गगनयान मिशन बना भारत का पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन

SHUBHAM SHARMA
By
SHUBHAM SHARMA
Shubham Sharma – Indian Journalist & Media Personality | Shubham Sharma is a renowned Indian journalist and media personality. He is the Director of Khabar Arena...
13 Min Read

गगन यान मिशन भारत का पहला मानव युक्त अंतरिक्ष मिशन होगा, इस मिशन में इसरो किसी भारतीय को पहली बार अंतरिक्ष में भेजेगा| सोवियत संघ के स्पेसक्राफ्ट से 1984 में एस्ट्रोनॉट राकेश शर्मा स्पेस में जाने वाले पहले भारतीय बन चुके हैं| इस बार खुद भारत अपनी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर के इस “गगन यान” मिशन के जरिये किसी भारतीय को अंतरिक्ष में सात दिनों तक रखेगा|

भारत के पहले मानव युक्त अंतरिक्ष मिशन के लिए अंतरिक्ष यात्रियों के चयन में 6 महीने से 1 साल का वक्त लग सकता है जिसके बाद उन लोगों की ट्रेनिंग शुरू होगी| सोवियत संघ ने सबसे पहले अप्रैल 1961 में अपने वैज्ञानिक यूरी गागरिन को अंतरिक्ष में भेजा था| इसके बाद मई 1961 में अमेरिका ने भी अंतरिक्ष में इंसान को भेज दिया था| चीन 2003 में अपने ही अंतरिक्ष यान से अपने एस्ट्रोनॉट को अंतरिक्ष में भेजने वाला तीसरा देश बन गया|

In this post you will read about “Gaganyaan Mission in Hindi” language, which is very important current affairs topic for your upcoming competitive examination.Here you will also find previous year question related to Indian Space Research Organization (ISRO).

गगन यान मिशन की शुरुवात जब हम आजादी के 75वें साल का जश्न मना रहे होंगे भारत एक ऐसी उपलब्धि को हासिल कर चुका होगा जिसे फिलहाल सिर्फ तीन देशों अमेरिका रूस और चीन ने ही हासिल किया है| 2022 तक भारत का अंतरिक्ष यान किसी भारतीय को लेकर अंतरिक्ष में जाएगा,यह मिशन पूरा होगा गगन-यान से, इसरो के वैज्ञानिक इस मिशन के लिए जुड़ गए हैं| 72वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर 15 अगस्त 2018 को लाल किले से प्रधानमंत्री ने ऐलान किया कि 2022 तक गगन यान के जरिए भारत पहली बार अंतरिक्ष में किसी भारतीय को भेजेगा| ऐसा होने पर भारत मानव को अंतरिक्ष पर पहुंचाने की उपलब्धि हासिल करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा|

फिलहाल अमेरिका, रूस और चीन ही मानव यान को अंतरिक्ष में भेजने में समर्थ है| गगन यान, इसरो के सबसे बड़े रॉकेट जीएसएलवी यानी जिओ सिंक्रोनस सेटेलाइट लॉन्च वेहिकल मार्कथ्री के जरिए लॉन्च किया जाएगा| भारत के पहले मानव रहित अंतरिक्ष मिशन को लेकर इसरो के वैज्ञानिक भी काफी उत्साहित हैं| इसरो के चेयरमैन ने कहा कि गगन यान मिशन चुनौतीपूर्ण है, लेकिन इसरो इस लक्ष्य को भी हासिल करने की क्षमता रखता है|

प्रधानमंत्री के ऐलान के बाद उन्होंने कहा कि देश के अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजने वाली प्रौद्योगिकी विकसित की जा चुकी है, इस दिशा में मानव मॉड्यूल के साथ ही पर्यावरण नियंत्रण और जान बचाने की प्रणाली जैसी प्रौद्योगिकी विकसित हो चुकी है| इसरो के चेयरमैन ने जानकारी दी कि “गगन-यान” भेजने के पहले इसरो दो मानवरहित मिशन को अंजाम देगा, इस परियोजना के लिए जीएसएलवी का इस्तेमाल किया जाएगा|
gaganyaan

