सिवनी। समूचे सिवनी जिले में इन दिनों जिस व्यवसाय की सबसे अधिक चर्चा है उसमें मजदूरी, ठेकेदारी, व्यापार, दलाली, झोलाछाप चिकित्सा न होकर आश्चर्य जनक रूप से पत्रकारिता है। जी हाँ पत्रकारिता के व्यवसाय याने पत्रकार बनने के लिए न तो अधिक श्रम की आवश्यकता है,न पूंजी की और तो और ना हीं किसी विशेष शिक्षा का मानदंड या डिग्री की।
बस करना इतना है कि थोड़े अलफाज हो,बकाबकिया हो,थोड़ा सा आधा अधूरा समाचारों का ज्ञान चाहे लिखना-पढऩा ना भी आता हो तो आप के लिए यह व्यवसाय काफी मुफ़ीद साबित हो सकता है। एक बार कहीं से यह तमगा या ठप्पा लगा नहीं कि आप सौ-दो सौ और कभी हजारों के आसामी बन सकते है।
वैसे इस पत्रकारिता की अवैध फसल को लहलहाने का मौका हमारे शासकीय हुक्मरान और कर्मचारी बरबस ही मुहैया कराते हैं। देखा जा रहा है इन दिनों जिसे कुछ करना नहीं सूझता और ऊपर बताई गई योग्यताऐ रखते हो तो वह पत्रकार बन जाता है।
पत्रकार बनने की फेहरिस्त में अखबार बांटने और बंडल बनाने वालों से लेकर कुख्यात जुआरी और सटोरिऐ व ब्याज में पैसे चलनेवाले से लेकर कुछ होटलों के बैरे और खानसामा भी है। इन्हे पत्रकार बनाने या बन जाने देने में हमारे स्थापिता समाचार पत्रों के संपादकों का भी कम योगदान नहीं है।
ठीक उसी तर्ज पर जैसे बड़े नेता अपने लग्गा भग्गुओं को खैरात बांटता है। खरपतवार गाजर घास की तरह उग आए पत्रकारों का झुरमुट,खास तौर पर जनपद जिला पंचायत सोसायटियों के दफ्तर,तहसील और पंचायतों में पनपता देखा जा सकता है।
इन स्वनामधारी पत्रकारों के बारे में क्या जिलाधिकारी, अनुविभागीय अधिकारी (एस .डी.एम)या फिर जनसंपर्क कार्यालय को जानकारी नहीं है ?ऐसा हो नहीं सकता तो फिर ये जिम्मेदार आखिर खामोश क्यों है? क्या कहीं इनकी भी तो नब्ज नहीं दबी है? जो भी हो पर इस उदासीनता से गैर पेशागत और ब्लैकमेलर इनश सों जो अपने आपको पत्रकार बताते हैं और अपने वाहनों पर कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक की तर्ज पर प्रेस का मोनो चस्पा करते हैं से स्थापित और वास्तविक पत्रकारों को यदा-कदा अपमान का सामना करना पड़ता है और काफी हद तक पत्रकारिता व्यवसाय की थू-थू- हो रही है से इंकार नहीं किया जा सकता।