सिवनी शहर के नागरिकों को नगर पालिका द्वारा सप्लाई किए जा रहे नलों से बीते कई महीनों से गंदा, मठमेला और बदबूदार पानी मिल रहा है। यह न केवल नगर पालिका की घोर लापरवाही का प्रतीक है, बल्कि यह स्पष्ट रूप से नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन भी है। पीने का पानी जब स्वास्थ्य के लिए खतरा बन जाए, तो यह किसी भी समाज के लिए चेतावनी की घंटी होता है।
बहुत से लोग इस सच्चाई से अनभिज्ञ हैं कि स्वच्छ पानी प्राप्त करना केवल एक सुविधा नहीं, बल्कि भारत के नागरिकों का संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार है। भारत का संविधान का अनुच्छेद 21, जो “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार” की गारंटी देता है, उसमें स्वस्थ पर्यावरण और स्वच्छ जल को भी शामिल किया गया है।
👉 सुप्रीम कोर्ट ने Subhash Kumar v. State of Bihar (1991 AIR 420) केस में स्पष्ट किया कि “स्वस्थ जीवन के लिए स्वच्छ जल आवश्यक है और यह जीवन के अधिकार का अभिन्न हिस्सा है।“
👉 आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने A.P. Pollution Control Board vs. Prof. M.V. Nayudu (1999) केस में कहा कि “राज्य की संवैधानिक जिम्मेदारी है कि वह नागरिकों को स्वच्छ और प्रदूषण रहित जल उपलब्ध कराए।“
👉 उत्तराखंड हाई कोर्ट ने 2018 में जल को जीवित अस्तित्व मानते हुए उसे कानूनी अधिकारों से संरक्षित करने का आदेश दिया।
इन सभी न्यायिक निर्णयों से स्पष्ट है कि यदि कोई नगर पालिका या राज्य सरकार नागरिकों को स्वच्छ जल उपलब्ध कराने में विफल रहती है, तो यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन माना जाएगा।
गंदे पानी की आपूर्ति: बीमारियों का न्योता
गंदे और बदबूदार पानी के सेवन से नागरिकों को कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इनमें शामिल हैं:
- टाइफाइड
- पीलिया
- हैजा
- डायरिया
- त्वचा रोग
- पेट के संक्रमण
यदि इस समस्या को समय रहते नहीं रोका गया, तो यह एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपदा में बदल सकती है।
नगर पालिका की लापरवाही: सवालों के घेरे में प्रशासन
नगर पालिका द्वारा इस समस्या को लगातार नजरअंदाज करना, यह दर्शाता है कि प्रशासन जनस्वास्थ्य के प्रति असंवेदनशील हो चुका है। न तो नलों की सफाई हो रही है, न ही जल स्रोतों की नियमित जांच। कई इलाकों में नालियों से जुड़े पाइपलाइन से पानी मिल रहा है, जो स्थिति को और भी खतरनाक बना देता है।
क्या नगर पालिका को यह अहसास नहीं है कि जल जनस्वास्थ्य की पहली सीढ़ी है? जब यह ही दूषित होगा, तो स्वस्थ समाज की कल्पना कैसे की जा सकती है?
नागरिकों की चुप्पी: चिंता का विषय
सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि सिवनी के नागरिक इस गंभीर संकट पर चुप हैं। यह चुप्पी कहीं न कहीं समस्या को और बढ़ावा दे रही है। जब तक जनता संगठित होकर आवाज़ नहीं उठाएगी, तब तक कोई भी प्रशासन इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लेगा।
क्या हमें PIL दाखिल करनी चाहिए?
जनहित याचिका (PIL) एक ऐसा कानूनी औज़ार है जिससे नागरिक सरकारी लापरवाही के विरुद्ध न्यायालय में अपनी आवाज़ उठा सकते हैं। यदि सिवनी के जागरूक नागरिक एकजुट होकर इस विषय में PIL दायर करते हैं, तो यह नगर पालिका पर कानूनी दबाव बनाएगा और स्वच्छ जल की आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकती है।
कृपया हमारे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स में हेम मेसेज उर कमेंट कर बताएं — क्या आप इस लड़ाई में साथ हैं? क्या आप स्वच्छ पानी के अपने अधिकार के लिए खड़े होंगे? @khabarsatta
अब समय है जागरूक नागरिक बनने का
सिवनी शहर के नागरिकों, अब यह आपकी चुप्पी का नहीं, बल्कि आपके अधिकारों की लड़ाई का समय है। स्वच्छ पेयजल पाना हमारा हक है, और कोई भी सरकार या निकाय इससे हमें वंचित नहीं कर सकता।
यदि आप इस लड़ाई में हमारे साथ हैं, तो अपना समर्थन दर्ज करें। अपने इलाके में इस मुद्दे को उठाएं। सोशल मीडिया पर आवाज़ बनें। यह केवल एक शहर की नहीं, बल्कि हर भारतीय नागरिक के जीवन के अधिकार की लड़ाई है।
हम सवाल पूछेंगे, हम जवाब मांगेंगे, हम बदलाव लाएंगे।