गगन यान मिशन की सम्पूर्ण जानकारी

भारतीय मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम को गगन यान के जरियेअंजाम दिया जाएगा| गगन यान भारतीय चालित कक्षीय अंतरिक्ष यान है|

अंतरिक्ष यान को तीन लोगों को ले जाने के हिसाब से डिजाइन किया जा रहा है| इसके तहत एक नियोजित अपग्रेड किए गए संस्करण को डॉकिंग क्षमता से लैस किया जाएगा|

अपने पहले मानवयुक्त मिशन में गगन यान 3.7 टन के कैप्सूल में 3 लोगों के दल के साथ 7 दिनों के लिए 400 किलोमीटर की ऊंचाई तक पृथ्वी की परिक्रमा करेगा|

अंतरिक्ष कैप्सूल में जीवन नियंत्रण और पर्यावरण नियंत्रण प्रणाली होगी| अंतरिक्ष यान में लिक्विड प्रोपेलेंट युक्त दो इंजन होंगे| इस मिशन पर करीब 9000 करोड़ रुपए की लागत आएगी|

बेंगलुरु के इसरो टेलीमेट्री ट्रैकिंग कमांड सेंटर से अंतरिक्ष यान की 24 घंटे निगरानी की जाएगी| इस कार्यक्रम में मानव को अंतरिक्ष तक पहुंचाने और धरती पर वापस सुरक्षित लाने से जुड़ी सारी तकनीक शामिल होंगी|

इस ड्रीम प्रोजेक्ट की कमान एक महिला के हाथ में होगी| इसरो के इस गगन यान प्रोजेक्ट की अगुवाई वीआर ललिताम्बिका करेंगी| उन्होंने भारत के रॉकेट प्रोग्राम में अहम भूमिका निभाई है| भारत के पहले मानव रहित अंतरिक्ष मिशन की अगुवाई एक महिला के जरिए किया जाना बड़ी उपलब्धि है|

इसरो ने गगन यान मिशन को राष्ट्रीय मिशन करार दिया है| इसरो का कहना है कि इस मिशन के लिए जरूरी अधिकांश महत्वपूर्ण तकनीकों का विकास हो चुका है| इसरो अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षित करने के लिए बेंगलुरु में प्रशिक्षण सुविधा संपन्न केंद्र बनाएगा| इस साल 5 जुलाई को ही इसरो ने देश के पहले मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम की दिशा में सफलता पाई थी|

5 जुलाई 2018 को वैज्ञानिकों ने श्रीहरिकोटा में पहले क्रू एस्केप सिस्टम कैप्सूल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया था| क्रू एस्केप सिस्टम कैप्सूल को अंतरिक्ष यात्री अपने साथ ले जा पाएंगे और अंतरिक्ष में उनके साथ कोई दुर्घटना होती है तो वह इस कैप्सूल का इस्तेमाल कर पाएंगे|

संस्कृत में व्योम का मतलब होता है अंतरिक्ष यान को लेकर शुरुआती अध्ययन और तकनीकी विकास का काम ऑर्बिटल व्हीकल के नाम से 2006 में शुरू किया गया था| इसके तहत अंतरिक्ष में एक हफ्ता गुजारने लायक मरक्यूरी क्लास अंतरिक्ष यान के समान कैप्सूल का डिजाइन तैयार किया जाना था| यह दो अंतरिक्ष यात्रियों को ले जाने के लिए और वापस पानी में लैंड किए जाने के लिए बनाया जाना था| मार्च 2008 तक डिजाइन को अंतिम रुप दिया गया और भारत सरकार के पास फंडिंग के लिए पेश किया|

