GANGAUR POOJA 2025: गणगौर पूजन विधि और शुभ मुहूर्त एवं कथा- Gangaur Puja Vidhi, Shubh Muhurat, Katha

GANGAUR POOJA 2025: Gangaur worship method and auspicious time and story - Gangaur Puja Vidhi, Shubh Muhurat, Katha

SHUBHAM SHARMA
13 Min Read
GANGAUR POOJA 2025: गणगौर पूजन विधि और शुभ मुहूर्त एवं कथा- Gangaur Puja Vidhi, Shubh Muhurat, Katha

GANGAUR POOJA 2025: गणगौर पूजन विधि और शुभ मुहूर्त एवं कथा- GANGAUR PUJA VIDHI, SHUBH MUHURAT, KATHA :- गणगौर (GANGAUR) का त्योहार राजस्थान में तो बड़े धूम धाम से मनाया ही जाता है पर राजस्थान के साथ साथ मध्यप्रदेश में भी गणगौर (GANGAUR) का त्यौहार बड़े ही धूम- धाम से मनाया जाता है। गणगौर (GANGAUR) के त्यौहार की कुछ ख़ास बाते सबसे पहले आपको बताते है इस त्यौहार में महिलाएं पति की सलामती और लंबी उम्र  के लिए गणगौर (GANGAUR) का व्रत रखती हैं।

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गणगौर (GANGAUR) का त्योहार राजस्थान में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इसके अलावा, यह मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और गुजरात में भी विशेष रूप से मनाया जाता है। यह पर्व माता पार्वती और भगवान शिव के मिलन का प्रतीक माना जाता है। गणगौर व्रत मुख्य रूप से सौभाग्यवती स्त्रियों द्वारा अपने पति की लंबी आयु और सुखद वैवाहिक जीवन की कामना हेतु किया जाता है।

गणगौर (GANGAUR) का अर्थ है,’गण’ और ‘गौर’। गण का तात्पर्य है शिव और गौर का अर्थ है पार्वती। वास्तव में गणगौर पूजन (GANGAUR PUJAN) माँ पार्वती और भगवान शिव की पूजा का दिन है। शिव-पार्वती की पूजा का यह पावन पर्व आपसी स्नेह और साथ की कामना से जुड़ा हुआ है।

इसे शिव और गौरी की आराधना का मंगल उत्सव भी कहा जाता है। प्रत्येक वर्ष चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को गणगौर तीज (GANGAUR TEEJ) मनाई जाती है। इस दिन सुहागन महिलाएं सौभाग्यवती की कामना के लिए गणगौर माता (GANGAUR MAATA) यानि माता गौरा की पूजा करती हैं। इस बार गणगौर तीज (GANGAUR TEEJ) 31 मार्च 2025, शुक्रवार को मनाई जाएगी। 

GANGAUR POOJAN 2025 Shubh Muhurat / गणगौर पूजा 2025 शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, गणगौर तीज 2025 में 31 मार्च, शुक्रवार को मनाई जाएगी।

गणगौर 2025 की तिथि31 मार्च 2025
तृतीया तिथि प्रारंभ31 मार्च 2025, सुबह 9:11 मिनट
तृतीया तिथि समापन1 अप्रैल 2025, सुबह 5:42 मिनट
उदय तिथि के अनुसार व्रत 31 मार्च 2025

गणगौर पूजा का महत्व

पौराणिक मान्यता के अनुसार गणगौर तृतीया या तीज (GANGAUR TEEJ) का व्रत करने से माता गौरी सौभाग्यवती होने का वरदान देती हैं, इसलिए इस दिन को सौभाग्य तीज (TEEJ) के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन महिलाएं माता गौरी की पूजा करके गणगौर के गीत गाती हैं।

विवाहित स्त्रियां इस दिन व्रत और पूजन करके अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं। राजस्थान में गणगौर पर्व विवाह (GANGAUR VIVAAH) के बाद का बहुत महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। यह पर्व चैत्र मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से ही आरंभ हो जाता है और चैत्र माह की शुक्ल, तृतीया तक चलता है। नवविवाहित महिलाएं प्रतिपदा से तृतीया तक तीनों दिन गणगौर माता (GANGAUR MATA KI POOJA) की पूजा करती हैं।

गणगौर पूजा विधि (GANGAUR POOJA VIDHI)

  • गणगौर तृतीया के दिन किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करने के बाद लाल रंग के वस्त्रों को धारण करना चाहिए।
  • अब एक चौकी को गंगाजल से शुद्ध करके लाल रंग का आसन बिछाएं।
  • चौकी पर एक तरफ जल से भरा हुआ कलश रखें। 
  • कलश में  गंगाजल, सुपारी, हल्दी, चावल और एक रूपये का सिक्का डालें और उसके मुख पर कलावा बांधे।
  • कलश में आम के पत्ते लगाकर उसके ऊपर मौली बांधकर नारियल रख दें।
  • इसके बाद चौकी पर माता गौरा और भगवान शिव की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करें। 
  • अब घी की दीपक प्रज्वलित करें।
  • हाथों में फूल और पूजा की सुपारी लें और व्रत का संकल्प करने के पश्चात उसे अर्पित कर दें।
  • इसके बाद मिट्टी या फिर बेसन से छः गौर बनाएं और इनपर हल्दी एवं कुमकुम लगाएं।
  • माता गौरी को सिंदूर, अक्षत पुष्प अर्पित करके थोड़ा सा सिंदूर अपने माथे पर लगाएं।
  • इसके बाद माता गौरा और भगवान शिव को फल मिष्ठान आदि चीजों का भोग अर्पित करें। 
  • एक कागज लेकर उसके ऊपर 16 मेहंदी, 16 कुमकुम और 16 काजल की बिंदी लगाएं और माता को अर्पित कर दें।

