सिवनी- महिलाएं भी जनेऊ धारण कर सकती हैं, इसे धारण करने में पुरुषों का विशेषाधिकार कदाचित नहीं है, उपनयन संस्कार कराने के बाद महिलाओं को भी उसी विधि-विधान का पालन करना होगा, जो पुरुषों के लिए निर्धारित है. यह बात आज आर्ट आफ लिविंग सिवनी द्वारा द ग्रैंड रजवाड़ा होटल पर उपनयन संस्कार पर बेंगलोर से आये स्वामी गुनातीत ने कहे. इस दौरान उपनयन संस्कार के दौरान 20 पुरुषों और 20 महिलाओं सहित 5 बच्चों को यज्ञोपवीत धारण कराया गया.
उपनयन संस्कार कार्यक्रम के समापन सत्र में बोलते हुए आर्ट ऑफ लिविंग बैंगलोर आश्रम से आये स्वामी गुनातीत ने कहा, उपनयन का मतलब अपने और निकट आना है. शास्त्रों में वर्णित 16 संस्कारों में से उपनयन संस्कार दसवां संस्कार है. इसमें तीन धागों का यज्ञोपवीत धारण किया जाता है, यह तीनों धागे हमें अपने जीवन में जिम्मेदारियों के प्रति सजग रखते हैं. उन्होंने कहा कि प्रथम जिम्मेदारी मात पिता के प्रति है, द्वितीय गुरू के ज्ञान एवं संस्कार का विस्तार तथा तीसरी जिम्मेदारी समाज के प्रति है. उपनयन संस्कार जिसका हमें बोध कराता है. आर्ट ऑफ लिविंग के मनीष अग्रवाल ने बताया कि उपनयन संस्कार के दौरान उपनयन की महत्ता, गायत्री दीक्षा, अग्नि क्रियाए वैदिक यज्ञोपवीत संस्कार और त्रिकाल संध्या वेदमंत्रों के माध्यम से सिखाई गई.
हिंदू धर्म की वैदिक रीतियां देती हैं महिला उपनयन संस्कार की अनुमति
स्वामी गुनातीत ने बताया कि महिलाओं को पुरुषों के समान बराबरी का अधिकार वैदिक काल से प्राप्त है, तभी तो वैदिक रीति में महिलाओं को भी उपनयन संस्कार की अनुमति दी गई है. मातृ शक्ति वैदिक काल से सर्वोपरि और पूजी जाती रही है. महिलाओं को केवल भोग का साधन मानने वालों ने इस वैदिक रीति को दबाना शुरू किया और पूरी तरह दबाते हुए महिलाओं के उपनयन प्रक्रिया को प्रतिबंधित कर दिया, लेकिन जब पूरे भारत में महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिए जाने की लहर चल रही है तो फिर महिलाएं उपनयन संस्कार प्रक्रिया से दूर कैसे रह सकती हैं.
गुरुदेव श्री श्री रविशंकर इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं और महिलाओं का उपनयन संस्कार करा रहे हैं..
स्वामी गुनातीत ने बताया की प्राचीन काल में उपनयन संस्कार की तरह ही गायत्री मंत्र उच्चारण महिलाओं के लिए वर्जित कर दिया गया था. गायत्री मन्त्र एक अपूर्व शक्तिशाली मंत्र है, जिसे रक्षा कवच मन्त्र भी कहा गया है.