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भारतीय पर्व-परम्पराओं का सबसे महत्वपूर्ण अंग है गौ-वंश

By SHUBHAM SHARMA

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भारतीय पर्व-परम्पराओं का सबसे महत्वपूर्ण अंग है गौ-वंश

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भारतीय सनातनी, हिन्दू परिवारों में होने वाले छोटे से छोटे आनुष्ठानिक कार्यों से लेकर बड़े से बड़े आयोजनों में गाय के पूजन से लेकर उसके सभी उत्पाद जैसे दूध, दही, घृत, गोबर, गौ-मूत्र (पञ्चगव्य) की उपयोगिता अनिवार्य सुनिश्चित की गई है।

हिन्दू घरों में प्रतिदिन चूल्हे पर बनने वाली प्रथम रोटी को गाय की रोटी माना गया है, इसे ही हम “गौ-ग्रास” कहते हैं। प्रातःकाल उठ कर हिन्दू परिवार के सदस्य सर्वप्रथम घर में बनी गौ-शाला गौ-शाला में जाकर गाय को प्रणाम कर उसे हरी घास आहार के रूप में समर्पित कराते हैं।

गायों का गोबर उठा कर उसे व्यवस्थित रीति से सुरक्षित करना दिनचर्या का अंग होता है। यह दिनचर्या आज भी भारतीय पारम्परिक परिवारों में देखी जा सकती है। प्रातःकाल जागरण से लेकर गौ-दोहन, गौ-चारण और सायंकाल गोचर कर गायों का समूह में घर में वापस आने की बेला को पवित्र “गोधूलि बेला” माना गया है।

गौ-सेवा को अत्यंत पवित्र कर्त्तव्य हमारे भारतीय धर्म शास्त्रों में व्याख्यायित किया गया है। गाय को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्रदान करने वाली देवी कहा गया है। गाय का यह महत्त्व कोटि-कोटि हिन्दू जन-मानस में सदियों से रचा-बसा है। इसी कारण गाय और सम्पूर्ण गौ-वंश को हम आस्था और श्रद्धा के केंद्र में रखते हैं।

गाय को भारत की आर्थिक समृद्धि का आधार माना गया है, गौ-वंश को भारतीय कृषि का आधार, पर्यावरण की संरक्षिका, भौतिक विज्ञान के अनुसंधान का केंद्र, आयुर्वेद का आधार सहित विभिन्न विधाओं को प्रभावित करने वाला “भारतीय गौ-वंश” की महिमा अपार है।

भारतीय पारम्परिक पर्वों की श्रंखला में अनेक पर्व तो सीधे गौ-वंश के लिये ही हैं जैसे वत्स-द्वादशी, गोपाष्टमी तथा दीपावली के दूसरे दिन गोवर्द्धन पूजा का पर्व।

भारतीय पारम्परिक पर्वों में छिपा है वैज्ञानिक तथ्य

भारतीय पर्वों को मनाने की अपनी एक विशिष्ट शैली है, जिसमें तिथि, नक्षत्र, दिन, योग एवं पर्व केंद्रित रीति-रिवाज एवं पर्व का देवता, देवी एवं उनके पूजन, स्मरण आदि का सामाजिक महत्त्व तथा उनमें छिपा विविध प्रकार का अन्वेषण जनित विज्ञान अवस्थित है। अधिकतर विज्ञान का वह पक्ष जिसे हम बोलचाल की भाषा में “मनोविज्ञान” कहते हैं; पर्वों को आयोजित करने एवं उनके मनाने में जन-मन का अनुरंजन, विनोद, आनंद, उल्लास, मानसिक उमंग ये सब मनोविज्ञान के विविध आयाम हैं। इसकी पुष्टि भारतीय मान्यताओं में प्रकृति की अष्टधा रूपों में अभिव्यक्त है।

भूमिरापोनलो वायुःखं मनोबुद्धिरेव च।

अहंकार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा।। की ही अभिव्यक्ति है।

