Shardiya Navratri 2020 2nd Day: नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है. मां ब्रह्मचारिणी की पूजा तप, शक्ति ,त्याग ,सदाचार, संयम और वैराग्य में वृद्धि करती है और शत्रुओं का नाश करती है.
माँ दुर्गा के 9 रूपों में से दूसरा रूप है ब्रह्मचारिणी −दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।। ब्रह्मचारिणी माँ की नवरात्र पर्व के दूसरे दिन पूजा-अर्चना की जाती है साधक इस दिन अपने मन को माँ के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल रहता है। यह जानकारी भविष्य पुराण से ली गई है
नवरात्रि की पूजा में मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है. मां दुर्गा की 9 शक्तियों के दूसरे स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी के दर्शन पूजन का विधान है. देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य रूप में होता है. देवी के दाहिने हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमंडल लिए श्वेत वस्त्र में देवी विराजमान होती हैं.
क्या है मां ब्रह्मचारिणी की कहानी ?
माता ब्रह्मचारिणी पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं. देवर्षि नारद जी के कहने पर उन्होंने भगवान शंकर की पत्नी बनने के लिए तपस्या की. इन्हें ब्रह्मा जी ने मन चाहा वरदान भी दिया. इसी तपस्या की वजह से इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा. इसके अलावा मान्यता है कि माता के इस रूप की पूजा करने से मन स्थिर रहता है और इच्छाएं पूरी होती हैं.
माता ब्रह्मचारिणी का स्वरूप
मां दुर्गा के दूसरे रूप ब्रह्मचारिणी माता के एक हाथ में जप की माला और दूसरे में कमंडल रहता है. वह किसी वाहन पर सवार नहीं होती बल्कि, पैदल धरती पर खड़ी रहती हैं. सिर पर मूकुट के अलावा इनका श्रृंगार कमल के फूलों से होता है. हाथों के कंगन, गले का हार, कानों के कुंडल और बाजूबंद सभी कुछ कमल के फूलों का होता है.
मां ब्रह्मचारिणी कथा
पौराणिक कथा के अनुसार पूर्वजन्म में मां ब्रह्मचारिणी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था. भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए बहुत कठिन तपस्या की. इसीलिए इन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया. मां ब्रह्मचारिणी ने एक हजार वर्ष तक फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया. इसके बाद मां ने कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप को सहन करती रहीं. टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं.
इससे भी जब भोले नाथ प्रसन्न नहीं हुए तो उन्होने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए और कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं. पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया. मां ब्रह्मचारणी कठिन तपस्या के कारण बहुत कमजोर हो हो गई. इस तपस्या को देख सभी देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने सरहाना की और मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद दिया.
मां ब्रह्मचारिणी पूजा विधि
मां ब्रह्मचारणी की पूजा में पुष्प, अक्षत, रोली, चंदन का प्रयोग किया जाता है. पूजन आरंभ करने से पूर्व मां ब्रह्मचारिणी को दूध, दही, शर्करा, घृत और शहदु से स्नान कराया जाता है. इसके उपरांत मां ब्रह्मचारणी को प्रसाद अर्पित करें. इस क्रिया का पूरा करने के बाद आचमन और फिर पान, सुपारी भेंट करनी चाहिए.इसके बाद ही स्थापित कलश, नवग्रह, दशदिक्पाल, नगर देवता और ग्राम देवता की पूजा करनी चाहिए.
मंगल ग्रह की अशुभता को दूर होती है
मां ब्रह्मचारणी की पूजा से मंगल ग्रह की अशुभता को दूर करने में मदद मिलती है. ऐसी मान्यता है कि मां ब्रह्मचारिणी मंगल ग्रह को नियंत्रित करती हैं. जिन लोगों की जन्म कुंडली में मंगल अशुभ है उन्हें मां ब्रह्मचारणी की पूजा करनी चाहिए.
Web Title : Navratri 2020 Second Day: Worship of Mother Brahmacharini will be done today