श्योपुर (मध्य प्रदेश) में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) द्वारा किया गया स्ट्रेटोस्फेरिक एयरशिप का पहला सफल परीक्षण न केवल भारतीय रक्षा तकनीक के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हुआ है, बल्कि इसने भारत को उन सीमित देशों की श्रेणी में ला खड़ा किया है, जिनके पास उच्च ऊंचाई पर दीर्घकालिक निगरानी और पृथ्वी अवलोकन क्षमताएं हैं।
क्या है स्ट्रेटोस्फेरिक एयरशिप और क्यों है यह महत्वपूर्ण?
स्ट्रेटोस्फेरिक एयरशिप एक अत्याधुनिक, हल्के वजन का प्लेटफॉर्म है जो समताप मंडल (Stratosphere) में बहुत ऊंचाई पर उड़ान भरने में सक्षम होता है। यह परंपरागत उपग्रहों और ड्रोन से अलग, अधिक समय तक एक ही स्थान पर स्थिर रह सकता है, जिससे यह निगरानी, संचार और आपातकालीन सेवाओं के लिए अत्यंत उपयोगी साबित होता है।
इस एयरशिप को विशेष रूप से 17 किलोमीटर की ऊंचाई तक उड़ाने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जो वाणिज्यिक हवाईजहाजों की सामान्य उड़ान ऊंचाई से कहीं ऊपर है। इस ऊंचाई पर यह सर्वेक्षण, निगरानी, खुफिया संग्रह (ISR), और संचार पुनर्प्रेषण (Communication Relay) जैसे महत्वपूर्ण कार्य कर सकता है।
DRDO successfully conducts maiden flight trial of Stratospheric Airship with instrumental payload to an altitude of around 17 kms. This lighter than air system will enhance India’s earth observation and Intelligence, Surveillance & Reconnaissance capabilities, making the country… pic.twitter.com/HXeSl59DyH
— DRDO (@DRDO_India) May 3, 2025
डीआरडीओ का तकनीकी चमत्कार: एडरडे द्वारा विकसित एयरशिप
एरियल डिलीवरी रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट (एडरडे), आगरा, द्वारा डिज़ाइन और निर्मित यह स्ट्रेटोस्फेरिक एयरशिप डीआरडीओ की दीर्घकालिक योजना का हिस्सा है। एडरडे ने इस सिस्टम को खास तौर पर ऊंची ऊंचाई पर ऑपरेशन के लिए स्वदेशी तकनीक से तैयार किया है, जो इसे आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक और ठोस कदम बनाता है।
टेस्ट फ्लाइट की प्रमुख विशेषताएं
- स्थान: श्योपुर, मध्य प्रदेश
- उड़ान ऊंचाई: लगभग 17 किलोमीटर (55,000 फीट)
- उड़ान अवधि: लगभग 62 मिनट
- लोड: एक इंस्ट्रूमेंटल पेलोड, जिसमें ऑनबोर्ड सेंसर और डेटा संग्रहण उपकरण शामिल थे
- प्रणालियाँ: परीक्षण के दौरान लिफाफा दबाव नियंत्रण प्रणाली और आपातकालीन अपस्फीति प्रणाली का सफल परीक्षण किया गया
डेटा संग्रह और भविष्य की रणनीति
उड़ान के दौरान एयरशिप में लगे सेंसरों ने महत्वपूर्ण डेटा एकत्रित किया, जो आगे चलकर हाई फिडेलिटी सिमुलेशन मॉडल के निर्माण में मदद करेगा। यह मॉडल भविष्य की लंबी अवधि वाली स्ट्रेटोस्फेरिक मिशनों के लिए जरूरी आधारभूत संरचना तैयार करेगा।
डीआरडीओ टीम द्वारा इस एयरशिप को सुरक्षित रूप से पुनः प्राप्त कर लिया गया, जिससे इसके गहन विश्लेषण और अगली टेस्ट श्रृंखलाओं की योजना बनाई जा सके।
रक्षा मंत्री और डीआरडीओ प्रमुख की प्रतिक्रियाएं
रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने इस ऐतिहासिक परीक्षण के लिए डीआरडीओ को बधाई दी और इसे भारत की ISR क्षमताओं को बढ़ाने वाला निर्णायक कदम बताया। उन्होंने कहा कि यह सफलता भारत को उन गिने-चुने देशों की पंक्ति में खड़ा करती है, जिनके पास स्वदेशी उच्च ऊंचाई वाले निगरानी प्लेटफॉर्म विकसित करने की क्षमता है।
डीआरडीओ के अध्यक्ष डॉ. समीर वी. कामत ने कहा कि यह परीक्षण वायुमंडल में हल्के प्लेटफॉर्म सिस्टम की अवधारणा को वास्तविकता में बदलने की दिशा में निर्णायक कदम है, जो आने वाले समय में भारत की रक्षा और सुरक्षा जरूरतों के लिए गेम चेंजर साबित होगा।
एयरशिप से जुड़ी संभावनाएं और उपयोग
1. निगरानी और सुरक्षा
सीमाओं पर निरंतर निगरानी, आतंकी गतिविधियों की पहचान, समुद्री ट्रैकिंग, और संवेदनशील क्षेत्रों में खुफिया गतिविधियों पर नजर रखने में यह प्रणाली क्रांतिकारी भूमिका निभा सकती है।
2. आपदा प्रबंधन और संचार
प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप, बाढ़, चक्रवात आदि के दौरान यह एयरशिप संचार पुल के रूप में कार्य कर सकती है, जिससे प्रभावित क्षेत्रों में राहत कार्य तेजी से और प्रभावी ढंग से किया जा सके।
3. पर्यावरण और मौसम निगरानी
वायुमंडलीय डेटा संग्रह, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की निगरानी, और वातावरणीय प्रदूषण का विश्लेषण करने के लिए यह एक स्थायी मंच प्रदान करता है।
4. रक्षा एवं युद्ध रणनीति
रियल टाइम डेटा और लंबी अवधि तक टिके रहने की क्षमता इसे लड़ाई के समय बहुत उपयोगी बनाती है। यह दुश्मन की गतिविधियों पर लगातार नजर रखने और उपयुक्त समय पर कार्रवाई सुनिश्चित करने में मदद करता है।
भारत की आत्मनिर्भरता की दिशा में एक और कदम
यह परीक्षण भारत के स्वदेशी रक्षा निर्माण क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में उठाया गया एक और बड़ा कदम है। इससे न केवल विदेशी तकनीकों पर निर्भरता कम होगी, बल्कि यह भारत को तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर बनाने में भी योगदान देगा।
भविष्य की दिशा
डीआरडीओ अब इस प्रोटोटाइप के आधार पर दीर्घकालिक उड़ानें और भारी पेलोड संचालन पर कार्य करेगा। निकट भविष्य में यह एयरशिप लंबी अवधि तक समताप मंडल में स्थिर रहकर डेटा संचार, निगरानी और वैज्ञानिक अनुसंधान कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेगा।
डीआरडीओ द्वारा मध्य प्रदेश में किए गए इस स्ट्रेटोस्फेरिक एयरशिप के पहले परीक्षण ने न केवल भारत की वैज्ञानिक क्षमता का प्रदर्शन किया है, बल्कि यह रक्षा क्षेत्र में भारत के वैश्विक नेतृत्व की ओर संकेत करता है। ऐसे नवाचार भारत को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर और तकनीकी रूप से सक्षम बनाते हैं, जो आने वाले समय में सुरक्षा और रणनीति के क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव लाएंगे।