पर्वों की प्रासंगिकता उनके आरम्भिक काल में जितनी थी, आज भी वे सभी भारतीय प्राचीन पर्व उतने ही प्रासंगिक और महत्वपूर्ण है; उनके वर्तमान समय में युगानुकूल, सामयिक और नवाचारित स्वरूप में प्रस्तुत कर उन्हें अत्यधिक प्रासंगिक बनाना समय की अनिवार्यता है।

गौ-वंश कभी भी अनार्थिक और अनुपयोगी नहीं होता

आज किसान या गौ-पालकों द्वारा गोवंश को बेसहारा किया जा रहा है। उन्हें यह कह कर घर से बाहर किया जा रहा है कि गाय दूध नहीं दे रही है और बैल की खेती-किसानी में उपयोगिता नहीं रही। कारण अब कृषि का यांत्रिकीकरण हो गया है जबकि तथ्य इसके विपरीत है।

गाय दूध दे रही या नहीं, बैल कृषि कार्य करने योग्य है या नहीं” गौ-वंश को अनार्थिक और अनुपयोगी नहीं कह सकते। गौ-वंश से हमें गोबर और गौ-मूत्र जीवन भर मिलता है। दूध तो गाय का सबसे सस्ता उत्पाद है किन्तु गोबर और गौ-मूत्र बहुमूल्य उत्पाद या कीमती पदार्थ हैं।

गाय का दूध तो मानव के लिये पौष्टिक आहार है किन्तु उससे भी अधिक गौ-वंश का गोबर और गोमूत्र धरती का पोषण आहार है। मानव शरीर और मानवीय बुद्धि को स्वस्थ रखने के लिये दूध, दही, मही, घी, मक्खन और धरती को स्वस्थ और उर्वरक बनाये रखने के लिये गोबर, गौ-मूत्र धरती का पारम्परिक आहार है।

मनुष्य की भाँति धरती को भी पोषण आहार की आवश्यकता है उसकी पूर्ति गौ-वंश से प्राप्त गोबर और गौ-मूत्र से होती है। इतना ही नहीं गोबर और गौ-मूत्र से अनेक उत्पाद आज वैज्ञानिक पद्धति से तैयार हो रहे हैं।

दीपावली और होलिकोत्सव से यदि हम गौ-वंश को जोड़ कर उसका विश्लेषण युगानुकूल, सामयिक और नवाचार के साथ करें तो गौ-शालाओं में आर्थिक दृष्टि से आत्म-निर्भरता और स्वावलम्बन के द्वार खोले जा सकते हैं।

भारतवर्ष के सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं के आधार पर दीपावली और उसके आस-पास की तिथियाँ आर्थिक समृद्धि की देवी लक्ष्मी के पर्व की तिथियाँ हैं। हम गौ-शालाओं से प्राप्त गोबर के अनेक उत्पादों यथा गोबर के दीपक, गमले, पेंट, गौ-मूत्र से बनाये गये गोनाईल आदि के विक्रय से आर्थिक लाभ ले सकते हैं।

इसी प्रकार होलिका दहन भी गोबर से बने कण्डों से तथा गौ-काष्ठ से करने का प्रचलन आरम्भ कर, जंगल से लकड़ी काटने में रोक लगा कर पर्यावरण का संरक्षण करने का अभियान चला सकते हैं।

जंगल कटने से बचेंगे और पर्यावरण सुरक्षित होगा। मानव की मृत देह का अंतिम संस्कार भी गौ-शालाओं में गोबर से बनने वाले गौ-काष्ठ और गोबर के कण्डों से कर सकते हैं। इस विधि से भी गौ-शालाओं में आर्थिक समृद्धि का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है।

 लेखक मध्यप्रदेश गौ-संरक्षण एवं संवर्द्धन बोर्ड की कार्य परिषद के अध्यक्ष है।

SHUBHAM SHARMA

Khabar Satta:- Shubham Sharma is an Indian Journalist and Media personality. He is the Director of the Khabar Arena Media & Network Private Limited , an Indian media conglomerate, and founded Khabar Satta News Website in 2017.

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