वोटर्स को लगाई जाने वाली स्याही कर्नाटक में बनती है, 56 साल से हो रहा इस्तेमाल !
नई दिल्ली // वोटिंग के बाद मतदाता की उंगली पर लगाई जाने वाली स्याही का इस्तेमाल फर्जी मतदान को रोकने के लिए किया जाता है। यह निशान करीब एक महीने तक रहता है। इसमें इस्तेमाल की जाने वाली स्याही सबसे पहले मैसूर के महाराजा नालवाडी कृष्णराज वाडियार ने 1937 में स्थापित मैसूर लैक एंड पेंट्स लिमिटेड कंपनी में बनवाई थी। लेकिन निर्वाचन प्रक्रिया में पहली बार इसका इस्तेमाल 56 साल पहले 1962 के चुनाव में हुआ था।
1947 में देश की आजादी के बाद मैसूर लैक एंड पेंट्स लिमिटेड सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी बन गई। अब इस कंपनी को मैसूर पेंट्स एंड वाॅर्निश लिमिटेड के नाम से जाना जाता है। कर्नाटक सरकार की यह कंपनी अब भी देश में होने वाले हर चुनाव के लिए स्याही बनाने का काम करती है और इसका निर्यात भी करती है। चुनाव के दौरान मतदाताओं को लगाई जाने वाली स्याही के निर्माण के लिए इस कंपनी का चयन 1962 में किया गया था। इस तरह देश के तीसरे आम चुनावों में पहली बार इसका इस्तेमाल हुआ।
प्रकाश में आते ही रंग बदलता है केमिकल –
स्याही को नेशनल फिजिकल लैबोरेटरी आॅफ इंडिया के रासायनिक फाॅर्मूले का इस्तेमाल कर तैयार किया जाता है। इसका मुख्य रसायन सिल्वर नाइट्रेट है। स्याही में यह 5 से 25 फीसदी तक होता है। मुख्यत: बैंगनी रंग का यह केमिकल प्रकाश में आते ही रंग बदल लेता है और इसे किसी भी तरह से मिटाया नहीं जा सकता।
स्याही का निर्यात इन देशों में –
मैसूर पेंट्स एंड वाॅर्निश कंपनी मालदीव, मलेशिया, कंबोडिया, अफगानिस्तान, मिस्र और दक्षिण अफ्रीका में भी स्याही का निर्यात करती है। भारत में मतदाता के बाएं हाथ के अंगूठे के बाजू वाली उंगली के नाखून पर इसे लगाया जाता है, वहीं, कंबोडिया और मालदीव में इस स्याही में उंगली डुबानी पड़ती है।बुरंडी और बुकीर्ना फासो में इसे हाथ पर ब्रश से लगाया जाता है,अफगानिस्तान में इसे पैन के माध्यम से लगाया जाता है।
इसलिए नहीं छूटती यह स्याही –
अमिट स्याही सिल्वर नाइट्रेट में घुली डाई होती है। सिल्वर नाइट्रेट रंगहीन विलियन है। इसमें डाई मिलाई जाती है। उंगली पर लगने के बाद सिल्वर नाइट्रेट त्वचा से निकलने वाले पसीने में मौजूद सोडियम क्लोराइड (नमक) से क्रिया करके सिल्वर क्लोराइड बनाता है। धूप के संपर्क में आने पर यह सिल्वर क्लोराइड टूटकर धात्विक सिल्वर में बदल जाता है। धात्विक सिल्वर पानी या वाॅर्निश में घुलनशील नहीं होता इसलिए इसे उंगली से आसानी से साफ नहीं किया जा सकता।_
चुनावों में ऐसे होता है स्याही का इस्तेमाल –
अमिट स्याही निर्वाचन आयोग ही भेजता है। इसे लोकसभा, विधानसभा, नगरीय निकाय और पंचायत जैसी संवैधानिक संस्थाओं के चुनावों में मतदान अधिकारियों को सौंपा जाता है।हर मतदान दल के पीठासीन अधिकारी को अमिट स्याही की एक शीशी दी जाती है। इसमें इतनी स्याही होती है जो 700-800 मतदाताओं की उंगली पर लगाई जा सके। जोनल अधिकारी को भी अतिरिक्त स्याही दी जाती है। अतिरिक्त स्याही की जरूरत पड़ने पर जोनल अधिकारी ही इसे उपलब्ध कराता है। इसका भी हिसाब रखा जाता है। बाद में सभी मतदान दल बची हुई स्याही जिला निर्वाचन कार्यालय में जमा कराते हैं। फिर इसे नष्ट कर दिया जाता है।