Air pollution in Delhi: दिल्ली-NCR के करोड़ों के लिए बदलते मौसम से लोगों की अटकती सांसें

By SHUBHAM SHARMA

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Air pollution in Delhi दिल्ली में ये मौसम बदलने के दिन हैं। दिन में तीखी गरमी और अंधेरा होते-होते तापमान गिर जाता है। भले ही इन दिनों रास्ते में धुंध के कारण कम दृश्यता के हालात न हों, स्मॉग के भय से आम आदमी भयभीत न हो, लेकिन जान लें कि जैसे-जैसे आसपास के राज्यों में पराली जलाने में तेजी आ रही है, दिन में सूरज की तपन बढ़ रही है, वैसै-वैसे दिल्ली की सांसें भी अटक रही हैं।

गौरतलब है कि देश की राजधानी को गैस चैंबर बनाने में 43 प्रतिशत जिम्मेदारी हवा में उड़ते मध्यम आकार के धूल-मिट्टी के कणों की है। दिल्ली में हवा की सेहत को खराब करने में गाड़ियों से निकलने वाले धुएं की भागीदारी 17 फीसद और पैटकॉक जैसे पेट्रो-ईंधन की भागीदारी 16 प्रतिशत है। इसके अलावा भी कई कारण हैं जैसे कूड़ा जलाना एवं परागकण आदि

एक टन पराली जलाने पर दो किलो सल्फर डाईऑक्साइड निकलती हैं : एक अनुमान है कि हर साल अकेले पंजाब और हरियाणा के खेतों में कुल तीन करोड़ 50 लाख टन पराली जलाई जाती है। एक टन पराली जलाने पर दो किलो सल्फर डाईऑक्साइड, तीन किलो ठोस कण, 60 किलो कार्बन मोनोऑक्साइड, 1460 किलो कार्बन डाईऑक्साइड और 199 किलो राख निकलती हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब कई करोड़ टन अवशेष जलते हैं तो वायुमंडल की कितनी दुर्गति होती होगी। हानिकारक गैसों एवं सूक्ष्म कणों से परेशान दिल्ली वालों के फेफड़ों को कुछ महीने हरियाली से उपजे प्रदूषण से भी जूझना पड़ता है।

हवा में पराग कणों के प्रकार की कोई तकनीक नहीं बनी : विडंबना है कि परागकण से सांस की बीमारी पर चर्चा कम ही होती है। वैज्ञानिकों के अनुसार पराग कणों की ताकत उनके प्रोटीन में निहित होती है, जो मनुष्य के बलगम के साथ मिलकर अधिक जहरीले हो जाते हैं। ये प्रोटीन जैसे ही हमारे खून में मिलते है, एक तरह की एलर्जी को जन्म देते हैं। एक बात और, हवा में पराग कणों के प्रकार और घनत्व का पता लगाने की कोई तकनीक बनी नहीं है। वैसे तो पराग कणों के उपजने का महीना मार्च से मई मध्य तक है, लेकिन जैसे ही मानसून के दौरान हवा में नमी का स्तर बढ़ता है तो पराग कण और जहरीले हो जाते हैं। इस बार तो कोरोना वायरस जिस तरह अभी भी अबूझ पहेली बना हुआ है और उसका प्रसार तेजी से हो रहा है, उस स्थिति में वायु प्रदूषण बढ़ने पर इसका भी कहर भयंकर हो सकता है।

दिल्ली में विकास के नाम पर हो रहे अनियोजित निर्माण कार्य : यह तो सभी जानते हैं कि गर्मी के दिनों में हवा एक से डेढ़ किलोमीटर ऊपर तक तेज गति से बहती है। इसी लिए राजस्थान-पाकिस्तान के रास्ते आई रेत लोगों को सांस लेने में बाधक बनती है। मानकों के अनुसार हवा में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) की मात्र 100 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर होनी चाहिए, लेकिन अभी तो पारा 37 के करीब है और ये खतरनाक कण 240 के करीब पहुंच गए हैं। इसका एक बड़ा कारण दिल्ली में विकास के नाम पर हो रहे अनियोजित निर्माण कार्य भी हैं, जिनसे असीमित धूल तो उड़ ही रही है, यातायात जाम की दिक्कत भी पैदा हो रही है। हवा में पीएम ज्यादा होने का अर्थ है कि आंखों में जलन, फेफड़े खराब होना, अस्थमा, कैंसर एवं दिल के रोग।

जाम से गाड़ियां डेढ़ गुना ज्यादा ईंधन पी रही : वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) और केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान द्वारा हाल ही में दिल्ली की सड़कों पर किए गए एक गहन सर्वे से पता चला है कि दिल्ली की सड़कों पर लगातार जाम से गाड़ियां डेढ़ गुना ज्यादा ईंधन पी रही हैं। जाहिर है उतना ही अधिक जहरीला धुआं यहां की हवा में मिल रहा है। ठीक-ठाक बरसात होने के बावजूद दिल्ली के लोग इन दिनों बारीक कणों से परेशान हैं तो इसका मूल कारण विकास की वे गतिविधियां हैं जो बगैर अनिवार्य सुरक्षा नियमों के संचालित हो रही हैं। कोरोना-काल में भले ही कुछ महीने हवा की गुणवत्ता सुधरी थी, लेकिन जैसे ही जिंदगी पटरी पर आई, आज हर घंटे एक दिल्लीवासी वायु प्रदूषण का शिकार होकर अपनी जान गंवा रहा है।

वायुमंडल में ओजोन का स्तर 100 एक्यूआइ : गत पांच वर्षो के दौरान दिल्ली के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एम्स में सांस के रोगियों की संख्या 300 गुना बढ़ गई है। एक अंतरराष्ट्रीय शोध रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर प्रदूषण के स्तर को काबू में नहीं किया गया तो साल 2025 तक दिल्ली में हर साल करीब 32,000 लोग जहरीली हवा के शिकार होकर असामयिक मौत के मुंह में समा जाएंगे। यह भी जानना जरूरी है कि वायुमंडल में ओजोन का स्तर 100 एक्यूआइ यानी एयर क्वालिटी इंडेक्स होना चाहिए, लेकिन जाम से बेहाल दिल्ली में यह आंकड़ा 190 तो सामान्य ही रहता है। वाहनों के धुएं में बड़ी मात्र में हाइड्रोकार्बन होते हैं और तापमान चालीस के पार होते ही यह हवा में मिलकर ओजोन का निर्माण करने लगते हैं। यह ओजोन इंसान के शरीर, दिल और दिमाग के लिए जानलेवा है।

जाहिर है इस मौसम में निर्माण कार्यो पर धूल के नियंत्रण के लिए पानी का छिड़काव करने के साथ-साथ सड़कों पर जाम लगना रोकना जरूरी है। वहीं परागकणों से होने वाले नुकसान से बचने का एकमात्र उपाय इसके प्रति जागरूकता एवं संभावित प्रभावितों को एंटी एलर्जी दवाएं देना ही है। साथ ही दिल्ली में सार्वजनिक स्थानों पर किस तरह के पेड़ लगाए जाएं, इस पर भी गंभीरता से विचार करना होगा।

SHUBHAM SHARMA

Shubham Sharma is an Indian Journalist and Media personality. He is the Director of the Khabar Arena Media & Network Private Limited , an Indian media conglomerate, and founded Khabar Satta News Website in 2017.