सिवनी- श्री दिगंबर जैन समाज के दसलक्षण पर्वराज पर्युषण पर्व आज दिनाँक १४-०९-२०१८ आज से शुरू श्री दिगम्बर जैन मंदिर जी मे चातुर्मास कर रहे आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज के यशश्वी शिष्य प्रशममूर्ति मुनि श्री अजित सागर जी ,ऐलक श्री दया सागर जी,ऐलक श्री विवेकानंद सागर जी महाराज के पावन सानिध्य में श्रावक संस्कार शिविर आयोजित हो रहा है आज सुबह अभिषेक शांतिधारा पूजन हुई। कुंडलपुर के बड़े बाबा एवं आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज के छायाचित्र के सम्मुख दीप प्रज्ज्वलन करके कार्यक्रम की शुरुआत हुई।
अभिषेक पूजन के पश्चात विराजमान तीनो महाराज श्री के दसलक्षण धर्म के प्रथम दिवस उत्तम क्षमा धर्म में उपदेश दिया।ऐलक दया सागर जी ने कहा कि धर्म स्वाधीन है आत्मा से जोड़ता है क्षमा की नींव पर ही स्वभाव का क्षमा का महल खड़ा होता है अपनो से अपेक्षा ही क्रोध का कारण है क्रोध में होश नहीं होता है अतः यह क्रोध कषाय भव भव तक भटकती रहती है अज्ञानरूपी अंधकार को जो नष्ट करे वह उत्तम है हमें क्षमा कर्तव्य एवं धर्म समझकर धारण करना चाहिए सुख शांति एवं सामाजिक एकता का कारण क्रोध नहीं क्षमा है आत्मा को दुःख कष्ट देने वाली कषाय होती है अतः इन कषायों को छोड़कर उत्तम क्षमा को धारण करनी है बदले की भाव न रखना ही क्षमा है।
मुनि श्री अजित सागर जी ने कहा कि क्रोध का कारण कमजोरी- धर्म आत्मा का स्वभाव है उसका अनुभव किया जाता है कहा नही जाता वस्तुतः स्वभाव को समझना अत्यंत कठिन है क्षमादि दसधर्म नही हैं ये धर्म के लक्षण है पर्याय हमेशा विंशति रहती है पर द्रव्य शाश्वत रहता है जैसे पानी को जिस बर्तन में रखते है उसी को कहा जाता है पर पानी विशाल है जो श्रेष्ठ उत्तम सुख को धारण करा दे वह धर्म ह”ै ज्ञानी मौन क्षमा शक्तों ” ज्ञानी हमेशा मौन रहता है और शक्ति पाकर क्षमा धारण करता है जो बोलता है उसकी दशा पैरो में होती है जैसे पायल जो मौन रहता है वह हार जो गले को शोभा बनता है क्रोध में जुबान भी बिगड़ती है चेहरा बिगड़ता है लाल होता है शरीर कांपने लगता है १०मिनट का क्रोध ६००मिनट की शाँति को नष्ट करता है “अधजल घघरी छलकत जाए”अल्पज्ञानी उद्दण्ड होता है पूर्ण ज्ञानी भरे हुए कलशे के समान है सर्वजन के हित के लिए उपकारी है धर्मरूपी महल के दशद्वार है मुख्य द्वार क्षमा है कायर ही क्रोधी है रूप गुण ज्ञान क्षमा मनुष्य का आभूषण रूप है रूप का आभूषण ज्ञान है ज्ञान का आभूषण क्षमा है।अतः जिसमे क्षमा है वही रूपवान गुणवान ज्ञानवान होता है हम सब गुण ग्राही बन कर अपने स्वभाव को पाए जहाँ ज्ञान है वही क्षमा होती है। अतः वृक्ष की भांति फलदार बनो जो पत्थर खाकर भी फल देता है संतो जैसा जीवन परमोपकारी है वैसा ही हम बने यही हमारे लिए लाभकारी है।दसलक्षण धर्म सभा मे पर्युषण की साधना हेतु बाहर से भी साधकगण आये हुए है १०० साधक सब कुछ त्याग कर साधना कर रहे है श्री दिगंबर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान सांगानेर(जयपुर) से भी विद्वान श्री नरेन्द्र शास्त्री जी धर्मलाभ देने पधारे है।
आज अभिषेक शांतिधारा करने एवं श्रावक श्रेस्ठी बनने का सौभाग्य श्री वीरेंद्र नायक शशांक नायक ,सुधीर बाँझल संजीव बाँझल एवं परिवार को प्राप्त हुआ प्रश्नमंच का पुण्यार्जक बनने का सौभाग्य श्री नरेंद्र सुरेन्द्र नितेश नितिन नैवैद्य गोयल एवं परिवार को प्राप्त हुआ