Diwali Ki Pooja Kaise Karen: दिवाली की पूजा कैसे करें, इस पोस्ट में जानिए विधि विधान से दीपावली की पूजा करने का सही तरीका

By SHUBHAM SHARMA

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Diwali Ki Pooja Kaise Karen

Deepawali/ Diwali Ki Pooja Kaise Karen: “पंडित सलिल तिवारी”- आज आपको इस पोस्ट में घर में दीपावली की पूजा ( Deepawali/ Diwali Ki Pooja Kaise Karen ) सरल और आसन तरीके से कैसे कर सकते है वो बताया गया है. जैसा की आप सभी जानते ही है दीपावली का त्यौहार कार्तिक मास की अमावस्या के दिनमनाया जाता रहा है , दिवाली या दीपावली के दिन माँ लक्ष्मी और भगवान श्री गणेश की विशेष रूप से पूजा होती है . हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इस दिन यानी दिवाली या दीपावली के दिन देवी लक्ष्मी का आगमन हुआ था और देवी लक्ष्मी के आगमन के साथ ही मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की अयोध्या वापसी भी हुई थी इसी लिए मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम दरबार की पूजा भी दिवाली/दीपवाली पूजन के दौरान ही की जाती है. जानिए दीपों के त्योहार दीपावली ( Deepawali/Diwali Ki Pooja Kaise Karen ) पर कैसे करें पूजन

Deepawali/Diwali Ki Pooja Kaise Karen

दीपावली पूजन विधि (Diwali Pujan Vidhi) :

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एक चौकी लें उस पर साफ कपड़ा बिछाकर मां लक्ष्मी, सरस्वती व गणेश जी की प्रतिमा रखें। मूर्तियों का मुख पूर्व या पश्चिम की तरफ होना चाहिए। अब हाथ में थोड़ा गंगाजल लेकर उनकी प्रतिमा पर इस मंत्र का जाप करते हुए छिड़कें।

ऊँ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: वाह्याभंतर: शुचि:।। जल अपने आसन और अपने आप पर भी छिड़कें।

इसके बाद मां पृथ्वी को प्रणाम करें और आसन पर बैठकर हाथ में गंगाजल लेकर पूजा करने का संकल्प लें। इसके बाद एक जल से भरा कलश लें जिसे लक्ष्मी जी के पास चावलों के ऊपर रखें। कलश पर मौली बांधकर ऊपर आम का पल्लव रखें।

साथ ही उसमें सुपारी, दूर्वा, अक्षत, सिक्का रखें। अब इस कलश पर एक नारियल रखें। नारियल लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि उसका अग्रभाग दिखाई देता रहे। यह कलश वरुण का प्रतीक है।

अब नियमानुसार सबसे पहले गणेश जी की पूजा करें। फिर लक्ष्मी जी की अराधना करें। इसी के साथ देवी सरस्वती, भगवान विष्णु, मां काली और कुबेर की भी विधि विधान पूजा करें। पूजा करते समय 11 या 21 छोटे सरसों के तेल के दीपक और एक बड़ा दीपक जलाना चाहिए। एक दीपक चौकी के दाईं ओर एक बाईं ओर रखना चाहिए।

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भगवान के बाईं तरफ घी का दीपक जलाएं। और उन्हें फूल, अक्षत, जल और मिठाई अर्पित करें। अंत में गणेश जी और माता लक्ष्मी की आरती उतार कर भोग लगाकर पूजा संपन्न करें। जलाए गए 11 या 21 दीपकों को घर के सभी दरवाजों के कोनों में रख दें।

इस दिन पूजा घर में पूरी रात एक घी का दीपक भी जलाया जाता है।

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Diwali Ki Pooja Kaise Karen

Diwali Ki Pooja Kaise Karen

दीपावली ब्रम्हविद्या राजराजेश्वरी श्री श्री ललिता महात्रिपुरमहासुन्दरी श्री महालक्ष्मी महाविद्या यंत्र पूजन◆

●पवित्रीकरण

बायें हाथ में जल लेकर उसे दाये हाथ से ढक कर मंत्र पढे एवं मंत्र पढ़ने के बाद इस जल को दाहिने हाथ से अपने सम्पूर्ण शरीर पर छिड़क ले
॥ ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः ॥

●आचमन

मन , वाणि एवं हृदय की शुद्धि के लिए आचमनी द्वारा जल लेकर तीन बार मंत्र के उच्चारण के साथ पिए ।
( ॐ केशवया नमः , ॐ नारायणाय नमः , ॐ माधवाय नमः )
ॐ हृषीकेशाय नमः ( इस मंत्र को बोलकर हाथ धो ले )

●शिखा बंधन

शिखा पर दाहिना हाथ रखकर दैवी शक्ति की स्थापना करें चिद्रुपिणि महामाये दिव्य तेजः समन्विते ,तिष्ठ देवि शिखामध्ये तेजो वृद्धिं कुरुष्व मे ॥

●मौली बांधने का मंत्र

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल: ।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥
● तिलक लगाने का मंत्र

कान्तिं लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम् ।
ददातु चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्यहम् ॥

● यज्ञोपवीत मंत्र

ॐ यज्ञोपवीतम् परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात् ।
आयुष्यमग्रयं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेज:।।

पुराना यगोपवीत त्यागने का मंत्र

एतावद्दिनपर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया ।
जीर्णत्वात् त्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथासुखम् ।
● न्यास

संपूर्ण शरीर को साधना के लिये पुष्ट एवं सबल बनाने के लिए प्रत्येक मन्त्र के साथ संबन्धित अंग को दाहिने हाथ से स्पर्श करें

