केवलारी , खैरा पलारी (रवि चक्रवर्ती) : तीन कृषि कानून के विरोध में पंजाब, हरियाणा, दिल्ली ,उत्तर प्रदेश, राजस्थान ,झारखंड ,मध्यप्रदेश सहित भारत देश के अन्य प्रदेशों के किसान संगठन और किसानों द्वारा लंबे समय से किए जा रहे विरोध के साथ-साथ प्रमुखता से यही मांग रखी जा रही है कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य(MSP) को कानून बनाए और एमएसपी से कम कीमत में खरीदी पर जुर्माना और सजा का प्रावधान रखे I अनुबंध खेती कांट्रैक्ट फार्मिंग और फसल बिक्री जैसे मुद्दों को लेकर केंद्र सरकार द्वारा जो विधेयक सदन में प्रस्तुत कर आनन-फानन में ध्वनिमत से पास करवा लेने से इन मुद्दों को जनसमर्थन बिल्कुल भी नहीं मिला बल्कि कृषि प्रधान देश का किसान आहत हुआ है साथ ही इन कानूनों में विवाद निराकरण अधिकारी एसडीएम है जबकि राजस्व न्यायालय में एसडीएम एवं तहसीलदार को छोटा न्यायालय माना जाता है अतः उसे सिविल न्यायालय जाने की पात्रता प्राप्त हो ।
अगर सरकार सच्चाई में किसान हितेषी हैं और किसानों की आय को दोगुना करना चाहती हैं तो उद्योगपतियों के हाथ की कठपुतली ना बनकर यथार्थ में किसान और किसान हितेषी संगठनों से बातचीत कर उनकी समस्याओं को सुनकर ,समझकर किसान के जीवन स्तर उठाने के लिए निर्णय लेवे। सच तो यही है कि किसान के घर में जन्मा बच्चा कर्ज में जन्म लेकर कर्ज में ही मर जाता है और यही कारण है कि हर वर्ष कर्ज के बोझ में डूबा हुआ किसान कभी आत्महत्या करता है, तो कभी फांसी के फंदे पर झूल जाता है किसान का जन्म समस्या में ही होता है और पूरे जीवन भर समस्या से जूझते जूझते मर जाता है ।
चाहे बिजली की समस्या हो, नेहरों की समस्या हो, अनाज बिक्री की समस्या हो ,उर्वरक खरीदी की समस्या हो,फिर कटाई की समस्या हो,पराली जलाने की समस्या या पशुपालन, गौ -पालन और उनकी दूध बिक्री कर व्यापार को आगे बढ़ाने की समस्या इन समस्याओं की जन्मदाता आखिरकार सरकार तो है। क्या यही है मेरे देश के किसानों की यथार्थ तस्वीर जिसमें बड़े उत्साह के साथ मौके मौके पर जय-जवान और जय-किसान के नारे से संबोधित करते हैं ऐसी ही कुछ स्थिति पिछले कुछ दिनों से देखने को मिल रही है जो लोग कृषि एवं कृषि कार्य के विषय में नहीं समझते वह भी इस किसान आंदोलन में बेतुकी बातें करने से नहीं चूकते चाहे वह फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौत हो या जी न्यूज़ के एडिटर इन चीफ सुधीर चौधरी या अन्य नेता-अभिनेता, जिन्हें कृषि से संबंधित समस्या का ज्ञान ही नहीं है वह भी अनावश्यक बयानबाजी कर भ्रम फैला रहे हैं।
खरीफ वर्ष 2020 में समर्थन मूल्य पर धान खरीदी मंडियों में सेवा सहकारी समितियों ,फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया एवं उसके विभिन्न उपक्रमों के माध्यम से हो रही है परंतु ऐसा लगता है कि सरकार की मंशा ही नहीं है कि समर्थन मूल्य पर धान खरीदी हो l धान का समर्थन मूल्य ₹1868 जबकि किसान बाजार में 1300 रुपए मे बेचने को मजबूर हैl
मक्का का समर्थन मूल्य ₹1850 जबकि बाजार में 1200 रुपए बिक रहा है, आखिरकार समर्थन मूल्य से कितने कम रेट में बिक्री हो रही है फिर भी किसान क्या करें?? क्योंकि खरीफ फसल को बेचकर रवि फसल बोने की तैयारी भी किसान को करनी है। आज किसान असहाय है लेकिन समय आने पर मतदान करके बदला लेने की नीयत जरूर रखता है अंततः सरकारों को चाहिए कि किसानों के पक्ष में योग्य एवं चतुराई पूर्ण निर्णय करें अन्यथा कहां गया है- “जब नाश मनुष्य पर छाता है पहले विवेक मर जाता है” वरना जो किसान जय- जयकार कर सकता है वही किसान हाहाकार भी मचा सकता है l ए-खाक नशीनो उठ बैठो,वह समय करीब आ पहुंचा है । जब तख़्त गिराए जाएंगे,जब ताज उछाले जाएंगे ll