पूजा पूर्ण होने के बाद एक कटोरी में जल और दूध, एक सिक्का, कौड़ी और सुपारी डालकर उसे अपने हाथ में रखकर माता गौरी की कथा सुनें। कथा पूर्ण होने पर कटोरी को माता गौरी के समक्ष रख दें और उनसे अखंड सौभाग्यवती की प्रार्थना करें। पूजा के बाद अर्पित किया गया प्रसाद लोगों में बांटे।

स्नान और वस्त्र धारण

  • प्रातः काल स्नान करके लाल, पीले या हरे रंग के वस्त्र धारण करें।
  • सुहागिन स्त्रियां सिंदूर, चूड़ियां और बिंदी लगाकर संपूर्ण श्रृंगार करती हैं।

पूजन स्थल की तैयारी

  • किसी पवित्र स्थान पर गंगाजल छिड़ककर एक चौकी रखें।
  • चौकी पर माता गौरी और भगवान शिव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  • मिट्टी से गौरा-गणेश की प्रतिमा बनाकर उन्हें सजाया जाता है।
  • एक कलश में गंगाजल, सुपारी, हल्दी, चावल और सिक्का डालकर उसके मुख पर नारियल रखें।

पूजन और अर्पण विधि

  • गणगौर माता को हल्दी, कुमकुम, चावल और फूल अर्पित करें।
  • सोलह मेहंदी, सोलह कुमकुम और सोलह काजल की बिंदियां बनाकर माता को समर्पित करें।
  • घी का दीपक जलाकर शुद्ध घी और गुड़ का भोग लगाएं।
  • पूजा के बाद गणगौर की कथा सुनें और परिवार के सभी सदस्यों में प्रसाद बांटें।

गणगौर तीज व्रत कथा / गणगौर व्रत कथा / GANGAUR TEEJ VRAT KATHA

एक बार भगवान शिव तथा माता पार्वती, नारदजी के साथ भ्रमण को निकले। चलते-चलते वे एक गाँव में पहुँच गए। उनके आगमन का समाचार सुनकर गांव की श्रेष्ठ कुलीन स्त्रियाँ उनके स्वागत के लिए स्वादिष्ट भोजन बनाने लगी। भोजन बनाते-बनाते उन्हें काफी विलंब हो गया। तब तक साधारण कुल की स्त्रियां श्रेष्ठ कुल की स्त्रियों से पहले ही थालियों में हल्दी तथा अक्षत लेकर पूजन हेतु पहुंच गई।

पार्वतीजी ने उनके पूजा भाव को स्वीकार करके सारा सुहाग रस उन पर छिड़क दिया जिससे वे सभी स्त्रियां अखंड सुहाग का वर प्राप्त करके वापस आई। तत्पश्चात उच्च कुल की स्त्रियां भी अनेक प्रकार के पकवान लेकर माता गौरा और भगवान शिव की पूजा करने के लिए पहुंच गई। तब भगवान शिव नें माता पार्वती से कहा कि सारा सुहाग रस तो तुमने साधारण कुल की स्त्रियों को ही दे दिया। अब इन्हें क्या दोगी?

तब पार्वतीजी ने उत्तर दिया- ‘प्राणनाथ! आप इसकी चिंता मत कीजिए। उन स्त्रियों को मैंने केवल ऊपरी पदार्थों से बना रस दिया है। इसलिए उनका रस धोती से रहेगा। परंतु मैं इन उच्च कुल की स्त्रियों को अपनी उंगली चीरकर अपने रक्त का सुहाग रस दूंगी।

यह सुहाग रस जिसके भाग्य में पड़ेगा, वे मेरे ही समान सौभाग्यवती हो जाएगीं। जब सभी स्त्रियों का पूजन पूर्ण हो गया, तब पार्वती जी ने अपनी उंगली चीरकर उन पर छिड़क दी। जिस पर जैसा छींटा पड़ा, उसने वैसा ही सुहाग पा लिया। 

तत्पश्चात भगवान शिव की आज्ञा लेकर पार्वतीजी नदी तट पर स्नान करने चली गई और बालू से भगवान शिव की प्रतिमा बनाकर पूजन करने लगी। पूजन के बाद बालू के पकवान बनाकर शिवजी को भोग लगाया। प्रदक्षिणा करके नदी तट की मिट्टी से माथे पर तिलक लगाकर दो कण बालू का भोग लगाया।

