मेजर ध्यानचंद जयंती: जब हॉकी स्टिक तोड़ कर करनी पड़ी थी जांच कि कहीं इसमें चुंबक तो नहीं

By SHUBHAM SHARMA

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rashtreey khel diwas

नई दिल्ली । हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद अपने खेल से न सिर्फ पूरी दुनिया में चर्चित हैं, वरन वह खिलाड़ियों के लिए भगवान की तरह हैं।

ध्यानचंद की महानता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह सबके लिए आश्चर्य का विषय रहता था कि वे दूसरे खिलाड़ियों की अपेक्षा इतने गोल कैसे कर लेते थे।

इसके लिए उनकी हॉकी स्टिक को ही तोड़ कर जांचा भी गया। नीदरलैंड्स में ध्यानचंद की हॉकी स्टिक तोड़कर यह चेक किया गया था कि कहीं इसमें चुंबक तो नहीं लगा।

भारत के इस महान सपूत को शासन ने 1956 में ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया। उनका जन्मदिवस 29 अगस्त भारत में ‘खेल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

मेजर ध्यानचंद ने 1928, 1932 और 1936 ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। तीनों ही बार भारत ने ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीता।

1928 में एम्सटर्डम में हुए ओलंपिक खेलों में वह भारत की ओर से सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी रहे। उस टूर्नामेंट में ध्यान चंद ने 14 गोल किए थे। एम्सटर्डम के एक स्थानीय समाचार पत्र में लिखा था, ‘यह हॉकी नहीं बल्कि जादू था, और ध्यानचंद हॉकी के जादूगर हैं।’

इसके बाद 1932 में लॉस एंजेल्स में खेले गए ओलंपिक में भी भारतीय टीम ने शानदार प्रदर्शन किया प्रतियोगिता के फाइनल में भारत ने अमेरिका को 24-1 से हराया था। इसमें 10 गोल अकेले मेजर ध्यानचंद ने ही दागे थे। इसके बाद 1936 के बर्लिन ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम की कमान मेजर ध्यानचंद के हाथ में ही थी। फाइनल मैच में भारत ने उस दौर की दुनिया की सबसे सशक्त टीम जर्मनी को 8-1 से हराकर विश्व पटल पर भारत का परचम फहराया था।

मेजर ध्यानचन्द का जन्म प्रयाग, उत्तर प्रदेश में 29 अगस्त, 1905 को हुआ था। उनके पिता सेना में सूबेदार थे। उन्होंने 16 साल की अवस्था में ध्यानचन्द को भी सेना में भर्ती करा दिया। वहाँ वे कुश्ती में बहुत रुचि लेते थे परन्तु सूबेदार मेजर बाले तिवारी ने उन्हें हॉकी के लिए प्रेरित किया। इसके बाद तो वे और हॉकी एक दूसरे के पर्याय बन गये।

वे कुछ दिन बाद ही अपनी रेजिमेंट की टीम में चुन लिये गये। उनका मूल नाम ध्यानसिंह था। वे प्रायः चाँदनी रात में अकेले घण्टों तक हॉकी का अभ्यास करते रहते थे। इससे उनके साथी तथा सेना के अधिकारी उन्हें ‘चाँद’ कहने लगे। फिर तो यह उनके नाम के साथ ऐसा जुड़ा कि वे ध्यानसिंह से ध्यानचन्द हो गये। आगे चलकर वे ‘दद्दा’ ध्यानचन्द कहलाने लगे।

चार साल तक ध्यानचन्द अपनी रेजिमेण्ट की टीम में रहे। 1926 में वे सेना एकादश और फिर राष्ट्रीय टीम में चुन लिये गये। इसी साल भारतीय टीम ने न्यूजीलैण्ड का दौरा किया। इस दौरे में पूरे विश्व ने उनकी अद्भुत प्रतिभा को देखा। गेंद उनके पास आने के बाद फिर किसी अन्य खिलाड़ी तक नहीं जा पाती थी। कई बार उनकी हॉकी की जाँच की गयी कि उसमें गोंद तो नहीं लगी है। अनेक बार खेल के बीच में उनकी हॉकी बदली गयी पर वे तो अभ्यास के धनी थे। वे उल्टी हॉकी से भी उसी कुशलता से खेल लेते थे। इसीलिए उन्हें लोग हॉकी का ‘जादूगर’ कहते थे।

1926 से 1948 तक ध्यानचन्द दुनिया में जहाँ भी हॉकी खेलने गये, वहां दर्शक उनकी कलाइयों का चमत्कार देखने के लिए उमड़ आते थे। ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना के एक स्टेडियम में उनकी प्रतिमा ही स्थापित कर दी गयी। 42 वर्ष की अवस्था में उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय हॉकी से संन्यास ले लिया। कुछ समय वे राष्ट्रीय खेल संस्थान में हॉकी के प्रशिक्षक भी रहे। 3 दिसम्बर, 1979 को उनका देहान्त हुआ।

SHUBHAM SHARMA

Shubham Sharma is an Indian Journalist and Media personality. He is the Director of the Khabar Arena Media & Network Private Limited , an Indian media conglomerate, and founded Khabar Satta News Website in 2017.

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