गगन यान मिशन की ट्रेनिंग

भारत के पहले मानव युक्त अंतरिक्ष मिशन के लिए अंतरिक्ष यात्रियों को ट्रेनिंग देना एक बड़ी चुनौती है,इसके लिए इसरो बेंगलुरु में सारी सुविधाओं से संपन्न ट्रेनिंग सेंटर बना रहा है हालांकि कम समय होने की वजह से देश के पहले मानव युक्त अंतरिक्ष मिशन गगन यान पर जाने वाले अंतरिक्ष यात्रियों की ट्रेनिंग रूस या अमेरिका में ही हो पाएगी| बेंगलुरु में बनने वाला यह ट्रेनिंग सेंटर देश के भविष्य के मानव मिशन के लिए काफी कारगर साबित होगा| कागजी तौर पर अंतरिक्ष यात्रियों के लिए प्रशिक्षण सुविधा की योजना 2008-09 से बननी शुरू हो गई थी| मौजूदा योजना के तहत भारत के “गगन-यान” के एस्ट्रोनॉट्स की ट्रेनिंग बेंगलुरु में नहीं होगी|

बेंगलुरु शहर के बाहरी इलाके देवनहल्ली में ट्रेनिंग सेंटर बनाया जाएगा| जोकि केंपेगौडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट से 8 से 10 किलोमीटर दूर है| इस प्रशिक्षण केंद्र का नाम एस्ट्रोनॉट ट्रेनिंग एंड बायोमेडिकल इंजीनियरिंग सेंटर होगा| जिसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानि इसरो विकसित करेगा| 40 से 50 एकड़ जमीन में विकसित किया जायेगा| भारत के पूरी तरह से विकसित होने के बाद ही यहां पर अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षण दिया जाएगा| इसरो के चेयरमैन का कहना है कि गगन यान मिशन के लिए बहुत ही कम समय बचा है इसलिए आप इस मिशन के अंतरिक्ष यात्रियों को देवनहल्ली ट्रेनिंग सेंटर में प्रशिक्षण नहीं दिया जा सकता| अंतरिक्ष यात्रियों के लिए देवनहल्ली में बनने वाला ट्रेनिंग सेंटर भारतीय वायुसेना के सहयोग से से विकसित किया जाएगा| इस ट्रेनिंग सेंटर में भविष्य में मानव सहित अंतरिक्ष यान मिशन के लिए एस्ट्रोनॉट्स को ट्रेनिंग दी जाएगी| इसके अलावा रिकवरी मिशन और रेस्क्यू ऑपरेशन जैसे कामों के लिए प्रशिक्षण केंद्र के रूप में तैयार करने की घोषणा की है| इस ट्रेनिंग सेंटर में प्रशिक्षित एस्ट्रोनॉट्स के जीरो ग्रेविटी में रहने की व्यवस्था होगी ताकि अंतरिक्ष यात्रियों को धरती पर ही अंतरिक्ष में रहने का माहौल मिल सके| इसके लिए सुविधा देने के उपकरण लगाए जाएंगे| इसमें भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा की ओर से बताए गए अनुभवों की मदद की जाएगी|

अंतरिक्ष में जाने के बाद की चुनौतिया

अंतरिक्ष में इंसान को भेजना काफी जोखिमों से भरा है, इसमें न सर भारी पैसों की जरूरत होती है बल्कि इंसान जान को भी हर वक्त खतरा रहता है| परेशानी यह है कि लॉन्च पैड से जैसे ही यान अंतरिक्ष की ओर जाता है, मशीन से ज्यादा इंसानों की जान को लेकर तरह-तरह की आशंकाएं सिर उठाने लगती है|

एक इंसान को अंतरिक्ष में जाने के लिए शारीरिक और मानसिक दक्षता ही नहीं, बल्कि प्रकृति के विरुद्ध काम कर सकने लायक क्षमताएं विकसित करनी होती है| इसके लिए बेहद खास किस्म का प्रशिक्षण और विशेषज्ञता भी हासिल करनी होती है| धरती की कक्षा से बाहर जाते हुए सबसे पहले एक इंसान गुरुत्वाकर्षण फील्ड में बदलाव की चुनौती का सामना करता है, दरअसल एक गुरुत्वाकर्षण फील्ड से दूसरे गुरुत्वाकर्षण फील्ड में जाने के लिए इंसान को कई शारीरिक और मानसिक चुनौतियां सामने आती है|

इसमें दिमाग हाथ और आंखों का तालमेल गड़बड़ाने लगता है, गुरुत्वाकर्षण के अभाव में हड्डियों से पोषक तत्व खत्म होने लगते हैं| सही व्यायाम और उचित डाइट के अभाव में मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं और यहां तक कि आंखों की नजर पर भी बुरा असर पड़ता है|

दूसरी चुनौती है रॉकेट के भीतर यात्रा करना, यह कोई आम यात्रा नहीं होती, अंतरिक्ष में जाते हुए एक आम रॉकेट 0 से 29000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार महज 30 मिनट पर हासिल कर लेता है| रॉकेट अंतरिक्ष में जाने का यह दौर बड़ा ही नाजुक होता है, कई बार रॉकेट चरण में दुर्घटना का शिकार भी हो जाते हैं|

एक बार स्पेस या स्पेस स्टेशन में जाने के बाद अंतरिक्ष यात्रियों की नई मुश्किलें शुरू होती है अंतरिक्ष में रेडिएशन का खतरा धरती से 10 गुना ज्यादा होता है, रेडिएशन की चपेट में आने से थकान,उल्टियां, तंत्रिका तंत्र से जुड़ी तमाम परेशानियां और यहां तक कि कैंसर तक हो सकता है|

अंतरिक्ष पर बनी कई फिल्मों में आपने देखा होगा कि कैसे स्पेस में कोई वातावरण ही नहीं है, वहां कोई प्रेशर भी नहीं है, जिस से इंसान खून गर्म हो जाता है| अंतरिक्ष यान में एक पृथ्वी जैसा ही वातावरण होना चाहिए, ताकि अंतरिक्ष यात्रियों को पर्याप्त ऑक्सीजन ,उचित तापमान और आर्द्रता का स्तर मिल सके|

इन तमाम चुनोतियों के बाद भी इंसान अंतरिक्ष में कई अनजान चुनौतियों का सामना करता है| इसमें अलगाव के कारण व्यवहार से जुड़ी समस्याएं ,थकान नींद ना आना और दूसरे मनोवैज्ञानिक विकार भी हो सकते है|

भारत के अंतरिक्ष का सफ़र इतिहास

21 नवंबर 1963 को तुंबा में पहला रॉकेट लोच करने के साथ ही बच्चे के पहले कदमों की तरह भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत हुई और उसके बाद से भारत ने अपने अंतरिक्ष का सफर में कई मील के पत्थर पार कर लिए हैं| आज हमारा देश अपने लिए दूसरे देशों के लिए उपग्रहों का निर्माण करने के साथ साथ उन का प्रक्षेपण भी कर रहा है| और इतना ही नहीं हमने मंगल ग्रह तक पहुंच बनाने में भी कामयाबी हासिल करनी है |

हमारे देश में अंतरिक्ष अनुसंधान गतिविधियों की शुरुआत 1968 के दौरान हुई| भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम साराभाई ने देश के सक्षम और उत्कृष्ट वैज्ञानिकों, मनोवैज्ञानिक,योग प्रचारक और समाज विज्ञानियों को मिलाकर भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का नेतृत्व करने के लिए एक दल गठित किया और यहीं से भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का सफर शुरू हो गया|

- Join Whatsapp Group -
Share This Article
Follow:
Shubham Sharma – Indian Journalist & Media Personality | Shubham Sharma is a renowned Indian journalist and media personality. He is the Director of Khabar Arena Media & Network Pvt. Ltd. and the Founder of Khabar Satta, a leading news website established in 2017. With extensive experience in digital journalism, he has made a significant impact in the Indian media industry.
Leave a Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *