सिवनी, धारनाकला (एस. शुक्ला): उप आयुक्त अखिलेश निगम सिवनी के स्थानांतरण के बाद से सहकारी समितियों में शिकायतों के आधार पर चल रही जांच तथा धान शार्टेज की वसूली से लेकर धारा 60 की कार्यवाई तथा अनियमितताओं से सम्बंधित जांच तथा कार्रवाई पर जैसे विराम सा लग गया है और कार्रवाई तथा जांच वर्तमान में विभागीय उदासीनता के चलते नोटिस तामीली तक ही सिमटकर रह गई है।
यही कारण है कि किसानों से जुड़ी सहकारी समितियों को लाखों के नुकसान तथा हानि के साथ गर्त में ले जाने वाले जवाबदार लगातार सहकारी समितियों को दीमक की तरह कुरदते चले आ रहे हैं पर विभागीय उदासीनता के चलते आज तक किसानों से जुड़ी सहकारी समितियों पर इनका ध्यान क्यों नहीं है समझ से परे है।
धान उपार्जन नीति विभागीय उदासीनता के चलते कागजों में सिमटी
उल्लेखनीय है कि शासन द्वारा बनाई गई उपार्जन नीति विभागीय और जवाबदारों की निष्क्रियता के कारण कागजों में सिमटकर रह गई है। चूंकि उपार्जन नीति पर अमल आज तक करने का प्रयास नहीं किया गया है, इसलिए खरीदी प्रभारी अपने निजी स्वार्थ के लिए लाखों से करोड़ रुपये तक की छति और हानि समिति को पहुंचाते चली गई है।
जबकि उपार्जन नीति के अनुसार, खरीदी प्रभारी का यह दायित्व है कि उपार्जित स्कंध की सुरक्षित अभिरक्षा में रखकर एवं एफ एक्यू स्कंध उपार्जन एजेंसी को पूर्ण स्कंध प्रदान करने की जिम्मेदारी खरीदी प्रभारी की होती है।
किन्तु उपार्जन केन्द्रों में हजारों किवटल धान के शार्टेज के साथ-साथ सहकारी समितियों को भी लाखों की छति हुई है, और इस हेतु संबंधित खरीदी प्रभारी उत्तरदायी है। इसके साथ ही संस्था अथवा समिति को प्राप्य कमीशन राशि से भी जो लाखों में होती है, वंचित रहना पड़ा है।
किन्तु इस दिशा में और समितियों को घाटे से उबारने में संबंधित विभाग की ठोस कार्रवाई अब तक सामने नहीं आई है, और यही कारण है कि लगातार सहकारी समितियां धान उपार्जन नीति के तहत नियमों का पालन न होने से भारी नुकसान और हानि के दौर से गुजर रही हैं।
खरीफ धान उपार्जन मे स्कंध कमी की राशि वसूली मे विभागीय निष्क्रियता
उल्लेखनीय है कि खरीफ धान उपार्जन में जिले की अधिकांश सहकारी समितियों और स्व-सहायता समूहों ने खरीदी मात्रा से हजारों क्विंटल धान के परिवहन में कमी की है, जिससे समितियों को लाखों रुपये की छति और हानि का सामना करना पड़ रहा है। कुछ समितियों पर नजर डालने पर यही स्कंध की कमी करोड़ों में पहुंच जाती है। उदाहरण के रूप में, खरीदी केन्द्र खामी द्वारा 52,756 किवटल धान की खरीदी की गई, लेकिन खरीदी में परिवहन मात्रा और गोदाम में 51,611 क्विंटल धान जमा करने से 1,145.24 क्विंटल धान का शॉर्टेज हुआ, जिससे 23,35800 तेईस लाख पैंतीस हजार आठ सौ रूपये की भारी छति और हानि होने से समिति को उबारने वाली कार्रवाई ठंडे बस्ते में चली गई।
खरीदी केन्द्र धारनाकला और धोबीसर्रा में आदिम जाति सहकारी समिति लालपुर ने 1,710 क्विंटल धान की खरीदी करते हुए 34,88,040 चौतीस लाख अठाहत्तर हजार चालीस रुपये की लंबी हानि होने से समिति के खाते में नुकसान हुआ। इस संबंध में वसूली और राशि जमा करने के लिए उपायुक्त सहकारिता ने नोटिस भी जारी किया गया था, लेकिन यही कार्रवाई उपायुक्त अखिलेश निगम के स्थानांतरण के साथ समाप्त हो गई और लाखों की हानि से समिति को उबारने वाली कार्रवाई ठंडे बस्ते में चली गई।
वेतन के लालच पर 89 दिन की भर्ती में समिति पीछे नहीं रही
जहां एक तरफ अधिकतर सहकारी समितियां घाटे का रोना रही हैं और समिति में भले ही कर्मचारियों को महीनों से वेतन न मिला हो, किन्तु समिति के कर्ता धर्ता सहकारिता नियमों को ताक पर रखकर दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी अथवा 89 दिन की नियुक्ति करने में पीछे नहीं रहे हैं, जिसमें अपने सगे सम्बन्धियों और रिश्तेदारी पर इनके द्वारा विशेष ध्यान दिया गया है, और यह भी सामने आया है कि जो एक बार सहकारी समिति में लग गया फिर उसके परिवार से ही नियुक्ति को महत्व जरूर दिया जायेगा, चूंकि इनके अनुसार यह सहकारिता का नियम है जो इनके द्वारा बनाया गया है। वही दूसरी तरफ ऐसे भी मामले सामने हैं जहां विधिवत अनुकंपा नियुक्ति के लिए परिवार समिति के चक्कर लगा रहा है, किन्तु जो कर्मचारी सहकारी समिति में कार्यरत रहते जीवित तथा स्वस्थ हैं, उनके परिवार से समिति में नियुक्ति जरूर हो गई है।
सिवनी कलेक्टर के आदेश पर भी कार्रवाई नहीं
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि संबंधित विभाग द्वारा कलेक्टर के आदेश को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है, ऐसी स्थिति में अनुमान लगाया जा सकता है कि सामान्य लोगों के द्वारा की गई शिकायत पर कितना अमल किया जाता होगा। जबकि उपायुक्त अखिलेश निगम के द्वारा शिकायत पर कार्रवाई भी की गई तथा धारा 60 के तहत जांच के आदेश भी दिए गए, किन्तु यह जांच तथा कार्रवाई भी महीनों से लम्बित है, जिस पर संबंधित विभाग का ध्यान नहीं है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि किसानों से जुड़ी सहकारी समितियों का क्या आलम होगा।
प्रशासक के स्थान परिवर्तन से बदली तस्वीर
उल्लेखनीय है कि जिले की सहकारी समितियों में संचालक बोर्ड के न रहने के चलते समितियों के संचालन का दायित्व समिति प्रबंधक के साथ साथ प्रशासक के हाथों में था, किन्तु जिले की सहकारी समितियों से प्रशासकों के स्थान भी परिवर्तन किये गए हैं। ऐसी स्थिति में सहकारी समितियों की विधिवत जांच तथा वसूली की कार्रवाई के प्रभावित होने से भी इंकार नहीं किया जा सकता। वही दूसरी तरफ जिनकी पूर्व से शिकायत है तथा जिनके तीन वर्ष पूर्ण हो चुके हैं, वे आज भी सहकारिता विभाग में अंगद की तरह पैर जमाए हुए हैं। जिले के संवेदनशील जिला कलेक्टर क्या इस ओर ध्यान देंगे, कार्रवाई करेंगे?