तेलंगाना के नागरकुरनूल जिले में श्रीशैलम लेफ्ट बैंक कैनाल (एसएलबीसी) सुरंग का एक हिस्सा ढहने से आठ लोगों के फंसे होने की खबर ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। यह घटना उस समय हुई जब सुरंग के निर्माण कार्य को फिर से शुरू किए जाने के महज चार दिन बाद अचानक छत का एक बड़ा हिस्सा गिर गया। इस हादसे के बाद से राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF), राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF), भारतीय सेना और अन्य एजेंसियों की टीमें लगातार बचाव कार्य में जुटी हुई हैं, लेकिन अब तक कोई सफलता नहीं मिली है।
तेलंगाना सुरंग दुर्घटना: क्या हुआ था?
यह दुर्घटना शनिवार सुबह नागरकुरनूल जिले के डोमलपेंटा इलाके में हुई, जब निर्माणाधीन सुरंग का तीन मीटर लंबा हिस्सा 14 किलोमीटर के निशान पर ढह गया। इस हादसे के वक्त कई मजदूर मौके पर मौजूद थे, जिनमें से कुछ तो बचने में सफल रहे, लेकिन आठ लोग अब भी सुरंग के भीतर फंसे हुए हैं।
फंसे हुए लोगों की पहचान
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जो आठ लोग अब भी सुरंग में फंसे हुए हैं, उनमें दो इंजीनियर, दो ऑपरेटर और चार मजदूर शामिल हैं। इनकी पहचान इस प्रकार है:
- गुरप्रीत सिंह (पंजाब)
- सनी सिंह (जम्मू-कश्मीर)
- मनोज कुमार (उत्तर प्रदेश)
- श्रीनिवास (उत्तर प्रदेश)
- संदीप साहू (झारखंड)
- जेगता जेस (झारखंड)
- संतोष साहू (झारखंड)
- अनुज साहू (झारखंड)
बचाव कार्य: अब तक क्या किया गया है?
घटना के बाद से ही राज्य और राष्ट्रीय स्तर की एजेंसियां बचाव अभियान में जुटी हुई हैं। रविवार को एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमों ने सुरंग में बचाव कार्य शुरू किया, लेकिन अब तक फंसे हुए श्रमिकों तक कोई सीधा संपर्क स्थापित नहीं हो पाया है। सोमवार तक बचाव कार्य और तेज कर दिया गया, जिसमें भारतीय सेना, नौसेना, सिंगरेनी कोलियरीज और अन्य एजेंसियों के लगभग 584 कुशल कर्मियों को तैनात किया गया है।
बचाव दलों ने गैस कटर और भारी मशीनरी का इस्तेमाल करके धातु की छड़ें काटने का काम तेज कर दिया है। हालांकि, सुरंग के अंदर जमा कीचड़ और मलबा बचाव कार्य में बड़ी बाधा बन रहा है, जिसके कारण अभी तक कोई बड़ी सफलता नहीं मिली है।
तेलंगाना सरकार का बहु-विभागीय प्रयास जारी
तेलंगाना सरकार इस घटना को लेकर बेहद गंभीर है। राज्य सरकार ने भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI), राष्ट्रीय भौगोलिक अनुसंधान संस्थान (NGRI) और एलएंडटी की एक ऑस्ट्रेलियाई इकाई के विशेषज्ञों को बुलाया है ताकि सुरंग की स्थिरता की जांच की जा सके और बचाव कार्य के लिए नए सुझाव दिए जा सकें।
मंत्री का बयान: बचने की संभावना बहुत कम
तेलंगाना के मंत्री जुपल्ली कृष्ण राव ने सोमवार को मीडिया से बातचीत में कहा कि फंसे हुए श्रमिकों के बचने की संभावना बहुत कम है। उन्होंने बताया कि सुरंग में लगभग 30 फीट तक कीचड़ और मलबा जमा हो चुका है, जिससे राहत कार्य और कठिन हो गया है।
उन्होंने कहा,
