कारगिल की लड़ाई में भारत ने पाकिस्तान को भले ही धूल चटाई हो लेकिन हमने भी अपने बेहद तेज़-तर्रार और युवा सैन्य अधिकारियों को खो दिया था. इनमें कैप्टन मनोज पांडे, कैप्टन विक्रम बत्रा, कैप्टन अनुज नायर जैसे नाम शामिल हैं. इन्हीं में से एक थे कैप्टन विजयंत थापर, एक ऐसा जवान जिसकी बदौलत भारत ने तोलोलिंग की चोटी पर तिरंगा फहराया.
कैप्टन थापर एक आर्मी परिवार में जन्मे थे. उनके पिता वीएन थापर भारतीय सेना में कर्नल रहे थे. विजयंत थापर के जन्मदिन पर पढ़िए उनकी ज़िंदगी से जुड़े कुछ खास पहलु और वो ख़त जो उन्होंने अपनी शहादत से पहले परिवार के नाम लिखा.
आखिरी ख़त जो आंखें नम कर देगा
शहादत से पहले अपने परिवार को कैप्टन विजयंत थापर ने लिखा था, ‘जब तक आप लोगों को यह पत्र मिलेगा, मैं ऊपर आसमान से आप को देख रहा होऊंगा और अप्सराओं के सेवा-सत्कार का आनंद उठा रहा होऊंगा. मुझे कोई पछतावा नहीं है कि जिंदगी अब खत्म हो रही है, बल्कि अगर फिर से मेरा जन्म हुआ तो मैं एक बार फिर सैनिक बनना चाहूंगा और अपनी मातृभूमि के लिए मैदान-ए-जंग में लड़ूंगा. अगर हो सके तो आप लोग उस जगह पर जरूर आकर देखिए, जहां आपके बेहतर कल के लिए हमारी सेना के जांबाजों ने दुश्मनों से लोहा लिया था.’
सिर्फ 6 महीने नौकरी में शहादत दी
कैप्टन थापर 12 दिसंबर 1998 के दिन आधिकारिक तौर पर 2 राजपूताना राइफल्स का हिस्सा बने थे. अगले ही साल मई 1999 में पाकिस्तान की घुसपैठ के चलते युद्ध की शुरुआत हो गई. जब भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ जंग छेड़ी थी तो कैप्टन थापर की उम्र महज़ 22 साल थी. 28 जून 1999 के दिन तोलोलिंग चोटी पर जीत के बाद थापर अपनी टुकड़ी के साथ थ्री पिम्पल्स और नॉल पर कब्ज़े की लड़ाई लड़ रहे थे. ऊंचाई से छिपकर सुरक्षित स्थान से गोलीबारी कर रहे दुश्मनों से लोहा लेना बेहद कठिन था.
इस लड़ाई में थापर के कई साथी शहीद हो चुके थे. लेकिन थापर बिना रुके आगे बढ़ रहे थे. उनका जोश और हिम्मत देखकर सभी हैरान थे लेकिन तभी एक गोली आकर उनके माथे पर लगी. उस वक्त सेना में उनकी नौकरी को सिर्फ 6 महीने हुए थे.