सिवनी, मध्य प्रदेश: राज्य के वन विभाग से जुड़ा एक चौंकाने वाला और शर्मनाक मामला सामने आया है, जिसने प्रशासनिक सिस्टम की कार्यशैली पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। जानकारी के अनुसार वन विभाग का एक एसडीओ (सब डिविजनल ऑफिसर) अपने शासकीय आवास को नियमों की धज्जियाँ उड़ाते हुए शराब और कबाब पार्टी का अड्डा बनाए हुए है।
सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि इस पूरे मामले की लिखित शिकायतें संबंधित उच्च अधिकारियों तक पहुंच चुकी हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। सरकारी आवास को ‘शराब-कबाब का अड्डा’ बनाने वाले SDO का नाम और साफ़ सुथरी फोटो आप अगली खबर में जल्द ही पढ़ और देख पाएंगे.
सरकारी आवास में जाम, कबाब और ‘खास महफिल’
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, संबंधित एसडीओ अपने शासकीय आवास में आए दिन देर रात तक शराब और मांसाहार की पार्टियाँ आयोजित करता है। इन पार्टियों में विभाग के कुछ कर्मचारी, बाहरी लोग और कथित “खास मेहमान” शामिल होते हैं।
नियमों के मुताबिक,
- शासकीय आवास का उपयोग निजी मौज-मस्ती के लिए नहीं किया जा सकता
- शराब सेवन और पार्टी पूर्णतः प्रतिबंधित है
इसके बावजूद खुलेआम नियमों की अनदेखी की जा रही है।
शिकायत में मौजूद हैं पुख्ता सबूत
सूत्रों की मानें तो शिकायतकर्ताओं ने
- फोटो,
- वीडियो,
- और प्रत्यक्षदर्शियों के बयान
के साथ यह मामला अधिकारियों के सामने रखा है।
शिकायत में यह भी आरोप है कि
“एसडीओ न केवल खुद नियम तोड़ रहा है, बल्कि विरोध करने वाले कर्मचारियों को डराने-धमकाने का काम भी करता है।”
कार्रवाई क्यों नहीं? संरक्षण किसका?
सबसे बड़ा सवाल यही है कि
- जब सबूत मौजूद हैं,
- शिकायत दर्ज है,
तो फिर उच्च अधिकारी मौन क्यों हैं?
क्या यह मामला
- विभागीय मिलीभगत का है?
- या फिर ‘पद और पहुंच’ के दम पर कार्रवाई को दबाया जा रहा है?
यदि यही हाल रहा तो आम जनता का प्रशासन से भरोसा पूरी तरह टूट जाएगा।
जंगल बचाने वाला अधिकारी खुद कानून तोड़े तो…?
वन विभाग का अधिकारी, जिसका काम
- जंगलों की सुरक्षा,
- अवैध गतिविधियों पर रोक,
- और अनुशासन कायम रखना है,
अगर वही शराब-कबाब पार्टी में डूबा रहे तो यह पूरे सिस्टम पर तमाचा है।
जनता की मांग – हो निष्पक्ष जांच, हो सख्त कार्रवाई
स्थानीय नागरिकों और सामाजिक संगठनों ने मांग की है कि
- मामले की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए
- दोषी पाए जाने पर तत्काल निलंबन हो
- और शासकीय आवास के दुरुपयोग पर कड़ी कार्रवाई की जाए
अब देखना यह है कि प्रशासन कब जागता है या फिर यह मामला भी फाइलों में दबकर रह जाएगा।

