साहित्य समाज का दर्पण होता है इसलिए संस्कृतियां साहित्य पर अवलम्बित होती हैं । भारत का वह समग्र साहित्य जिस पर भारतीय संस्कृति अवलम्बित है वह संस्कृत में संरक्षित है अतः संस्कृत के बिना भारतीय संस्कृति की रक्षा असम्भव है ।
उक्त उद्गार पूज्यपाद अनन्तश्री विभूषित उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर व पश्चिमाम्नाय द्वारका शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज ने
आज काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय संस्कृत सम्मेलन को अपना पावन सान्निध्य प्रदान करते हुए कही
पूज्य शंकराचार्य जी महाराज ने आगे कहा कि काशी के विद्वान् सदा से ही इस ओर सचेष्ट रहे हैं और अपना तन-मन-धन सब कुछ न्यौछावर करके भी उन्होंने संस्कृत विद्या की रक्षा की है । इसके लिए वे अभिनन्दन के पात्र हैं ।
शंकराचार्य जी ने नवागन्तुक विद्यार्थियों से कहा कि आप यह न सोचें कि आप गरीब घर के थे इसलिए अंग्रेजी नहीं पढ पाए और मजबूरन संस्कृत पढना पडा । बल्कि आप यह सोचें कि आपका कोई पूर्वकृत पुण्य था जो आप भारत में उत्पन्न होकर भारत की ही आत्मा को स्थापित करने वाली संस्कृत के अध्येता बने हैं ।