“हमने जब उनके नाम पुकारे, तो कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। इसलिए ऐसा लगता है कि उनके बचने की संभावना बेहद कम है। हम अपनी पूरी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन स्थिति बहुत चुनौतीपूर्ण बनी हुई है।”
चूहे खनिकों की टीम भी बचाव कार्य में शामिल
सरकार ने चूहे खनिकों (Rat Miners) की एक विशेष टीम को भी इस बचाव कार्य में शामिल किया है। ये वही विशेषज्ञ हैं, जिन्होंने 2023 में उत्तराखंड की सिल्क्यारा बेंड-बरकोट सुरंग में फंसे मजदूरों को बचाने में अहम भूमिका निभाई थी। इन विशेषज्ञों की मदद से सुरंग के भीतर छोटे-छोटे रास्ते बनाकर फंसे हुए लोगों तक पहुंचने की योजना बनाई गई है।
चार दिन बीत चुके हैं, अब भी अनिश्चितता बरकरार
घटना को चार दिन हो चुके हैं, लेकिन अभी तक बचाव दलों को कोई बड़ी सफलता नहीं मिली है। मंगलवार को भी टीमें लगातार काम कर रही हैं और विशेषज्ञों की मदद से नई रणनीति बनाई जा रही है।
नागरकुरनूल के जिला कलेक्टर बी संतोष ने कहा,
“अभी तक हम उनसे संपर्क नहीं कर पा रहे हैं। हम लगातार भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण और अन्य एजेंसियों की सलाह ले रहे हैं। लेकिन सुरंग के पिछले 40-50 मीटर हिस्से में हमें भारी अवरोधों का सामना करना पड़ रहा है।”
भविष्य की रणनीति: बचाव कार्य कैसे आगे बढ़ेगा?
तेलंगाना सरकार और बचाव दल अब तीन प्रमुख रणनीतियों पर काम कर रहे हैं:
- पानी निकालने का कार्य जारी रहेगा, ताकि सुरंग के अंदर जाने का मार्ग खुल सके।
- नई खुदाई तकनीकों का उपयोग करके सुरंग के दूसरे छोर से प्रवेश करने की योजना बनाई जा रही है।
- चूहे खनिकों की मदद से संकरी सुरंगें बनाई जाएंगी, जिससे बचाव दल फंसे हुए लोगों तक पहुंच सके।
तेलंगाना सुरंग हादसा: क्या इससे बचा जा सकता था?
इस दुर्घटना के बाद कई विशेषज्ञ सवाल उठा रहे हैं कि क्या इस हादसे को रोका जा सकता था? कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, इस सुरंग का निर्माण कार्य लंबे समय तक बंद रहा था और चार दिन पहले ही इसे दोबारा शुरू किया गया था। यह संभावना जताई जा रही है कि निर्माण सामग्री की गुणवत्ता और सुरक्षा उपायों में लापरवाही इस हादसे का कारण बन सकती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि सुरंग निर्माण से पहले मिट्टी की मजबूती और जल प्रवाह का उचित अध्ययन आवश्यक था। अगर पहले से संरचनात्मक जांच की गई होती, तो शायद यह हादसा टाला जा सकता था।
बचाव कार्य अभी भी जारी, उम्मीद की किरण क्षीण
तेलंगाना के नागरकुरनूल जिले में हुई यह दुर्घटना देश के सबसे बड़े सुरंग हादसों में से एक बन चुकी है। सरकार और बचाव दल चौबीसों घंटे कार्यरत हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस सफलता हाथ नहीं लगी है। फंसे हुए लोगों के परिजन और पूरे देश की जनता उम्मीद लगाए हुए है कि कोई चमत्कार हो जाए।
यह घटना सुरक्षा मानकों के पालन और बुनियादी ढांचे के निर्माण में सावधानी बरतने की जरूरत को उजागर करती है। भविष्य में ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने के लिए कड़े नियम और नियमित निरीक्षण की आवश्यकता है।