डेस्क।ट्रायल में 90.4% की एफेकसी के बाद भी अमेरिका में नोवावैक्स को फिलहाल स्वीकृति मिलना कठिन है। वहां के नियम घरेलू आवश्यकता को पूरा करने के बाद किसी और टीके को आपातकालीन उपयोग को स्वीकृति देने से रोकते हैं। ऐसे में यह वैक्सीन भारत में प्रमुखता से उपलब्ध हो सकती है।
पहले से ही कोरोना वैक्सीन का उत्पादन कर रही सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (SII) नोवावैक्स की मैनुफैक्चरिंग पार्टनर होगी।
अब विदेशों की ओर क्यों देख रही नोवावैक्स?
नोवावैक्स का अमेरिका और मेक्सिको में लगभग 30 हजार लोगों पर ट्रायल हुआ है। नतीजे फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन जैसे ही हैं। जॉनसन ऐंड जॉनसन के मुकाबले नोवावैक्स बेहतर वैक्सीन बताई जा रही है। हालांकि इसे अमेरिका में रेगुलेटरी अप्रूवल मिलने में देरी होगी।
वहां कई वैक्सीन आपातकालीन स्वीकृति के लिए लाइन में हैं। अमेरिकी कानून के अनुसार, एक बार घरेलू आवश्यकताओं के लिए पर्याप्त डोज उपलब्ध हो जाएं तो और टीकों को आपातकालीन स्वीकृति देने की आवश्यकता नहीं है।
सब-प्रोटीन पर आधारित दो डोज वाली इस वैक्सीन को बनाने के लिए अमेरिकी सरकार ने 1.6 बिलियन डॉलर की सहायता दी थी। ट्रायल्स में कुछ दिक्कतों और मैनुफैक्चरिंग में देरी का परिणाम यह हुआ कि कंपनी फाइजर और मॉडर्ना से पीछे रह गई।
इस साल आ सकती हैं 20 करोड़ डोज
न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट में नोवावैक्स के चीफ एक्जीक्यूटिव स्टैनले अर्क के माध्यम से कहा गया है कि वैक्सीन को पहले विदेश में स्वीकृति मिलने की संभावना है। कंपनी ने यूनाइटेड किंगडम, यूरोपियन यूनियन, कोरिया और भारत में अप्लाई किया है। भारत सरकार का अनुमान है कि सितंबर-दिसंबर के बीच नोवावैक्स की 20 करोड़ डोज उपलब्ध हो सकेंगी।
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नोवावैक्स की वैक्सीन का भारत में नाम ‘कोवावैक्स’ होगा। फिलहाल SII इस वैक्सीन का 18 साल से अधिक आयु के लोगों पर ट्रायल कर रही है। SII बच्चों पर भी ट्रायल करना चाहती है। जिस तरह की संभावनाएं बन रही हैं, ऐसे में नोवावैक्स की वैक्सीन को सबसे पहले भारत में इमर्जेंसी अप्रूवल मिल सकता है।
दो महीने बाद आ सकती है पहली खेप
एक अधिकारी ने कहा कि अगर रेगुलेटरी प्रक्रिया में कोई अड़चन नहीं आती तो कोवावैक्स की शुरुआती खेप अगस्त-सितंबर तक मिल सकती है।
अमेरिका की 50% से ज्यादा आबादी को कम से कम एक डोज लग चुकी है। ऐसे में वहां पर कोविड टीकों की मांग घटी है। 90+ एफेकसी वाली नोवावैक्स के लिए उन विकासशील देशों में नया बाजार बना है जो तेजी से अपनी जनता को टीका लगाना चाहते हैं।