नई दिल्ली. तमिलनाडु (Tamil Nadu) के मेडिकल कॉलेजों में ओबीसी उम्मीदवारों के लिए कोटा पर मामलों की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को कहा कि आरक्षण का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है. जस्टिस एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने अपने आदेश में स्पष्ट कहा कि कि कोई भी आरक्षण के अधिकार को मौलिक अधिकार नहीं कह सकता है, और इसलिए कोटा लाभ नहीं देना किसी भी संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन नहीं माना जा सकता है.
सीपीआई, डीएमके और उसके कुछ नेताओं द्वारा सीटों में 50 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण , 2020-21 में यूजी, पीजी मेडिकल और डेंटल कोर्स में आरक्षण के लिए याचिका दायर की गई थी. उन्होंने बताया कि तमिलनाडु में ओबीसी, एससी और एसटी के लिए 69 प्रतिशत आरक्षण है और इसके भीतर ओबीसी आरक्षण लगभग 50 प्रतिशत है.
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं पर क्या कहा?
अन्नाद्रमुक ने अपनी याचिका में कहा है कि तमिलनाडु के कानून के तहत व्यवस्था के बावजूद अन्य पिछड़े वर्गो के छात्रों को 50 प्रतिशत आरक्षण का लाभ नहीं देने का तर्कसंगत नहीं है. अन्ना द्रमुक पार्टी ने अपनी याचिका में कहा है कि ऑल इंडिया कोटा व्यवस्था लागू होने के बाद से ही कई शैाणिक सत्रों में देश के मेडिकल कालेजों में प्रवेश के लिये ऑल इंडिया कोटा सीट में अन्य पिछड़े वर्गो का प्रतिनिधित्व कम रहा है.
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई के दौरान सवाल किया कि अनुच्छेद 32 के तहत याचिका कैसे स्वीकार की जा सकती है क्योंकि आरक्षण मौलिक अधिकार ही नहीं है. बेंच ने कहा, ‘किसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है? अनुच्छेद 32 केवल मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के लिए है. हम मानते हैं कि आप सभी तमिलनाडु के नागरिकों के मौलिक अधिकारों में रुचि रखते हैं. लेकिन आरक्षण का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है.’
अदालत ने कहा कि वह तमिलनाडु के विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा एक मुद्दे पर एक साथ आने की सराहना करता है लेकिन इस याचिका पर विचार नहीं कर सकता है. याचिकाकर्ताओं जब यह बताया गया कि उनकी याचिका का आधार तमिलनाडु सरकार द्वारा आरक्षण पर कानून का उल्लंघन है तो पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को मद्रास हाईकोर्ट का रुख करना चाहिए. पीठ ने उन्हें याचिका वापस लेने और किसी भी राहत के लिए हाईकोर्ट जाने की अनुमति दी.