षर अनिवार्य हैं। लेकिन सवाल यह है कि जब एक प्रशासक चार समितियों का एक साथ संचालन करता है और वह भी एक स्थान धारनाकला से, तो शेष समितियों की पारदर्शिता कैसे सुनिश्चित होगी?
ऐसे में यह देखा गया है कि कई बार वाजिब बिलों पर तो आपत्ति जताई जाती है, लेकिन लाखों के भुगतान पर हस्ताक्षर कर दिए जाते हैं। यह असंतुलन दर्शाता है कि वित्तीय निर्णयों में भी नियमों की बजाय व्यक्तिगत समीकरणों का असर है।
लालपुर समिति में बारदाना घोटाले की निष्क्रिय जांच
लालपुर समिति में हुए लाखों रुपए के बारदाना घोटाले की जांच भी इसी प्रशासक द्वारा की गई थी। लेकिन जिला कलेक्टर के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद वसूली की कोई कार्रवाई नहीं की गई। इससे स्पष्ट होता है कि जांच प्रक्रिया महज औपचारिकता बनकर रह गई है। जनपद सदस्य लेखराम हरिनखेड़े ने भी इस संबंध में विभागीय अधिकारियों से शिकायत की, परंतु आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
यह भी स्पष्ट करता है कि उप पंजीयक सहकारिता जैसे अधिकारी भी राजनीतिक या पद के दबाव में कार्रवाई करने से बचते हैं। इस मामले में जिला प्रशासन की निष्क्रियता भी सामने आती है।
दैनिक वेतन भोगी को विक्रेता बनाना – नियमों की खुली अवहेलना
एक और गंभीर मामला यह है कि समिति में दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को राशन विक्रेता का कार्यभार सौंपा गया है। जबकि वर्ष पूर्व सहकारिता उपपंजीयक सिवनी द्वारा स्पष्ट निर्देश दिया गया था कि केवल पूर्णकालिक कर्मचारी ही विक्रेता बन सकते हैं।
यह सब तब हो रहा है जब समिति स्तर पर पहले ही 89 दिनी अनियमित नियुक्तियां की गई हैं, जिन पर स्थानीय युवाओं द्वारा गंभीर आरोप लगाए गए थे। यह संपूर्ण प्रक्रिया दर्शाती है कि समिति संचालन में नियमों की धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं और इसे रोकने वाला कोई नहीं है।
समिति प्रबंधन की स्थिति और किसान हितों की अनदेखी
जहां सहकारी समितियों का गठन किसानों के हित में सस्ती दरों पर खाद, बीज, ऋण, और अनाज वितरण के उद्देश्य से हुआ था, वहीं आज उनकी सुनवाई दूर-दूर तक नहीं होती। समिति संचालन प्रशासक के कार्यालय से दूर, कभी चौराहे पर, कभी सड़क पर, तो कभी सिवनी के किसी निजी ठिकाने से होता है।
प्रशासक को न तो समिति परिसर में नियमित रूप से उपस्थित देखा जाता है, न ही किसानों की समस्याओं को लेकर कोई गंभीरता दिखाई जाती है। परिणामस्वरूप, समितियों पर किसानों का विश्वास कम होता जा रहा है।
जवाबदेही और पारदर्शिता की मांग
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए अब यह आवश्यक है कि:
- सहकारिता विभाग में चुनाव शीघ्र कराए जाएं ताकि प्रतिनिधित्व बहाल हो।
- एक प्रशासक को एक से अधिक समितियों का प्रभार न दिया जाए।
- प्रशासकों को निर्देशित किया जाए कि वे नियमित रूप से संबंधित समिति कार्यालय में उपस्थित रहें।
- वित्तीय मामलों की निरपेक्ष जांच के लिए स्वतंत्र एजेंसी नियुक्त की जाए।
- समितियों में नियमित, पारदर्शी और योग्यता आधारित नियुक्तियां हों।
वर्तमान समय में सहकारिता विभाग में चल रही प्रशासक आधारित व्यवस्था ने समितियों की स्वायत्तता और पारदर्शिता दोनों को प्रभावित किया है। किसानों के हितों को सुरक्षित रखने और व्यवस्था में विश्वास बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि नियम आधारित संचालन, जवाबदेही और जवाबदेहीपूर्ण प्रशासन को तत्काल लागू किया जाए।
यदि सहकारिता को पुनः ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनाना है, तो चुनाव, नियम पालन और पारदर्शिता अनिवार्य हैं।