डेस्क।भारत की प्राचीन सप्तपुरियों में से एक श्रीजगन्नाथ पुरी धाम को पुरुषोत्तम पुरी, शंख क्षेत्र, श्रीक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। पुरी के इस पावन धाम में हर साल की भांति इस साल भी आषाढ शुक्ल द्वितीया यानि 12 जुलाई 2021 को भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा होने जा रही है, लेकिन कोरोना काल के चलते इस साल यात्रा में भगवान जगन्नाथ के भक्त नहीं शामिल हो पाएंगे।
उड़ीसा के पुरी शहर में निकलने वाली इस पावन रथयात्रा को गुण्डीचा यात्रा, पतितपावन यात्रा, जनकपुरी यात्रा, घोषयात्रा, नवदिवसीय यात्रा तथा दशावतार यात्रा के नाम से भी जाना जाता है। आइए जानते हैं भगवान जगन्नाथ की इस महायात्रा से जुड़ी कछ ऐसी ही रोचक बातें
1 — भगवान जगन्नाथ मूल रुप से भगवान विष्णु के दशावतारों में से एक हैं और इनके लिए निकाली जाने वाली रथयात्रा एक सांस्कृति महापर्व है।
2 — कोरोना महामारी के चलते लगभग 285 साल में पहली बार ऐसा होगा, जिसमें बगैर भक्तों के ही भगवान जगन्नाथ की महायात्रा पूरी होगाी।
3 — कहने के लिए तो रथयात्रा मात्र एक दिन की होती है, लेकिन सच तो यह है कि यह सांस्कृतिक महोत्सव वैशाख मास की अक्षय तृतीया से आरंभ होकर आषाढ माह की त्रयोदशी तक चलता है।
4 — पुरी की इस रथयात्रा के लिए कई महीने पहले से तैयारी शुरु हो जाती है। इस साल अक्षय तृतीया यानि 15 मई से रथनिर्माण का पवित्र कार्य प्रारंभ हुआ।
5 — विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा में में भगवान जगन्नाथ को श्रद्धापूर्वक रथ पर विराजमान करा कर नगर में भ्रमण करवाया जाता है।
6 — रथयात्रा की यह पावन परंपरा राजा इंद्रद्युम्न के शासनकाल से चली आ रही है।
7 — रथयात्रा में निकलने वाले तीन भव्य रथों में से भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम नंदिघोष, बलभद्रजी के रथ का नाम तालध्वज रथ और देवी सुभद्रा के रथ का नाम देवदलन रथ है, जिस पर देवी सुभद्राजी के साथ सुदर्शन जी को भी बिठाया जाता है।
8 — रथयात्रा के दिन सबसे आगे बलभद्र जी का रथ तालध्वज रथ और उसके बाद देवदलन रथ तथा सबसे आखिर में भगवान श्री जगन्नाथ का रथ नंदिघोष चलता है।
9 — प्रत्येक वर्ष होने वाली इस दिव्य रथयात्रा में चलने वाले तीनों नये रथों का निर्माण होता है और पुराने रथों को तोड़ दिया जाता है। रथों के निर्माण के लिए लकड़ी इकट्ठी करने का कार्य बसंत पंचमी से प्रारंभ होता है। जिसका संग्रह अमूमन दशपल्ला के जंगलों से होता है।
10 — रथों के निर्माण का कार्य परंपरागत तरीके से चले आ रहे भोईसेवायतगण यानि श्रीमंदिर से जुड़े बढ़ई ही करते हैं।
11 — रथ-निर्माण में लगभग 205 प्रकार के सेवायतगण सहयोग करते हैं। जिस प्रकार पंचतत्वों से मानव शरीर बना है, ठीक उसी प्रकार से पांच तत्व यानि काष्ठ, धातु, रंग, परिधान और सजावट के समान से इस भव्य रथ का निर्माण होता है।
12 — रथ निर्माण का कार्य पुरी के गजपति महाराजा श्री दिव्यसिंहदेवजी के राजमहल श्रीनाहर के ठीक सामने रखखल्ला में होता है।
13 — रथयात्रा जगन्नाथ मंदिर से प्रारंभ होकर गुण्डिचा मंदिर तक पहुंचती है।
14 — यहां भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी के हाथों से बना पूडपीठा ग्रहण करते हैं और सात दिनों तक गुण्डीचा मंदिर में विश्राम करते हैं।
15 — गुण्डिचा मंदिर वही स्थान है जहां पर विश्वकर्मा जी ने भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा जी के विग्रहों का निर्माण किया था।
16 — द्वितीया से नवमी तक भगवान गुण्डिचा मंदिर में ही विश्राम करते हैं। मान्यता है कि गुण्डिचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ जी के निवास के दौरान सभी तीर्थ आकर उपस्थित होते हैं।
17 — रथ यात्रा के तीसरे दिन माता लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ जी को ढूढ़ते हुए यहां आती हैं, लेकिन पुजारियों द्वारा दरवजा बंद कर देने से नाराज होकर माता लक्ष्मी रथ का पहिया तोड़कर वापस चली जाती हैं। इसके बाद भगवान जगन्नाथ स्वयं उन्हें मनाने के लिए जाते हैं।
18 — आषाढ़ शुक्ल दशमी के दिन भगवान गुण्डिचा मंदिर से रथ के द्वारा ही अपने मंदिर के लिए यात्रा करते हैं।
19 — मान्यता यह है कि रथयात्रा में शामिल होने का पुण्य 100 यज्ञों के बराबर होता है। यही कारण है कि न सिर्फ पुरी पावन धाम में बल्कि देश—विदेश में यह यात्रा धूम-धाम से होती चली आ रही है।
20 — मान्यता है कि रथयात्रा में शामिल होने वाले भक्त पर भगवान जगन्नाथ की पूरी कृपा बरसती है और वह तमाम लौकिक सुखों को भोगता हुआ मोक्ष को प्राप्त होता है।
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