सिवनी शहर इन दिनों चर्चा का केंद्र बना हुआ है। विधायक दिनेश राय मुनमुन, सांसद भारती पारधी, तथा नगरपालिका परिषद सिवनी के अध्यक्ष शफीक खान एवं समस्त पार्षदगणों की भूमिका को लेकर आमजन के मन में कई सवाल उठ रहे हैं। यह खबर हम सबकी ओर से उस ज्वलंत विषय पर आधारित है, जो हर नागरिक के जीवन को प्रभावित करता है – पीने के पानी की समस्या, जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही, और विकास के नाम पर जनता से किए गए वादे।
सिवनी की वर्तमान स्थिति: पानी जैसी मूलभूत सुविधा भी बनी चुनौती
हर वर्ष ग्रीष्म ऋतु से पूर्व ही सिवनी में पानी की किल्लत का दौर शुरू हो जाता है, परंतु इस वर्ष विशेष बात यह रही कि अत्यधिक वर्षा के बावजूद शहरवासियों को पानी के लिए तरसना पड़ा। ऐसे में प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि जब जल का भंडारण पर्याप्त था, तो जनता तक उसकी पहुँच में कौनसी बाधा थी?
क्या सिवनी की जनता अपने ही चुने हुए नेताओं से ठगी गई?
जनप्रतिनिधि, जो जनता की सेवा और उनके हितों की रक्षा का वादा कर सत्ता में आते हैं, वही जब जनता को मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखते हैं, तो यह न केवल प्रशासनिक विफलता होती है बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था पर भी सवाल उठाता है। विधायक, सांसद, पार्षद और नगरपालिका अध्यक्ष, सभी ने जनता से वोट लिया, मगर जब जिम्मेदारी निभाने का समय आया तो परिणाम निराशाजनक रहे।
जनप्रतिनिधियों का आभार या व्यंग्य?
हाल ही में एक व्यंग्यात्मक पोस्ट के माध्यम से नेताओं का सामूहिक स्वागत करने की बात कही गई – “जय जय सिवनी, ऐसा नेता चुनोगे तो ऐसा ही फल पाओगे!”। यह वाक्य जनता के गुस्से और व्यथा को शब्द देता है। जब नारे, माला और स्वागत की जगह पानी की एक-एक बूंद के लिए जद्दोजहद करनी पड़े, तो स्वागत की जगह प्रशासन से सवाल पूछना अधिक उचित प्रतीत होता है।
शहर में जल प्रबंधन की वास्तविकता
सिवनी जैसे शहर में जहां कई जल स्त्रोत हैं, वहां यदि लोगों को गर्मी की शुरुआत में ही पानी खरीदना पड़े, तो यह स्थिति निंदनीय है। पेयजल आपूर्ति, टैंकर व्यवस्था, फिल्टर प्लांट की स्थिति, तथा नल कनेक्शन की नियमितता जैसे मुद्दों पर गहनता से विचार किया जाना चाहिए।
क्या नगरपालिका और जनप्रतिनिधियों ने योजना बनाई थी?
बारिश के पानी का संचयन, जल संरक्षण की पहल, तथा आगामी गर्मी के लिए जल आरक्षित रखने की रणनीति कहाँ थी? अगर योजना थी भी, तो क्या उसे जमीन पर लागू किया गया? ये प्रश्न जनमानस के बीच आज भी अनुत्तरित हैं।
लोकतंत्र में जनता की भूमिका और जवाबदेही
यह एक कटु सत्य है कि जनता ही अपने नेता चुनती है। और जब नेता अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरते, तो उसका दुखद परिणाम जनता को ही भुगतना पड़ता है। मगर इसका यह मतलब कतई नहीं कि जनता को चुप रहना चाहिए। लोकतंत्र में जनता की सबसे बड़ी ताकत उसकी आवाज होती है।
जनता को चाहिए सजगता और सक्रियता
हमें केवल चुनावों के समय नहीं, बल्कि हर समय नेताओं से सवाल पूछने की आदत डालनी होगी। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम काम न करने वाले प्रतिनिधियों का खुला विरोध करें और उनसे जवाब मांगें।
विकास के नाम पर छलावा या सच्चाई?
सड़कें, पानी, बिजली, सफाई, शिक्षा, स्वास्थ्य – यह सब मूलभूत अधिकार हैं। परंतु यदि इन सुविधाओं को पाने के लिए भी जनता को संघर्ष करना पड़े, तो यह विकास का झूठा प्रचार मात्र रह जाता है।
क्या सिवनी में केवल दिखावटी कार्य हुए हैं?
होर्डिंग, बैनर, स्वागत समारोह, इन सब में जनता का पैसा खर्च होता है। मगर क्या इनका असर जन जीवन की गुणवत्ता पर पड़ता है? अगर नहीं, तो यह विकास नहीं, बल्कि राजनैतिक नौटंकी है।
सिवनी की जनता को अब निर्णय लेना होगा
हमें तय करना होगा कि क्या हम बार-बार वही गलती दोहराएंगे, या अब जागरूक नागरिक बनकर जवाबदेही तय करेंगे। अगली बार जब कोई राजनीतिक दल वादा करे, तो उसे ठोस योजनाओं और समयसीमा के साथ मांगा जाए।
अब समय है जागरूक और सजग नागरिक बनने का
सिवनी की जनता को यह समझना होगा कि प्रतिनिधि उनके सेवक हैं, मालिक नहीं। यदि कोई नेता जनता के हितों की रक्षा नहीं करता, तो उसका बहिष्कार ही उचित उत्तर होगा। हमें यह तय करना होगा कि अगली बार जब कोई नेता पानी के नाम पर माला पहनने आए, तो उससे माला नहीं, काम का लेखा-जोखा माँगा जाए।