छपारा के समीप ग्राम लुडगी में विगत सप्त दिनों तक भक्ति और आध्यात्मिकता की अनुपम धारा बहती रही। नीरज भरद्वाज जी के निवास स्थान पर आयोजित श्रीमद् भागवत कथा में हजारों श्रद्धालुजनों ने भाग लिया और अपने जीवन को भक्ति और ज्ञान के अमृत से सिंचित किया। यह कथा देवी कीर्ति किशोरी जी के दिव्य मुखारविंद से प्रवाहित हुई, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण के अद्भुत चरित्र, जीवन दर्शन एवं भक्ति के महत्व को अत्यंत सरल, भावपूर्ण और हृदयस्पर्शी शैली में प्रस्तुत किया गया।
कथा का भव्य शुभारंभ – आध्यात्मिक वातावरण का सृजन
कथा का आरंभ मंगलाचरण एवं श्री गणेश वंदना के साथ हुआ, जिसमें श्रद्धालुओं ने दीप प्रज्वलित कर ईश्वर का आह्वान किया। लुडगी ग्राम की पावन भूमि पर भक्तगणों की उपस्थिति से वातावरण भक्तिमय हो उठा। कथा स्थल को सुंदर रंगोली, पुष्पों और दीपों से सजाया गया था, जिससे हर कोई आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव कर रहा था।
सप्त दिवसीय कथा का सार – भगवान के साथ सम्बद्धता का महत्व
देवी कीर्ति किशोरी जी ने अपने कथा वाचन में श्रोताओं को बताया कि भगवान के साथ सम्बद्ध होना ही जीवन का परम लक्ष्य है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि “जिनके मन में भगवान की तन्मयता है, वही भगवान की वाणी को सुन सकता है।” उन्होंने श्रोताओं को समझाया कि चिन्ता छोड़कर भगवान का चिन्तन करें, क्योंकि चिन्ता तन, मन और जीवन को नष्ट कर देती है।
कथावाचक जी ने कथा के मध्य यह संदेश दिया कि भगवान पृथ्वी पर तभी अवतरित होते हैं जब पृथ्वी का भार बढ़ जाता है। उन्होंने श्रोताओं को यह भी बताया कि जो व्यक्ति ईश्वर के साथ अपने जीवन को जोड़ लेता है, वही वास्तव में धन्य है। संसार के रिश्ते जन्म-मरण से बंधे हैं, लेकिन ईश्वर के साथ जीवात्मा का संबंध शाश्वत और अटूट है।
जीव और ईश्वर के सम्बन्ध की गूढ़ व्याख्या
कथा के पंचम दिवस पर देवी कीर्ति किशोरी जी ने गहन रहस्योद्घाटन करते हुए बताया कि जीव का सच्चा सम्बंध केवल ईश्वर से है। उन्होंने कहा:
“जब आपका जन्म हुआ, तब आप न किसी के पति थे, न किसी के पिता, न किसी के पुत्र। सभी सांसारिक सम्बंध जन्म के बाद बनते हैं और मृत्यु के साथ समाप्त हो जाते हैं। लेकिन जीवात्मा का सम्बंध ईश्वर से जन्म से पूर्व भी था और मृत्यु के उपरांत भी रहेगा।”
यह शिक्षा श्रोताओं के लिए अत्यंत प्रेरणादायी रही। उन्होंने स्पष्ट किया कि मनुष्य जिस संसार से मोह करता है, वही एक दिन छोड़ कर चला जाता है। इसलिए यदि कोई सम्बन्ध अमिट है तो वह केवल परमात्मा से है।
कथा के भावार्थ में भक्ति और साधना का संदेश
कथा के अन्तिम दिवस पर देवी कीर्ति किशोरी जी ने यह स्पष्ट किया कि ईश्वर अनेक रूपों में प्रकट होते हैं, परन्तु तत्वतः एक ही हैं। जिस स्वरूप से श्रद्धालु का मन जुड़ जाए, वही उसका इष्टदेव बन जाता है। उन्होंने कहा:
“जिस स्वरूप के दर्शन से आपका हृदय पिघलता है, जिस स्वरूप में आपको परम संतोष की अनुभूति होती है, उसी स्वरूप के साथ अपने जीवन को जोड़ लें।”
सनातन धर्म की यही विशेषता है कि ईश्वर के अनेक स्वरूपों में भी एकत्व की अनुभूति कराई जाती है।
हवन, प्रसादी एवं कथा के समापन पर भक्ति की गंगा
कथा के समापन अवसर पर भव्य हवन का आयोजन किया गया, जिसमें सभी श्रद्धालुजन आहुतियाँ अर्पित करते हुए भगवान से जीवन में भक्ति, प्रेम और शांति की कामना कर रहे थे। हवन के पश्चात् प्रसादी वितरण हुआ, जिसमें सप्त दिवस तक कथा श्रवण करने वाले समस्त भक्तों, माता-बहनों, ग्रामवासियों एवं आगंतुकों ने प्रसादी ग्रहण कर स्वयं को कृतार्थ अनुभव किया।
भरद्वाज परिवार द्वारा भक्तों के प्रति आभार
इस श्रीमद् भागवत कथा के सफल आयोजन में नीरज भरद्वाज जी एवं उनके परिवार की महत्वपूर्ण भूमिका रही। उन्होंने पूरे आयोजन में तन, मन, धन से सहयोग करते हुए श्रद्धालुओं की सेवा की। कथा के समापन पर भरद्वाज परिवार ने समस्त भक्तजनों, ग्रामवासियों एवं सहयोगियों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि:
“आप सभी की उपस्थिति, प्रेम और भक्ति के कारण यह कथा सफल हुई है। हम सबको ईश्वर से यही प्रार्थना है कि आपके जीवन में भक्ति, प्रेम और शांति सदैव बनी रहे।”
कथा से प्राप्त आध्यात्मिक संदेश
इस श्रीमद् भागवत कथा से यह स्पष्ट हुआ कि:
- ईश्वर से सम्बद्धता ही जीवन का परम लक्ष्य है।
- चिन्ता छोड़कर भक्ति और साधना करें।
- संसारिक सम्बंध क्षणिक हैं, केवल परमात्मा के साथ सम्बंध शाश्वत है।
- ईश्वर के विविध स्वरूपों में एकत्व की अनुभूति करें।
- भक्ति और साधना के माध्यम से जीवन को सार्थक बनाएं।
कथा की विशेषताएँ और आकर्षण
- सप्त दिवस तक निरंतर कथा वाचन
- देवी कीर्ति किशोरी जी द्वारा गूढ़ आध्यात्मिक रहस्यों का सरल भाषा में वर्णन
- हजारों भक्तों की उपस्थिति और श्रद्धा
- हवन एवं प्रसादी वितरण के माध्यम से भक्ति का समापन
इस श्रीमद् भागवत कथा ने न केवल ग्राम लुडगी में बल्कि समूचे क्षेत्र में भक्ति की एक नई चेतना का संचार किया। श्रद्धालुओं ने भगवान के श्रीमुख से निकली वाणी का श्रवण कर अपने जीवन को धन्य किया। नीरज भरद्वाज जी और उनके परिवार के अथक प्रयासों से यह आयोजन भक्तों के लिए आध्यात्मिक पर्व बन गया।