
मेंढक रानी पानी दे…धान, कोदो पकन दे… इस कहावत को लेकर गुरुवार को सिवनी मठ मंदिर से बारात निकालकर मेंढक-मेंढकी की शादी कराई। वहीं अच्छी बारिश होने के लिए मठ मंदिर में अनुष्ठान भी किया। इस आयोजन के पीछे मान्यता है कि मेंढक-मेंढकी की शादी कराने से इंद्रदेव प्रसन्न हो जाते है। जिससे अच्छी बारिश होती है।
ऐसे हुआ आयोजन
सिवनी जिले के ढीमर समाज ने गुरुवार की दोपहर में समाज के ही कुछ छोटे बच्चों को नग्न अवस्था में मूसर (लकड़ी) पकड़ाया। जिसमें मेंढक को रस्सी के सहारे बांधा गया। इन बच्चों की मय मूसर व मेंढक के साथ पूरे क्षेत्र वासियो ने पहले पूजा-अर्चना की। इसके बाद शहर के मठ मंदिर से पूजा अर्चना कर बारात निकाली गई ।
यहां से मेंढक-मेंढकी की बारात बाजे-गाजे के साथ निकाली गई। यह बारात पदयात्रा कर शहर के विभिन्न क्षेत्रों में पहुची जिसके बाद वापस मठ मंदिर पहुचकर समाज के लोगो ने पूजा अर्चना कर अनुष्ठान किया।
बारात में समाज के बच्चे, युवा, वृद्घ, महिलाएं सहित सभी शामिल हुए थे। बारात के दौरान बारातियो द्वारा मेंढक रानी पानी दे…धान, कोदो पकन दे…के नारे भी लगाते रहे।
मेंढक को पिलाते रहे पानी
बारात से लेकर मंदिर पहुंचते तक लोगो द्वारा मूसर में बांधे गए मेंढक-मेंढकी को पानी भी पिलाते रहें। ताकि वे जिंदा रह सके और उनकी शादी हो सके। ग्रामीणों के अनुसार मेंढक को तरसा-तरसा कर पानी पिलाने के पीछे मान्यता है कि मेंढक जितना तड़पते हैं, भगवान इंद्र देव को उतना ही दर्द होता है। मेंढक की इस तड़पन को दूर करने के लिए भगवान इंद्रदेव बारिश करने लगते हैं।
ये है मान्यता
सामाजिक लोगो के अनुसार मूसर में मेंढक को बांधकर उनकी शादी कराने और अनुष्ठान करने से मूसलाधार बारिश होती है। मेंढक को मूसर में बांधने से जहां वह अधिक तड़पता है। वहीं उसे देखकर भगवान इंद्रदेव मूसलाधार बारिश करते हैं। ग्रामीणों ने बताया कि यह परपंरा सदियों से चली आ रही है।
जब भी भी बारिश नहीं होती है, उस वर्ष इस तरह का आयोजन किया जाता है। यह परपंरा ग्राम में सदियों से चली आ रही है। जिस वर्ष भी बारिश नहीं होती, उस वर्ष ग्राम के सभी लोग एकत्र होकर मेंढक-मेंढकी की शादी कराते हैं। ऐसे आयोजन से निश्चिततौर पर इंद्र देव प्रसन्न होते हैं और तेज बारिश होती है। वर्ष 2008 में भी इसी तरह का आयोजन किया गया था