इसके बाद उस पार्थिव लिंग से भगवान शिव प्रकट हुए और माता पार्वती को वरदान दिया की जो कोई भी इस दिन पूजन और व्रत करेगा उसका पति चिरंजीवी होगा। यह सब करते-करते पार्वती जी को काफी समय लग गया। जब वे वापस उस स्थान पर आई जहां शिव जी और नारद जी को छोड़कर गई थी। 

शिव जी ने पार्वती जी से देर से आने का कारण पूछा। तो माता पार्वती ने कहा की वहां पर मेर भाई भाभी आदि पीहर के लोग मिलने आए थे, उन्हीं से बाते करने में विलंब हो गया। उन्होंने मुझ दूध भात खाने को दिया। भगवान शिव को भलिभांति सब ज्ञात था। तब दूध भात खाने के लिए शिव जी भी नदी की तट की ओर चल दिए।

माता पार्वती ने मन ही मन भोलेशंकर से ही प्रार्थना की। कि है प्रभु यदि मैं आपकी अनन्य दासी हूँ तो आप इस समय मेरी लाज रखिए। उन्हें दूर नदी के तट पर माया का महल दिखाई दिया। उस महल के भीतर पहुँचकर वे देखती हैं कि वहाँ शिवजी के साले तथा सलहज आदि सपरिवार उपस्थित हैं।

उन्होंने गौरी तथा भगवान शंकर का भाव-भीना स्वागत किया। वे दो दिनों तक वहाँ रहे। जब तीसरा दिन आया तो पार्वती जी ने शिव जी से चलने के लिए कहा, पर शिवजी तैयार न हुए। वे अभी यहीं रूकना चाहते थे। तब पार्वती जी रूठकर अकेली ही चल दी। ऐसे में शिव जी को पार्वती जी के साथ चलना पड़ा। नारदजी भी साथ-साथ चल दिए। चलते-चलते वे बहुत दूर निकल आए। उस समय संंध्या होने वाली थी।

भगवान सूर्य पश्चिम की ओर जा रहे थे। तभी अचानक भगवान शंकर पार्वतीजी से बोले कि मैं तुम्हारे मायके में अपनी माला भूल आया हूं।

भगवान शिव की बात सुनकर पार्वती जी ने कहा कि ठीक है, मैं ले आती हूँ, परंतु भगवान ने उन्हें जाने की आज्ञा न दी और इस कार्य के लिए नारद जी को वहां भेज दिया। जब नारद जी वहां पहुंचते है तो देखते हैं कि चारो ओर जंगल ही जंगल है और वहां कोई महल नहीं है।

तब वे मन ही मन विचार करते हैं कि कही मैं रास्ता तो नहीं भटक गया कि तभी बिजली चमकती है और नारदजी को शिवजी की माला एक पेड़ पर टंगी हुई दिखाई देती है। तब वे माला लेकर शिव जी के पास पहुंचते हैं और सारा हाल कह सुनाते हैं।

तब शिवजी ने हंसकर कहा- ‘नारद! यह सब पार्वती की ही लीला है। इस पर माता पार्वती बोली- ‘मैं किस योग्य हूं। ये सब तो आपकी ही कृपा है। तब नारदजी ने सिर झुकाकर कहा- ‘माता! आप पतिव्रताओं में सर्वश्रेष्ठ हैं।

यह सब आपके पतिव्रत का ही प्रभाव है, और इस तरह से नारद जी ने मुक्त कंठ से माता पार्वती की प्रशंसा करते हुए कहा, मैं आशीर्वाद रूप में कहता हूं कि जो स्त्रियां इसी तरह गुप्त रूप से पति का पूजन करके मंगलकामना करेंगी, उन्हें महादेवजी की कृपा से दीर्घायु वाले पति का संसर्ग मिलेगा, इसलिए गणगौर पर माता पार्वती और भगवान शिव की पूजन किया जाता है।

गणगौर तीज 2025: विशेष परंपराएं

  • कच्चा भोजन: व्रतधारी महिलाएं गणगौर व्रत के दिन केवल फल, दूध या कच्चा भोजन ग्रहण करती हैं।
  • सजावट और गीत: महिलाएं गणगौर के पारंपरिक लोकगीत गाती हैं और हाथों में मेंहदी लगाती हैं।
  • शोभायात्रा: राजस्थान में गणगौर पर्व पर विशेष झांकियां और शोभायात्राएं निकाली जाती हैं।

गणगौर तीज का समापन

गणगौर तीज का समापन व्रत खोलने और माता गौरी की प्रतिमा विसर्जन के साथ किया जाता है। इस दौरान महिलाएं जलाशय या नदी के किनारे जाकर गणगौर माता का विसर्जन करती हैं और सौभाग्य एवं सुख-समृद्धि की प्रार्थना करती हैं।

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Shubham Sharma – Indian Journalist & Media Personality | Shubham Sharma is a renowned Indian journalist and media personality. He is the Director of Khabar Arena Media & Network Pvt. Ltd. and the Founder of Khabar Satta, a leading news website established in 2017. With extensive experience in digital journalism, he has made a significant impact in the Indian media industry.
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