ॐ वाङ्ग में आस्येस्तु – मुख को
ॐ नसोर्मे प्राणोऽस्तु – नासिका के छिद्रों को
ॐ चक्षुर्में तेजोऽस्तु – दोनो नेत्रों को
ॐ कर्णयोमें श्रोत्रंमस्तु – दोनो कानो को
ॐ बह्वोर्मे बलमस्तु – दोनो बाजुओं को
ॐ ऊवोर्में ओजोस्तु – दोनों जंघाओ को
ॐ अरिष्टानि मे अङ्गानि सन्तु – सम्पूर्ण शरीर को

●आसन पूजन

अब अपने आसन के नीचे चन्दन से त्रिकोण बनाकर उसपर अक्षत , पुष्प समर्पित करें एवं मन्त्र बोलते हुए हाथ जोडकर प्रार्थना करें

ॐ पृथ्वि त्वया धृतालोका देवि त्वं विष्णुना धृता ।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम् ॥

●दिग् बन्धन

बायें हाथ में जल या चावल लेकर दाहिने हाथ से चारों दिशाओ में छिड़कें

॥ ॐ अपसर्पन्तु ये भूता ये भूताःभूमि संस्थिताः । ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया , अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचाः सर्वतो दिशम् । सर्वे षामविरोधेन पूजाकर्म समारम्भे ॥

●गणेश स्मरण

सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः । लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः ॥
धुम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः । द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि ॥
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा । संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ॥

●श्री गुरु ध्यान

अस्थि चर्म युक्त देह को हिं गुरु नहीं कहते अपितु इस देह में जो ज्ञान समाहित है उसे गुरु कहते हैं , इस ज्ञान की प्राप्ति के लिये उन्होने जो तप और त्याग किया है , हम उन्हें नमन करते हैं , गुरु हीं हमें दैहिक , भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करने का ज्ञान देतें हैं इसलिये शास्त्रों में गुरु का महत्व सभी देवताओं से ऊँचा माना गया है , ईश्वर से भी पहले गुरु का ध्यान एवं पूजन करना शास्त्र सम्मत कही गई है।

द्विदल कमलमध्ये बद्ध संवित्समुद्रं । धृतशिवमयगात्रं साधकानुग्रहार्थम् ॥
श्रुतिशिरसि विभान्तं बोधमार्तण्ड मूर्तिं । शमित तिमिरशोकं श्री गुरुं भावयामि ॥
ह्रिद्यंबुजे कर्णिक मध्यसंस्थं । सिंहासने संस्थित दिव्यमूर्तिम् ॥
ध्यायेद् गुरुं चन्द्रशिला प्रकाशं । चित्पुस्तिकाभिष्टवरं दधानम् ॥
श्री गुरु चरणकमलेभ्यो नमः ध्यानं समर्पयामि ।

॥ श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः प्रार्थनां समर्पयामि , श्री गुरुं मम हृदये आवाहयामि मम हृदये कमलमध्ये स्थापयामि नमः ॥

●गणेश पूजन

ध्यान

खर्वं स्थूलतनुं गजेन्द्रवदनं लम्बोदरं सुन्दरं
प्रस्यन्दन्मदगन्धलुब्धमधुपव्यालोलगण्डस्थलम् ।
दन्ताघातविदारितारिरुधिरैः सिन्दुरशोभाकरं
वन्दे शैलसुतासुतं गणपतिं सिद्धिप्रदं कामदम् ॥
ॐ गं गणपतये नमः ध्यानं समर्पयामि ।

●आवाहन

ॐ गणानां त्वां गणपति ( गूं ) हवामहे प्रियाणां त्वां प्रियपति ( गूं ) हवामहे निधीनां त्वां निधिपति ( गूं ) हवामहे वसो मम । आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम् ॥
एह्येहि हेरन्ब महेशपुत्र समस्त विघ्नौघविनाशदक्ष ।
माङ्गल्यपूजाप्रथमप्रधान गृहाण पूजां भगवन् नमस्ते ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः सिद्धिबुद्धिसहिताय गणपतये नमः गणपतिमावाहयामि , स्थापयामि , पूजयामि

●आसन

॥ अनेकरत्नसंयुक्तं नानामणिगणान्वितम् कार्तस्वरमयं दिव्यमासनं परिगृह्यताम ॥
ॐ गं गणपतये नमः आसनार्थे पुष्पं समर्पयामि ।

●स्नान

॥ मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम् तदिदं कल्पितं देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ गं गणपतये नमः पद्यं , अर्ध्यं , आचमनीयं च स्नानं समर्पयामि , पुनः आचमनीयं जलं समर्पयामि । (पांच आचमनि जल प्लेटे मे चदायें )

●वस्त्र

॥ सर्वभुषादिके सौम्ये लोके लज्जानिवारणे , मयोपपादिते तुभ्यं गृह्यतां वसिसे शुभे ॥
ॐ गं गणपतये नमः वस्त्रोपवस्त्रं समर्पयामि , आचमनीयं जलं समर्पयामि ।

●यज्ञोपवीत

ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात् ।
आयुष्यमग्रयं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः ॥
यज्ञोपवीतमसि यज्ञस्य त्वा यज्ञोपवितेनोपनह्यामि ।
नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम् ।
उपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वर ॥
ॐ गं गणपतये नमः यज्ञोपवीतं समर्पयामि , यज्ञोपवीतान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।

●चन्दन

॥ ॐ श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढयं सुमनोहरं , विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ गं गणपतये नमः चन्दनं समर्पयामि ।

●अक्षत

॥ अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुङ्कुमाक्ताः सुशोभिताः मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर ॥
ॐ गं गणपतये नमः अक्षतान् समर्पयामि ।

●पुष्प

माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि भक्तितः , मयाऽऽ ह्रतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यतां ॥

