नई दिल्ली। एक साल से भी लंबा अरसा हो गया, जब हम सभी ने कभी खुलकर उत्सव मनाया होगा। कोरोना महामारी के इस दौर में उत्सव हुए भी हैं तो ज्यादातर उनकी रस्म अदायगी भर ही हुई है। कहीं, वायरस का खतरा था तो कहीं कानून का डर। रविवार यानी आज से देशवासियों को खुलकर उत्सव मनाने का एक मौका मिल रहा है। आम उत्सवों से यह अलग है। यह उत्सव जिंदगी को बचाने का है। यह उत्सव अपने और अपनों को वैश्विक महामारी से संरक्षित करने का है। यह उत्सव टीकाकरण का है।
कोरोना महामारी के खिलाफ भारत की अब तक की लड़ाई शानदार रही है। दुनिया के विकसित देशों के मुकाबले हम महामारी को न सिर्फ बहुत हद तक सीमित रखने में सफल रहे थे, बल्कि एक समय तो ऐसा लगने लगा था कि भारत इस वायरस से मुक्त होने वाला है। उसी समय कुछ राज्यों में महामारी की दूसरी लहर उठनी शुरू हुई। अब इसकी वजह जो भी रही है, लेकिन दूसरी लहर संभलने का मौका नहीं दे रही। देश की बहुत बड़ी आबादी को यह अपनी चपेट में लेने को बेताब है। इसको रोकने के फिलहाल दो ही विकल्प हैं। टीकाकरण और कोरोना के नियमों का ईमानदारी और कड़ाई से अनुपालन।
देश में अब तक 10 करोड़ से ज्यादा लगाए जा चुके हैं टीके
कोरोना वायरस के खिलाफ देश में टीकाकरण तेजी से चल रहा है। अब तक 10 करोड़ से ज्यादा टीके लगाए जा चुके हैं। परंतु, महामारी के फैलने की रफ्तार को देखते हुए टीकाकरण को और तेज करने की जरूरत है। इसी को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों से 11-14 अप्रैल के बीच ‘टीका उत्सव’ मनाने की अपील की है। कोरोना रोधी टीका इसकी गारंटी तो नहीं देता कि इसको लगवाने के बाद आप संक्रमित नहीं होंगे, लेकिन 99.9 फीसद इसकी वारंटी जरूर रहती है कि संक्रमित होने के बाद भी आपकी जिंदगी को खतरा नहीं होगा।
पीएम की अपील का हुआ है असर
‘टीका उत्सव’ के सफल होने की पूरी उम्मीद है। कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई में हमने देखा है, कि प्रधानमंत्री मोदी ने जब-जब भी देशवासियों से कुछ उम्मीद की है, देश के लोगों ने उम्मीद से ज्यादा ही योगदान किया है। बात चाहें एक दिन के जनता कफ्र्यू की हो, ताली या थाली बजाने की हो या फिर सख्त लॉकडाउन की। इन प्रयासों से कोरोना संक्रमण के प्रसार की गति को रोकने में बहुत हद तक कामयाबी मिली थी और भारत पहली लहर के चरम को कुछ महीनों के लिए टालने में सफल रहा था।
महामारी के खिलाफ लड़ाई हमारी
महामारी के खिलाफ लड़ाई हम सभी की है। लेकिन देश में यह लड़ाई भी दलों में बंटती नजर आ रही है। कई राज्यों में टीके की कमी को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। यह बताने की जरूरत नहीं है कि ऐसे राज्यों में विरोधी दलों की सरकारें हैं और इन राज्यों में स्थिति भी गंभीर है। टीके की कमी बताकर टीकाकरण रोक दिया जा रहा है। अगर वास्तव में टीके की कमी है तो उसे दूर किए जाने की जरूरत है, अन्यथा अगर यह राजनीति है तो फिर इससे गंदी राजनीति कुछ हो नहीं सकती।
यूं तो यह उत्सव चार दिनों का है, लेकिन आप इसे महामारी के खत्म नहीं होने तक का उत्सव बना सकते हैं। इसके लिए बस आपको इतना करना है कि खुद तो टीका लगवाएं ही दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करें। यह तब तक करते रहें जब तक देश को महामारी से मुक्त न करा लें।