डेस्क।हिन्दू धर्म में व्रत का बहुत ही महत्व होता है। कहते है कि व्रत रखने से लोगों का मन शांत और जीवन में सुख समृद्धि प्राप्त होती है। मान्यताओं के अनुसार प्रदोष व्रत भगवान शिव के लिए रखा जाता है और साथ ही माता पार्वती की भी पूजा का विधान है। सोमवार का दिन होने से यह सोम प्रदोष व्रत कहा जाता है।
कहते है कि आज के दिन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए यह व्रत रखते है। जिसे लोगों की मनोकामनाएं पूरी हो सके और हर कार्य में सफलता प्राप्त हो सके। महिलाएं सोम प्रदोष व्रत का अधिकार रखती है कहते है कि कवारी महिलाएं इस व्रत को अच्छे पति के लिए रखती है और उनके जीवन में जीवन खुशियां बनी रहे ।
कब और कितने प्रदोष व्रत :-
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हर साल 24 प्रदोष व्रत आते हैं और जबकि हर महीने में 2 प्रदोष व्रत पड़ते हैं। हर महीने दो बार त्रयोदशी तारीख आती है। एक बार शुक्ल पक्ष और एक बार कृष्ण पक्ष में।
पूजा विधि :-
इस दिन सूर्यास्त से 45 मिनट से पूर्व और सूर्यास्त 45 मिनट के बाद तक का समय प्रदोष काल माना जाता है।
आज के दिन भक्तों के शिव मंदिर जाकर धूप, अगरबत्ती आदि मंत्रों का जाप करते हुए भगवान शिव की पूजा करें।जाप के बाद प्रदोष व्रत कथा सुनें।आरती कर परिवार में प्रसाद बांटे।व्रत का पारण अगले दिन फलाहार करें।
ऐसा करना शुभ माना जाता है और घर में सुख शांति बनी रहती है।
सोम प्रदोष व्रत 2021 पूजा मुहूर्त :-
ब्रह्म मुहूर्त- 03:34 AM से 04:16 तक।
अभिजित मुहूर्त- 11:20 AM से 12:14 PM तक।
विजय मुहूर्त- 02:03 PM से 02:58 PM तक।
गोधूलि मुहूर्त- 06:23 PM से 06:47 PM तक।
अमृत काल- 12:10 AM, जून 08 से 01:59 AM, जून 08 तक।
इन मुहूर्त में न करें भगवान शिव की पूजा :-
राहुकाल- 06:40 AM से 08:22AM तक।
यमगण्ड- 10:04 AM से 11:47 AM तक।
गुलिक काल- 01:29 PM से 03:12 PM तक।
वर्ज्य- 01:19 PM से 03:08 PM तक।
दुर्मुहूर्त- 12:14 PM से 01:09 PM तक।
सोम प्रदोष व्रत कथा:
पौराणिक व्रतकथा के अनुसार एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था। उसका अब कोई आश्रयदाता नहीं था इसलिए प्रात: होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी। भिक्षाटन से ही वह स्वयं व पुत्र का पेट पालती थी।
एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई। अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई। उन्हें भी राजकुमार भा गया।
कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए। उन्होंने वैसा ही किया।
ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी। उसके व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के राज्य को पुन: प्राप्त कर आनंदपूर्वक रहने लगा।
राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया। ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के से जैसे राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र के दिन फिरे, वैसे ही शंकर भगवान अपने दूसरे भक्तों के दिन भी फेरते हैं। अत: सोम प्रदोष का व्रत करने वाले सभी भक्तों को यह कथा अवश्य पढ़नी अथवा सुननी चाहिए।