शंकराचार्य के दर्शन पर दीनदयाल उपाध्याय का दर्शन थोपने की हो रही है कोशिश
शंकराचार्य जैसे महामनीषी के गुरु की उपेक्षा अनुचित
क्या स्वयं शंकराचार्य प्रसन्न होते अपने गुरु की उपेक्षा से ?
-जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज
एकात्मकता यात्रा और शंकराचार्य जी की विशाल मूर्ति की स्थापना को जोरशोर से लगी मध्यप्रदेश सरकार पर ज्योतिष्पीठ और द्वारका शारदा पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज ने प्रश्न उठाये हैं।
उनका साफ कहना है कि इस तरह के आयोजन का उद्देश्य शंकराचार्य जी की दीक्षा स्थली का उद्धार कम और राजनैतिक लाभ कमाना ज्यादा है । अन्यथा नरसिंह पुर जिले के गजेटियर, अनेक ऐतिहासिक साक्ष्यों और स्वयं दो पीठों के शंकराचार्य के रूप में कही गई हमारी और अन्य दो पीठों के शंकराचार्यों की बातों की अवहेलना न की जाती ।
पूज्यपाद शंकराचार्य जी ने आगे कहा कि स्वयं आदि शंकराचार्य जी भी आज उपस्थित होते तो अपनी दीक्षा स्थली की जगह के बदले जाने और दीक्षा स्थली में अपने गुरु की उपेक्षा कर स्वयं की मूर्ति के लगाये जाने से निश्चित ही सहमत न होते । क्योंकि दीक्षा स्थली गुरु का स्थान होती है और गुरु के स्थान में शिष्य चाहे कितना ही प्रभावशाली हो , गुरु ही महत्वपूर्ण होता है।
शेषनाग के अवतार पतंजलि ही थे गोविन्द पादाचार्य
पूज्यपाद शंकराचार्य जी ने आगे कहा कि आदि शंकराचार्य जी के गुरु गोविन्द पादाचार्य जी कोई सामान्य गुरु नहीं थे । वे अनन्तश्रीसम्पन्न शेषनाग के अवतार भगवान् पतंजलि का सन्यासी रूप थे जिन्होंने पातंजल योगदर्शन की रचना द्वारा चित्त के, व्याकरण महाभाष्य की रचना द्वारा वाणी के और चरकसंहिता की रचना द्वारा शरीर के मलों के शोधन का मार्ग सामान्य जनों को सुझाकर भारत सहित पूरे विश्व का महान् उपकार किया है ।
शंकर दिग्विजय
के अनुसार भगवान् शंकराचार्य ने नर्मदा तीरस्थ उस विशिष्ट
गुफा के समक्ष जाकर पतंजलि मानकर ही गोविन्द पादाचार्य की वन्दना की है ।
इस परिप्रेक्ष्य में देखा जाय तो कहना होगा कि आद्य शंकराचार्य ने ब्रह्म साक्षात्काररूप साध्य पर ही मुख्य भाष्यों की रचना की है । जबकि पतंजलि ने परमार्थ सार नाम का ग्रन्थ लिखकर साध्य साधन दोनों को समृद्ध किया है।
यही नहीं
आद्य शंकराचार्य के सामने संचार माध्यमों की जो चुनौती थी उसे दूर करने के लिये गुरु गोविन्द पादाचार्य जी ने उन्हें आकाश मार्ग से चलने और परकाय प्रवेश की विद्या प्रदान की ।
आचार्य शंकर के जीवन चरित्र में अनेक स्थानों पर आदि शंकराचार्य जी द्वारा इन विद्याओं के प्रयोग का वर्णन मिलता है। जिसमें माता की पुकार पर सर्वज्ञ पीठ काश्मीर से केरल स्थित अपने घर पहुंचना,
मंडन मिश्र के घर के दरवाजे बन्द होने पर आकाश मार्ग से उनके आंगन में उतरना और
राजा अमरुक के शरीर में प्रवेश कर मर्यादा बनाये रखते हुए कामविद्या को जानकर उभयभारती के प्रश्नों का उत्तर देना आदि प्रमुख हैं। यह सब कर पाने में आदि शंकराचार्य जी सफल गुरु गोविन्द पादाचार्य जी के कारण ही हुए ।
आज भी गुफा में हो जाते हैं दर्शन
आदि शंकराचार्य जी के दीक्षा स्थली से चलकर काशी आदि जाने का उल्लेख मिलता है परन्तु गोविन्द पादाचार्य जी के गुफा से कहीं अन्यत्र जाने का उल्लेख नहीं मिलता है।
चूंकि पतंजलि/गोविन्द पादाचार्य जी शेषनाग के अवतार थे । अतः आज भी सांकलघाट की उस गुफा में सर्परूप में उनके दर्शन कभी-कभी भक्तों को होते हैं।
नरसिंह पुर भी मध्यप्रदेश का ही जिला । फिर उसके साथ अन्याय क्यों?
