Home » मध्य प्रदेश » अनोखा स्कूल : न फीस लगती है न हाजिरी, पढ़ते हैं ज्ञान का पाठ

अनोखा स्कूल : न फीस लगती है न हाजिरी, पढ़ते हैं ज्ञान का पाठ

By: SHUBHAM SHARMA

On: Friday, December 15, 2017 6:01 PM

Google News
Follow Us

इंदौर। खुले आसमान के नीचे मैदान में गूंजते गिनती-पहाड़े… अनुशासन में बैठे बच्चे… पांचवीं का विद्यार्थी हो या कॉलेज का, सभी को 25 तक पहाड़े कंठस्थ। कोई अजनबी भी पहुंच जाए तो बच्चे उनका अभिवादन करना नहीं भूलते। उनके घर में भले ही कोई पढ़ा-लिखा नहीं है, लेकिन परीक्षा में उनके नंबर कभी 70-80 फीसदी से कम नहीं आते। खास बात है यहां न फीस देना पड़ती है, न अटेंडेंस (हाजिरी) लगती है।

पढ़ाई, अनुशासन और सम्मान की सीख देने वाले स्कीम नंबर 78 के ओपन स्काय स्कूल में कमजोर वर्ग के करीब 500 विद्यार्थी सफलता की नई इबारत गढ़ रहे हैं। डॉ. ललिता शर्मा द्वारा आठ साल पहले रोपा गया खुले स्कूल का पौधा आज बड़ा वृक्ष बन चुका है। यह एक ऐसा स्कूल है जहां न कोई दीवार है, न कक्षाएं, न रजिस्टर लेकिन बच्चों को समर्पण भाव से पढ़ाने वाले शिक्षक जरूर हैं। दोपहर 3 बजते ही खुले आसमान में लगने वाले स्कूल में बच्चों का आना शुरू हो जाता है। शाम तक मैदान में बच्चों की चहल-पहल रहती है।

बच्चे की उम्र और कक्षा के हिसाब से सभी के समूह बने हुए हैं। बिना बोले सभी अपने-अपने समूह में बैठते हैं। इसमें नर्सरी से लेकर कॉलेज तक के बच्चे पढ़ रहे हैं। डॉ. ललिता हर बच्चे के ग्रुप में जाकर उन्हें पढ़ाती हैं। आठ साल से पढ़ रहे कई विद्यार्थी अब उच्च शिक्षा ले चुके हैं। बच्चों के स्कूल-कॉलेज से फॉर्म भरवाने से लेकर परीक्षा दिलवाने तक श्रीमती शर्मा ही मदद करती हैं।

अब छात्राएं बन गई ‘टीचर दीदी”

साना, पूजा, प्रियंका को ओपन स्काय स्कूल में पढ़ते हुए आठ साल हो गए। ये छात्राएं अब बारहवीं कक्षा में पहुंच चुकी हैं। ये डॉ. ललिता से पढ़ती हैं और अपनी पढ़ाई कर छोटी कक्षा के बच्चों को पढ़ाती हैं। इनकी तरह करीब दस छात्राएं छोटे बच्चों की टीचर दीदी बन गई हैं।

घर से शुरू हुआ स्कूल मैदान तक पहुंचा

डॉ. शर्मा को बीते साल अपनी सामाजिक सेवाओं के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार भी मिल चुका है। वे बताती हैं घर के बरामदे से बच्चों को पढ़ाने की शुरुआत की थी। बच्चों की संख्या बढ़ी तो सड़क पर पढ़ाने लगी। फिर सड़क पर ज्यादा भीड़ होने से लोगों को आवाजाही में परेशानी हुई तो मैदान में पढ़ाना शुरू किया। मैदान में चार घंटे में करीब 500 बच्चे अलग-अलग बैच में पढ़ते हैं।

सासू मां करती हैं मदद

डॉ. शर्मा बताती हैं बच्चे को सबसे पहले पहाड़े कंठस्थ कराते हैं। पहाड़े याद करवाने में सास मना अनंत मदद करती हैं। नए बच्चों को रोज आा घंटा पहाड़े याद करवाए जाते हैं। साथ ही उन्हें साफ-सुथरा रहने, सम्मान, अनुशासन में रहने की बातें सिखाते हैं। बारिश के दिनों में मैडम के घर में कक्षाएं लगती हैं। डॉ. शर्मा कहती हैं इन बच्चों की जिंदगी बनाने के लिए प्राइवेट कॉलेज में प्रोफेसर की नौकरी भी छोड़ दी। अब पूरा ध्यान सिर्फ बच्चों पर है।

Join WhatsApp

Join Now

Leave a Comment