ॐ गं गणपतये नमः पुष्पं बिल्वपत्रं च समर्पयामि ।

●दुर्वा

॥ दूर्वाङ्कुरान् सुहरितानमृतान् मङ्गलप्रदान् , आनीतांस्तव पूजार्थं गृहाण गणनायक ॥
ॐ गं गणपतये नमः दूर्वाङ्कुरान समर्पयामि ।

●सिन्दुर

॥ सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम् , शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ गं गणपतये नमः सिदुरं समर्पयामि ।

●धूप

॥ वनस्पति रसोद् भूतो गन्धाढयो सुमनोहरः , आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ गं गणपतये नमः धूपं आघ्रापयामि ।

●दीप

॥ साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया , दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम् ॥

ॐ गं गणपतये नमः दीपं दर्शयामि ।

●नैवैद्य

॥ शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च , आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवैद्यं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ गं गणपतये नमः नैवैद्यं निवेदयामि नानाऋतुफलानि च समर्पयामि , आचमनीयं जलं समर्पयामि ।

●ताम्बूल

॥ पूगीफलं महद्दिव्यम् नागवल्लीदलैर्युतम् एलालवङ्ग संयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ गं गणपतये नमः ताम्बूलं समर्पयामि ।

●दक्षिणा

॥ हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे ॥
ॐ गं गणपतये नमः कृतायाः पूजायाः सद् गुण्यार्थे द्रव्यदक्षिणां समर्पयामि ।

●आरती

॥ कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरं तु प्रदीपितम् , आरार्तिकमहं कुर्वे पश्य मां वरदो भव ॥
ॐ गं गणपतये नमः आरार्तिकं समर्पयामि ।

●मन्त्रपुष्पाञ्जलि

॥ नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोद् भवानि च पुष्पाञ्जलिर्मया दत्तो गृहान परमेश्वर ॥

ॐ गं गणपतये नमः मन्त्रपुष्पाञ्जलिम् समर्पयामि ।

●प्रदक्षिणा

॥ यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च , तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे ॥
ॐ गं गणपतये नमः प्रदक्षिणां समर्पयामि ।

●विशेषार्ध्य

रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रैलोक्यरक्षक , भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात् ।
द्वैमातुर कृपासिन्धो षाण्मातुराग्रज प्रभो , वरदस्त्वं वरं देहि वाञ्छितं वाञ्छितार्थद ॥
अनेन सफलार्ध्येण वरदोऽस्तु सदा मम ॥
ॐ गं गणपतये नमः विशेषार्ध्य समर्पयामि ।

●प्रार्थना

विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगध्दिताय
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते
भक्तार्तिनाशनपराय गणेश्वराय सर्वेश्वराय शुभदाय सुरेश्वराय
विद्याधराय विकटाय च वामनाय भक्तप्रसन्नवरदाय नमो नमस्ते
नमस्ते ब्रह्मरूपाय विष्णुरूपाय ते नमः नमस्ते रुद्ररुपाय करिरुपाय ते नमः
विश्वरूपस्वरुपाय नमस्ते ब्रह्मचारिणे भक्तप्रियाय देवाय नमस्तुभ्यं विनायक
त्वां विघ्नशत्रुदलनेति च सुन्दरेति भक्तप्रियेति शुखदेति फलप्रदेति
विद्याप्रदेत्यघहरेति च ये स्तुवन्ति तेभ्यो गणेश वरदो भव नित्यमेव
त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या विश्वस्य बीजं परमासि माया
सम्मोहितं देवि समस्तमेतत् त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतुः
ॐ गं गणपतये नमः प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान् समर्पयामि । ( साष्टाङ्ग नमस्कार करे )
समर्पण
गणेशपूजने कर्म यन्न्यूनमधिकं कृतम् ।
तेन सर्वेण सर्वात्मा प्रसन्नोऽस्तु सदा मम ॥
अनया पूजया गणेशे प्रियेताम् , न मम ।
( ऐसा कहकार समस्त पूजनकर्म भगवान् को समर्पित कर दें ) तथा पुनः नमस्कार करें ।

Diwali Ki Pooja Kaise Karen

लक्ष्मी पूजन

● ध्यान

पद्मासनां पद्मकरां पद्ममालाविभूषिताम्
क्षीरसागर संभूतां हेमवर्ण – समप्रभाम् ।
क्षीरवर्णसमं वस्त्रं दधानां हरिवल्लभाम्
भावेय भक्तियोगेन भार्गवीं कमलां शुभाम्
सर्वमंगलमांगल्ये विष्णुवक्षःस्थलालये
आवाहयामि देवी त्वां क्षीरसागरसम्भवे
पद्मासने पद्मकरे सर्वलोकैकपूजिते
नारायणप्रिये देवी सुप्रीता भव सर्वदा

●आवाहन

सर्वलोकस्य जननीं सर्वसौख्यप्रदायिनीम्
सर्वदेवमयीमीशां देविमावाहयाम्यम्
ॐ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम्
ॐ महालक्ष्म्यै नमः महालक्ष्मीमावाहयामि , आवाहनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि

●आसन

अनेकरत्नसंयुक्तं नानामणिगणान्वितम् । इदं हेममयं दिव्यमासनं परिगृह्यताम ॥
श्री महालक्ष्म्यै नमः आसनार्थे पुष्पं समर्पयामि ।

●पाद्य

गङ्गादिसर्वतीर्थेभ्य आनीतं तोयमुत्तमम् । पाद्यार्थं ते प्रदास्यामि गृहाण परमेश्वरी ॥
श्री महालक्ष्म्यै नमः पादयोः पाद्यं समर्पयामि । ( जल चढ़ाये )

●अर्ध्य

गन्धपुष्पाक्षतैर्युक्तमर्ध्यं सम्पादितं मया । गृहाण त्वं महादेवि प्रसन्ना भव सर्वदा ॥
श्री महालक्ष्म्यै नमः हस्तयोः अर्ध्यं समर्पयामि ।
( चन्दन , पुष्प , अक्षत , जल से युक्त अर्ध्य दे )

●आचमन

कर्पूरेण सुगन्धेन वासितं स्वादु शीतलम् । तोयमाचमनीयार्थं गृहाण परमेश्वरी ॥
श्री महालक्ष्म्यै नमः आचमनं समर्पयामि ।
( कर्पुर से सुवासित शीतल जल चढ़ाये )

●स्नान

मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम् । तदिदं कल्पितं देवी स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
श्री महालक्ष्म्यै नमः स्नानार्थम जलं समर्पयामि । ( जल चढ़ाये )

●वस्त्र

सर्वभूषादिके सौम्ये लोक लज्जानिवारणे । मयोपपादिते तुभ्यं गृह्यतां वसिसे शुभे ॥
श्री महालक्ष्म्यै नमः वस्त्रोपवस्त्रं समर्पयामि , आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
( दो मौलि के टुकड़े अर्पित करें एवं एक आचमनी जल अर्पित करें )

●चन्दन

॥ श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढयं सुमनोहरं । विलेपनं सुरश्रेष्ठे चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥
श्री महालक्ष्म्यै नमः चन्दनं समर्पयामि । ( मलय चन्दन लगाये )

●कुङ्कुम

कुङ्कुमं कामदं दिव्यं कामिनीकामसम्भवम् । कुङ्कुमेनार्चिता देवी कुङ्कुमं प्रतिगृह्यताम् ॥
श्री महालक्ष्म्यै नमः कुङ्कुमं समर्पयामि । ( कुङ्कुम चढ़ाये )

●सिन्दूर

सिन्दूरमरुणाभासं जपाकुसुमसन्निभम् । अर्पितं ते मया भक्त्या प्रसीद परमेश्वरी ॥
श्री महालक्ष्म्यै नमः सिन्दूरं समर्पयामि । ( सिन्दूर चढ़ाये )

●अक्षत

अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुङ्कुमाक्ताः सुशोभिताः । मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरी॥
श्री महालक्ष्म्यै नमः अक्षतान् समर्पयामि । ( बिना टूटा चावल चढ़ाये )

●आभुषण

हारकङकणकेयूरमेखलाकुण्डलादिभिः । रत्नाढ्यं हीरकोपेतं भूषणं प्रतिगृह्यताम् ॥
श्री महालक्ष्म्यै नमः आभूषणानि समर्पयामि । ( आभूषण चढ़ाये )

●पुष्प

माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि भक्तितः । मयाऽह्रतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यतां
श्री महालक्ष्म्यै नमः पुष्पं समर्पयामि । ( पुष्प चढ़ाये )

●दुर्वाङकुर

तृणकान्तमणिप्रख्यहरिताभिः सुजातिभिः । दुर्वाभिराभिर्भवतीं पूजयामि महेश्वरी ॥
श्री जगदम्बायै दुर्गा देव्यै नमः दुर्वाङ्कुरान समर्पयामि । ( दूब चढ़ाये )

●अङ्ग – पूजा

कुङ्कुम , अक्षत , पुष्प से निम्नलिखित मंत्र पढ़ते हुए अङ्ग – पूजा करे –
ॐ चपलायै नमः , पादौ पूजयामि
ॐ चञ्चलायै नमः , जानुनी पूजयामि
ॐ कमलायै नमः , कटिं पूजयामि
ॐ कात्यायन्यै नमः , नाभिं पूजयामि
ॐ जगन्मात्रे नमः , जठरं पूजयामि
ॐ विश्ववल्लभायै नमः , वक्षः स्थलं पूजयामि
ॐ कमलवासिन्यै नमः , हस्तौ पूजयामि
ॐ पद्माननायै नमः , मुखं पूजयामि
ॐ कमलपत्राक्ष्यै नमः , नेत्रत्रयं पूजयामि
ॐ श्रियै नमः , शिरः पूजयामि
ॐ महालक्ष्मै नमः , सर्वाङ्गं पूजयामि

●अष्टसिद्धि – पूजन

कुङ्कुम , अक्षत , पुष्प से निम्नलिखित मंत्र पढ़ते हुए आठों दिशाओं में आठों सिद्धियों की पूजा करे –

१ – ॐ अणिम्ने नमः ( पूर्वे )

२- ॐ महिम्ने नमः ( अग्निकोणे )

३ – ॐ गरिम्णे नमः ( दक्षिणे )

४ – ॐ लघिम्णे नमः ( नैर्ॠत्ये )

५ – ॐ प्राप्त्यै नमः ( पश्चिमे )

६ – ॐ प्राकाम्यै नमः ( वायव्ये )

७ – ॐ ईशितायै नमः ( उत्तरे )

८ – ॐ वशितायै नमः ( ऐशान्याम् )

●अष्टलक्ष्मी पूजन

कुङ्कुम , अक्षत , पुष्प से निम्नलिखित नाम – मंत्र पढ़ते हुए आठ लक्ष्मियों की पूजा करे –

ॐ आद्यलक्ष्म्यै नमः ,
ॐ विद्यालक्ष्म्यै नमः ,
ॐ सौभाग्यलक्ष्म्यै नमः ,
ॐ अमृतलक्ष्म्यै ,
ॐ कामलक्ष्म्यै नमः ,
ॐ सत्यलक्ष्म्यै नमः ,
ॐ भोगलक्ष्म्यै नमः ,
ॐ योगलक्ष्म्यै नमः

●धूप

वनस्पति रसोद् भूतो गन्धाढ्यो सुमनोहरः । आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥
श्री महालक्ष्म्यै नमः धूपं आघ्रापयामि । ( धूप दिखाये )

●दीप

साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया । दीपं गृहाण देवेशि त्रैलोक्यतिमिरापहम् ॥
श्री महालक्ष्म्यै नमः दीपं दर्शयामि ।

●नैवैद्य

शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च । आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवैद्यं प्रतिगृह्यताम् ॥
श्री महालक्ष्म्यै नमः नैवैद्यं निवेदयामि । पुनः आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
( प्रसाद चढ़ाये एवं इसके बाद आचमनी से जल चढ़ाये )

●ऋतुफल

इदं फलं मया देवी स्थापितं पुरतस्तव । तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि ॥
श्री महालक्ष्म्यै नमः ॠतुफलानि समर्पयामि ( फल चढ़ाये )

●ताम्बूल

पूगीफलं महद्दिव्यम् नागवल्लीदलैर्युतम् । एलालवङ्ग संयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ॥
श्री महालक्ष्म्यै नमः ताम्बूलं समर्पयामि । ( पान चढ़ाये )

●दक्षिणा

हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः । अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे ॥
श्री महालक्ष्म्यै नमः दक्षिणां समर्पयामि । ( दक्षिणा चढ़ाये )

●आरती

॥ कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरं तु प्रदीपितम् । आरार्तिकमहं कुर्वे पश्य मां वरदो भव ॥
श्री महालक्ष्म्यै नमः आरार्तिकं समर्पयामि । ( कर्पूर की आरती करें )

●जल आरती

ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष ( गूं ) शान्ति: , पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति: ।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति: , सर्व ( गूं ) शान्ति: , शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि ॥ ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ॥

●मन्त्रपुष्पाञ्जलि

नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोद् भवानि च पुष्पाञ्जलिर्मया दत्तो गृहान परमेश्वरि ॥
श्री महालक्ष्म्यै नमः मन्त्रपुष्पाञ्जलिम् समर्पयामि ।

●नमस्कार

सुरासुरेन्द्रादिकिरीटमौक्तिकैर्युक्तं सदा यत्तव पादपङ्कजम्
परावरं पातु वरं सुमङ्गलं नमामि भक्त्याखिलकामसिद्धये
भवानि त्वं महालक्ष्मीः सर्वकामप्रदायिनी
सुपूजिता प्रसन्ना स्यान्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते
नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये
या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात् त्वदर्चनात्
श्री महालक्ष्म्यै नमः , प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान् समर्पयामि

 लक्ष्मी मन्त्र का जाप अपनी सुविधनुसार करे

॥ ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः ॥

● जप समर्पण –
( दाहिने हाथ में जल लेकर मंत्र बोलें एवं जमीन पर छोड़ दें )
॥ ॐ गुह्यातिगुह्य गोप्ता त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपं ,
सिद्धिर्भवतु मं देवी त्वत् प्रसादान्महेश्वरि ॥

Diwali Ki Pooja Kaise Karen

||श्री लक्ष्मी जी की आरती||

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ॐ जय लक्ष्मी माता , मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निसिदिन सेवत हर – विष्णू – धाता ॥ ॐ जय ॥
उमा , रमा , ब्रह्माणी , तुम ही जग – माता
सूर्य – चन्द्रमा ध्यावत , नारद ऋषि गाता ॥ ॐ जय ॥
दुर्गारुप निरञ्जनि , सुख – सम्पति – दाता
जो कोइ तुमको ध्यावत , ऋधि – सिधि – धन पाता ॥ ॐ जय ॥
तुम पाताल – निवासिनि , तुम ही शुभदाता
कर्म – प्रभाव -प्रकाशिनि , भवनिधिकी त्राता ॥ ॐ जय ॥
जिस घर तुम रहती , तहँ सब सद् गुण आता
सब सम्भव हो जाता , मन नहिं घबराता ॥ ॐ जय ॥
तुम बिन यज्ञ न होते , वस्त्र न हो पाता
खान – पान का वैभव सब तुमसे आता ॥ ॐ जय ॥
शुभ – गुण – मन्दिर सुन्दर , क्षीरोदधि – जाता
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोइ नहि पाता ॥ ॐ जय ॥
महालक्ष्मी जी कि आरति , जो कोई नर गाता
उर आनन्द समाता , पाप उतर जाता ॥ ॐ जय ॥

●क्षमा – याचना

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि । यत्युजितं मया देवी परिपूर्ण तदस्तु मे ॥
श्री महालक्ष्म्यै नमः क्षमायाचनां समर्पयामि

ना तो मैं आवाहन करना जानता हूँ , ना विसर्जन करना जानता हूँ और ना पूजा करना हीं जानता हूँ । हे परमेश्वरी क्षमा करें । हे परमेश्वरी मैंने जो मंत्रहीन , क्रियाहीन और भक्तिहीन पूज जाये क्षणन किया है , वह सब आपकी दया से पूर्ण हो ।

#राजराजेश्वरी श्री श्री ललिता महात्रिपुरमहासुन्दरी श्री महालक्ष्मी महाविद्या 14-11-2020 दीपावली की रात्रि में पूजन हेत शुभकामनाएं संप्रेषित हैं….

“ब्रम्हविद्या-श्रीविद्या-श्री चक्र-विराट षोडशी-राजराजेश्वरी श्री श्री ललिता महात्रिपुरमहासुन्दरी श्री महालक्ष्मी महाविद्या” —
साधक की आत्मा व मस्तिष्क इतने शक्तिशाली हो जाते है।

Diwali Ki Pooja Kaise Karen

श्रीविद्या – परिचय

एक बार पराम्बा पार्वती ने भगवान शिव से कहा कि आपके द्वारा प्रकाशित तंत्रशास्त्र की साधना से मनुष्य समस्त आधि-व्याधि, शोक-संताप, दीनता-हीनता से मुक्त हो जायेगा। किंतु सांसारिक सुख, ऐश्वर्य, उन्नति, समृद्धि के साथ जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति कैसे प्राप्त हो इसका कोई उपाय बताईये।

भगवती पार्वती के अनुरोध पर कल्याणकारी शिव ने श्रीविद्या साधना प्रणाली को प्रकट किया। श्रीविद्या साधना भारतवर्ष की परम रहस्यमयी सर्वोत्कृष्ट साधना प्रणाली मानी जाती है। ज्ञान, भक्ति, योग, कर्म आदि समस्त साधना प्रणालियों का समुच्चय (सम्मिलित रूप) ही श्रीविद्या-साधना है।

श्रीविद्या साधना की प्रमाणिकता एवं प्राचीनता
जिस प्रकार अपौरूषेय वेदों की प्रमाणिकता है उसी प्रकार शिव प्रोक्त होने से आगमशास्त्र (तंत्र) की भी प्रमाणिकता है। सूत्ररूप (सूक्ष्म रूप) में वेदों में, एवं विशद्रूप से तंत्र-शास्त्रों में श्रीविद्या साधना का विवेचन है।

शास्त्रों में श्रीविद्या के बारह उपासक बताये गये है- मनु, चन्द्र, कुबेर, लोपामुद्रा, मन्मथ, अगस्त्य अग्नि, सूर्य, इन्द्र, स्कन्द, शिव और दुर्वासा ये श्रीविद्या के द्वादश उपासक है।

श्रीविद्या के उपासक आचार्यो में दत्तात्रय, परशुराम, ऋषि अगस्त, दुर्वासा, आचार्य गौडपाद, आदिशंकराचार्य, पुण्यानंद नाथ, अमृतानन्द नाथ, भास्कराय, उमानन्द नाथ प्रमुख है।

इस प्रकार श्रीविद्या का अनुष्ठान चार भगवत् अवतारों दत्तात्रय, श्री परशुराम, भगवान ह्यग्रीव और आद्यशंकराचार्य ने किया है। श्रीविद्या साक्षात् ब्रह्मविद्या है।#श्रीयंत्र

यह सर्वाधिक लोकप्रिय प्राचीन यन्त्र है,इसकी अधिष्टात्री देवी स्वयं श्रीविद्या अर्थात त्रिपुर सुन्दरी हैं,और उनके ही रूप में इस यन्त्र की मान्यता है। यह बेहद शक्तिशाली ललितादेवी का पूजा चक्र है,इसको त्रैलोक्य मोहन अर्थात तीनों लोकों का मोहन यन्त्र भी कहते है।

यह सर्व रक्षाकर सर्वव्याधिनिवारक सर्वकष्टनाशक होने के कारण यह सर्वसिद्धिप्रद सर्वार्थ साधक सर्वसौभाग्यदायक माना जाता है। इसे गंगाजल और दूध से स्वच्छ करने के बाद पूजा स्थान या व्यापारिक स्थान तथा अन्य शुद्ध स्थान पर रखा जाता है। इसकी पूजा पूरब की तरफ़ मुंह करके की जाती है,श्रीयंत्र का सीधा मतलब है,लक्ष्मी यंत्र जो धनागम के लिये जरूरी है।

श्रीयंत्र अलौकिक शक्ति व चमत्कारों से परिपूर्ण गुप्त शक्तियों का प्रजनन केन्द्र बिद्नु कहा गया है। जिस प्रकार से सब कवचों से चन्डी कवच सर्वश्रेष्ठ कहा गया है,उसी प्रकार से सभी देवी देवताओं के यंत्रों में श्रीदेवी का यंत्र सर्वश्रेष्ठ कहा गया है।

इसी कारण से इसे यंत्रराज की उपाधि दी गयी है। इसे यन्त्रशिरोमणि भी कहा जाता है। दीपावली धनतेरस बसन्त पंचमी अथवा पौष मास की संक्रान्ति के दिन यदि रविवार हो तो इस यंत्र का निर्माण व पूजन विशेष फ़लदायी माना गया है

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श्रीयंत्र का मूल मंत्र:-

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महा-लक्ष्म्यै नमः

सिद्ध श्री यंत्र ही देता है फल आज बाजार में रत्नों के बने श्री यंत्र आसानी से प्राप्त हो जाते हैं किंतु वे सिद्ध नहीं होते। सिद्ध श्री यंत्र में विधिपूर्वक हवन-पूजन करके देवी-देवताओं को प्रतिष्ठित किया जाता है तब श्री यंत्र समृद्धि देने वाला बनता है। यह आवश्यक नहीं कि श्री यंत्र रत्नों का बना हो।

श्री यंत्र तांबे पर बना हो अथवा भोज पत्र पर जब तक उसमें मंत्र शक्ति विधिपूर्वक प्रवाहित नहीं की गई हो तब तक वह श्री प्रदाता अर्थात धन प्रदान करने वाला नहीं होता।

पौराणिक कथा

श्री यंत्र के संदर्भ में एक कथा का वर्णन मिलता है। उसके अनुसार एक बार आदि शंकराचार्यजी ने कैलाश मान सरोवर पर भगवान शंकर को कठिन तपस्या कर प्रसन्न कर दिया। भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर उनसे वर मांगने के लिए कहा। आदि शंकराचार्य ने विश्व कल्याण का उपाय पूछा।

भगवान शंकर ने शंकराचार्य को साक्षात लक्ष्मी स्वरूप श्री यंत्र की महिमा बताई और कहा- यह श्री यंत्र मनुष्यों का सर्वथा कल्याण करेगा। श्री यंत्र परम ब्रह्म स्वरूपिणी आदि प्रकृतिमयी देवी भगवती महा त्रिपुर सुदंरी का आराधना स्थल है क्योंकि यह चक्र ही उनका निवास और रथ है। श्री यंत्र में देवी स्वयं मूर्तिवान होकर विराजती हैं इसीलिए श्री यंत्र विश्व का कल्याण करने वाला है।

आज के यांत्रिक युग में जबकि मनुष्य अनेक प्रकार की समस्याओं से आक्रान्त है, अगर वह श्रीयंत्र की स्थापना करें तो यह यंत्र उसके लिए रामबाण सिद्व हो सकता है।

इस यंत्र को पूर्ण श्रद्वा, विश्वास से अपने व्यवसाय, दुकान, ऑफिस , फैक्टरी आदि में स्थापित करना चाहिए। इसकी प्रतिदन पूजा से श्रीलक्ष्मी प्रसन्न होती है। तथा साथक धनाढय बनता है आज जबकि वास्तु का युग है, प्रत्येक व्यक्ति वास्तु के द्वारा सुख भी प्राप्ति करना चाहता है। ऐसे में श्रीयंत्र की स्थापना और भी आवश्यक हो जाती है।

आदिकालीन विद्या का द्योतक हैं वास्तव में प्राचीनकाल में भी वास्तुकला अत्यन्त समृद्व थी। श्रीयंत्र में सर्वप्रथम धुरी में एक बिन्दु और चारो तरफ त्रिकोण है, इसमें पांच त्रिकोण बाहरी और झुकते है जो शक्ति का प्रदर्शन करते हैं और चार ऊपर की तरफ त्रिकोण है, इसमें पांच त्रिकोण बाहरी और झुकते हैं जो शक्ति का प्रदर्शन करते है और चार ऊपर की तरफ शिव ती तरफ दर्शाते है।

अन्दर की तरफ झुके पांच-पांच तत्व, पांच संवेदनाएँ, पांच अवयव, तंत्र और पांच जन्म बताते है। ऊपर की ओर उठे चार जीवन, आत्मा, मेरूमज्जा व वंशानुगतता का प्रतिनिधत्व करते है। चार ऊपर और पांच बाहारी ओर के त्रिकोण का मौलिक मानवी संवदनाओं का प्रतीक है। यह एक मूल संचित कमल है।

आठ अन्दर की ओर व सोलह बाहर की ओर झुकी पंखुड़ियाँ है। ऊपर की ओर उठी अग्नि, गोलाकर, पवन,समतल पृथ्वी व नीचे मुडी जल को दर्शाती है। ईश्वरानुभव, आत्मसाक्षात्कार है। यही सम्पूर्ण जीवन का द्योतक है। यदि मनुष्य वास्तव में सुखी और सृमद्व होना चाहता है तो उसे श्रीयंत्र स्थापना अवश्य करनी चाहिये।

अनन्त ऐश्वर्य एवं लक्ष्मी प्राप्ति के मुमक्ष को चाहिए कि श्री यंत्र के सम्मुख श्री सूक्त का पाठ करो पंचमेवा देवी को भोग लगायें तो शीघ्र ही इसका चमत्कार होता है।

यंत्र का उपयोगइस यंत्र को व्यापार वृद्धि के लिए तिजोरी में रखा जाता है धान्य वृद्धि के लिए धान्य में रखा जाता है

इस यंत्र को वेलवृक्ष की छाया में उपासना करने से लक्ष्मी शीघ्र प्रसन्न होती है और अचल सम्पत्ति प्रदान करती हैं।

इस यंत्र को सम्मुख रखकर सूखे वेलपत्र घी में डुबोकर वेल की समिधा में आहूति डालने से मां भगवती शीघ्र ही प्रसन्न होती है एवं धन ऐश्वर्य प्राप्त होता है तथा जीवन भर लक्ष्मी के लिए दुखी नहीं होना पड़ता।

मान्यता है कि भोजपत्र की अपेक्षा तांबे पर बने श्रीयंत्र का फल सौ गुना, चांदी में लाख गुना और सोने पर निर्मित श्रीयंत्र का फल करोड़ गुना होता है। ‘रत्नसागर’ में रत्नों पर भी श्रीयंत्र बनाने की बात लिखी गई है।

इनमें स्फटिक पर बने श्रीयंत्र को सबसे अच्छा बताया गया है। विद्वानों की ऐसी धारणा है कि भोजपत्र पर 6 वर्ष तक, तांबे पर 12 वर्ष तक, चांदी में 20 वर्ष तक और सोना धातु में श्रीयंत्र आजीवन प्रभावी रहता है।

केसर की स्याही से अनार की कलम द्वारा भोजपत्र पर श्रीयंत्र बनाया जाना चाहिए। धातु पर निर्मित श्रीयंत्र की रेखाएं यदि खोदकर बनाई गई हों और गहरी हों, तो उनमें चंदन, कुमकुम आदि भरकर पूजन करना चाहिए।
दीपावली की रात गृहस्थ के लिए श्री यंत्र सिद्ध करना सबसे आसान है।

इसके लिए पूजन के बाद लक्ष्मी मंत्र-

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महा-लक्ष्म्यै नमः

की 11 माला का जाप करें। साथ ही श्री यंत्र की स्थापना कर उसका पूजन करें तो वह सिद्ध हो जाएगा।
” # श्रीयंत्र “

” चतुर्थिः श्री कण्ठेः, शिवयुवतिभिः पंच भिरपि। प्रभिन्नाभिः शम्भोर्नवभिरपि मूल प्रकृतिभिः!त्रयश्चत्वारिशद्बसुदल कलाब्जत्रिविलय। त्रिरेखाभिः साधेः तव मव कोणः परिणताः !!