मध्यप्रदेश शासन जाने अनजाने न केवल ऐसे दिव्य पुरुष की महिमा गरिमा और उनके परम शिष्य की गुरु के प्रति व्यक्त की जाने वाली श्रद्धा भावनाओं का अनादर कर रही है अपितु मध्यप्रदेश के ही अंग एक जिले के एक गौरवमय इतिहास को झुठलाकर नरसिंह पुर जिले के गौरव को घटा रही है । जो कि उस जिले के लोगों का सीधा अपमान है।
स्थापित होनी चाहिए
आदि शंकराचार्य जी को
दण्ड दीक्षा प्रदान करते गोविन्द पादाचार्य जी की मूर्ति
पूज्यपाद शंकराचार्य जी ने आगे कहा कि
यदि जनता को आदि शंकराचार्य जी और उनके गुरु गोविन्द पादाचार्य जी का माहात्म्य बताने से भारतीय संस्कृति और दर्शन की महत्ता का बोध और राष्ट्र के प्रति श्रद्धा बढ़ती है तो शिष्य को दीक्षित करते हुए गोविन्द नाथ जी को दिखाया जाना उचित होगा ।
जिसका हमने उपक्रम किया है । हमारी संकल्पना है कि हम वहां गुरु-शिष्य उभय का भव्य स्मारक स्थापित करेंगे। जो कि शंकराचार्य और उनकी दीक्षा स्थली और गुरु गोविन्द पादाचार्य जी की की स्मृति को चिरकाल तक बनाये रखने में सहायक होगी ।
नाम शंकराचार्य का और दर्शन दीन दयाल उपाध्याय का ?
आदि शंकराचार्य और उनके गुरु गोविन्द पादाचार्य जी ने वैदिक दर्शन अद्वैत को जीवन लक्ष्य माना है । परमार्थतः अद्वैत के साथ व्यवहारतः वैदिक भेददर्शन उसकी विशेषता है । मध्यप्रदेश सरकार उनके दर्शन के नाम पर दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानववाद लोगों के सामने प्रस्तुत कर रही है , जो कि बौद्धिक छल है । इसे स्वीकारा नहीं जा सकता । यह छल जनता के दार्शनिक उन्नयन के लिए नहीं अपितु दलीय राजनीति के उन्नयन के लिए है ।
गुरु के स्थान पर गुरु शिष्य का पुतला
गुरुतत्व की अवहेलना
जैसा कि पहले बताया दीक्षा स्थली गुरुस्थान होता है। गुरु के स्थान पर शिष्य का पुतला गुरु ही नहीं गुरुतत्व की भी अवहेलना है ।
क्या शंकराचार्य स्वयं इसे स्वीकारते? प्रसिद्ध उक्ति है—
गुरु गोविन्द दोऊ खडे
काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरु आपकी
गोविन्द दियो बताय।