डेस्क।पूर्णिमा के बाद कृष्ण पक्ष में आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। इस तिथि पर भगवान श्रीगणेश का पूजन करने से सभी विघ्नों का नाश होता है।
संकष्टी चतुर्थी हर संकट को हरने वाली है। आषाढ़ मास में भगवान श्रीगणेश जी की पूजा विशेष पुण्य प्रदान करने वाली मानी गई है। शास्त्रों में आषाढ़ मास में संकष्टी चतुर्थी का विशेष महत्व माना गया है।
संकष्टी चतुर्थी का पर्व भगवान श्रीगणेश को समर्पित है। इस दिन भगवान श्रीगणेश की पूजा विधिपूर्वक करने से सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। यह व्रत, आषाढ़ मास में प्रकृति के महत्व को बताता है। संकष्टी चतुर्थी में चंद्र दर्शन का विशेष महत्व बताया गया है।
इस दिन चंद्रमा का दर्शन करना अत्यंत शुभ माना गया है। संकष्टी चतुर्थी का व्रत चंद्रमा को देखने के बाद ही पूर्ण माना जाता है। इस व्रत के प्रभाव से संतान से जुड़ी परेशानियां दूर होती हैं। धन की कमी दूर होती है। शिक्षा क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है। व्यापार में वृद्धि होती है। मान सम्मान में वृद्धि होती है। अपयश मिट जाता है।
माताएं अपनी संतान के अच्छे स्वास्थ्य और लंबी उम्र के लिए यह व्रत रखती हैं। इस व्रत में लाल रंग के कपड़े धारण कर पूजा अर्चना करें। पूजा करते समय अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखें और स्वच्छ आसन पर भगवान को विराजित करें। ॐ श्रीगणेशाय नमः का जाप करें। पूजा के बाद भगवान को लड्डू का भोग लगाएं। सूर्योदय से शुरू होने वाला यह व्रत चंद्र दर्शन के बाद पूर्ण हो जाता है। इस व्रत के प्रभाव से घर से नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं और शांति बनी रहती है।
पंचांग के अनुसार 27 जून, रविवार को आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि है. इस चतुर्थी की तिथि को संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. शास्त्रों में आषाढ़ मास में संकष्टी चतुर्थी को विशेष माना गया है. संकष्टी चतुर्थी का पर्व भगवान गणेश जी को समर्पित है. इस दिन गणपति बप्पा पूजा और व्रत करने से प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं.