“कोरोना मुक्त एक स्वतन्त्रता दिवस आए”
माँ भारती के लाडलों ने स्वयं को निद्रा की गोद में सुलाया, तब जाकर त्याग और बलिदान के चरम से भारत स्वतंत्र हो पाया।
स्वतंत्रता नहीं है सहज सरल शब्द मात्र, एक मधुर गौरवान्वित अनुभूति को करता यह चरितार्थ।
कैसा अधूरा है यह 15 अगस्त का आयोजन, नहीं हो रहा कोई भी सामूहिक सांस्कृतिक समायोजन।
भारत में कोरोना से विजयी होने की लड़ाई है जारी, अब आई आत्मनिर्भर भारत बनाने की बारी।
नहीं दिख रहा बच्चों में कोई जोश-खरोश, कोरोना ने किया सबको घरों में खामोश।
सच्चें अर्थों में कोरोना से आज़ाद होना होगा, आर्थिक व्यवस्था सुदृढ़ करने के लिए संघर्षरत रहना होगा।
बनानी होगी कोरोनामुक्त भारत की तस्वीर, सबकी उन्नति के साथ ही बदलेंगी भारत की तकदीर।
घर में रहकर लगाना है देश के विकास का नारा, स्वस्थ आत्मनिर्भर पुनः भारत देश हो हमारा।
भारत तो हैं वैश्विक नेतृत्व क्षमताओं का सशक्त उदाहरण, आशावादी दृष्टिकोण से जीतना है हमें कोरोना का रण।
देदीप्यमान रश्मि पुंज बनकर चमकेंगे विश्व पटल पर, स्वतंत्रता और स्वच्छन्दता को समझेंगे यदि यथार्थ धरातल पर।
सही अर्थों में आज़ादी की कीमत अब समझ में आई, जब कोरोना ने वैश्विक महामारी की विकराल छबि अपनाई।
पुनः कोरोना मुक्त भारत का करना है यशोगान, डॉ. रीना कहती भारत देश फिर बनाएगा अपनी स्वर्णिम पहचान।
डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)