आनन्द लहरी में श्री शंकराचार्य ने बताया है कि 4 श्री कंठों (शिवस्वरूप),
पांच शिव की युवतियों,
शंभू की 9 अभिन्न मूल प्रकृति,
43 वसुदर,
कलाकब्ज की त्रिविलय, तीन रेखाओं के साथ इस महामंत्र में परिलक्षित हैं।

‘श्री यंत्र ‘समस्त यंत्रों में सर्वश्रेष्ठ है।
यह भगवती श्री त्रिपुर संदुरी का यंत्र है।
‘योगिनी हृदय’ ग्रंथ के अनुसार आद्या शक्ति अपने बल से ब्रह्माण्ड का रूप लेकर स्वयं अपने स्वरूप को निहारती हैं तो वहीं से ‘श्री चक्रों’ का प्रादुर्भाव होता है।

श्री यंत्र के केन्द्र में बिंदु है।
इस बिंदु के चारों ओर 9 त्रिकोण हैं जो नवशक्ति के प्रतीक हैं।

5 त्रिकोण को शक्ति स्वरूप माना जाता है।
ये (पांच त्रिकोण) पंच प्राण, पंच ज्ञानेन्द्रियां, पंच कर्मेन्द्रियां, पंच तन्मात्रा और पंच महाभूत का प्रतिनिधित्व करते हैं।

नीचे के चार त्रिकोण शिव स्वरूप माने जाते हैं।
ये शरीर में जीवात्मा, प्राण, मज्जा और शुक्र को परिलक्षित करते हैं और
मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार के द्योतक हैं।
इस तरह से ये 9 त्रिकोण 9 मूल प्रकृति का प्रतीक हैं।

इसके पश्चात इस यंत्रराज में पहले वृत्त के बाहर आठ दल का कमल और उसके पश्चात इस वृत्त के बाहर 16 दल का कमल है।

इस यंत्र में उर्ध्वमुखी त्रिकोण, अग्नितत्व का,
वृत्त वायु का,
बिंदु आकाश का और
भूपुर पृथ्वी तत्व का प्रतीक हैं।
कुल मिलाकर यंत्रराज श्री यंत्र स्वयं में मानव शरीर का ही प्रतिनिधित्व करते हैं।

” यदि इस प्राणप्रचलित चैतन्य महायंत्र के सामने धनतेरस या दीपावली से आरंभ करके नित्य 16 पाठ श्री सूक्त के किए जाएं तो यह यंत्र धीरे-धीरे जागृत होने लगता है।”

यह सर्वाधिक लोकप्रिय प्राचीन यन्त्र है,
इसकी अधिष्टात्री देवी स्वयं श्रीविद्या अर्थात त्रिपुर सुन्दरी हैं तथा उनके ही रूप में इस यन्त्र की मान्यता है।
इसे गंगाजल और दूध से स्वच्छ करने के बाद पूजा स्थान या व्यापारिक स्थान तथा अन्य शुद्ध स्थान पर रखा जाता है। इसकी पूजा पूर्व दिशा की तरफ़ मुंह करके की जाती है,
दीपावली धनतेरस बसन्त पंचमी अथवा पौष मास की संक्रान्ति के दिन यदि रविवार हो तो इस यंत्र का निर्माण व पूजन विशेष फ़लदायी माना गया है।

इस यंत्र की महिमा जग प्रसिद्ध है।
समस्त मठों और मंदिरों में इस यंत्रराज का पूजन अवश्य किया जाता है जिससे उनका वैभव अक्षुण्ण रहता है।

सोमनाथ मंदिर में प्रत्येक ईंट पर यह यंत्र स्थापित था, जिसकी वजह से वहां अकूत सम्पदा थी, जिससे महमूद गजनवी ने उसे बार-बार लूटा, ऐसी मान्यता है।

साधना –

नवरात्रि, धनतेरस के दिन ‘श्रीयंत्र’ का पूजन करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं।
तंत्र ग्रंथों में दीपावली को कालरात्रि, यक्षरात्रि, महानिशा कहा गया है।
इस रात्रि में आद्य शक्ति महालक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करने आती है और श्री यंत्र गणपति, यंत्र – लक्ष्मी यंत्र – कुबेर यंत्र सहित अपनी पूजा अर्चना होते देखती है वहीं पर अपनी कृपा अनुकम्पा की वर्षा करती जाती है , जिसके प्रभाव से साधक वर्ष भर तक सुख-समृद्धि प्राप्त करता रहता है।

महालक्ष्मी की साधना-उपासना में सिद्ध प्राण प्रतिष्ठित ताम्रपत्र के श्री यंत्र या पारद श्री यंत्र , गणपति यंत्र, कुबेर यंत्र, अति आवश्यक है ।
लक्ष्मी साधना का मूल मंत्र आप नियमित 108 बार श्रद्धा से घर-प्रतिष्ठान में जप करें।

” ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः! “

” ह्रीं ऐश्वर्य श्री धन्म्धान्यादिपत्ये ऐं पूर्णत्व लक्ष्मी सिद्धये नमः ! “

” ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं सिद्ध लक्षम्ये नमः ! “

Web Title: Diwali Ki Pooja Kaise Karen: How to worship Diwali, know in this post the right way to worship Diwali by law

SHUBHAM SHARMA

Shubham Sharma is an Indian Journalist and Media personality. He is the Director of the Khabar Arena Media & Network Private Limited , an Indian media conglomerate, and founded Khabar Satta News Website in 2017.

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