श्रम से प्रजनित होता है सत्य – सतीष भारतीय

By SHUBHAM SHARMA

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shram se prajnit hota hai saty

इस धरती के अर्जमन्द महापुरुषों ने जिस प्रकार प्रथक-प्रथक विषयों पर अपने कथन व विचार दिये तो वह अतीव इंसानों की दृष्टि में सत्य हो गए।

लेकिन क्या वह वाकई सत्य हैं? यह महज़ वह महापुरुष या वह इंसान ही भली भांति जानता होगा जिसने उन कथनों और विचारों का भलीभाँति जीवन में पूर्णरूपेण प्रयोग किया होगा।

वरना इंसानों का यह कहना कि महापुरुषों द्वारा जो भी कहा गया वह सत्य है वह बिना प्रयोग के उपयुक्त नहीं है यह ठीक उसी प्रकार हैं जिस प्रकार हम सूर्य को पहले भगवान कहते थे लेकिन फिर पता चला कि सूर्य हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा पिंड है मगर गौर करने योग्य है कि आज भी जिन इंसानों को यह नहीं पता सूर्य एक पिंड या तारा है तो वह आज भी सूर्य को भगवान मानते हैं और भगवान के रूप में पूजते भी हैं तथा यह तो आप जानते ही हैं कि सूर्य का महाभारत के काल में जिक्र होता है और सूर्य के बेटे कर्ण की गाथाएँ तो हम सदियों से सुनते आ रहे हैं और टीवी पर तो हम बीसवीं सदी से देखते आ रहे हैं एंव यह सब कितना सत्य है और कितना असत्य है मुझे यह ज्ञात नहीं है। 

धरती पर हमें बहुत से ऐसे दृश्य  दिखते हैं जिन्हें देखकर हम उन्हें सत्य मान लेते हैं पर हमारे मस्तिष्क में यह प्रश्न उठना मुहाल होता है कि यह सत्य क्यों है? और यह जानने के लिए आप जितना श्रम करेंगे उतना आपको ज्ञात होगा कि वह सत्य क्यों है। 

मौजूदा युग में सोशल मीडिया खासकर फेसबुक पाठशाला और व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी पर जिस तरह सत्य की गंगा बहती दिखाई रही है वह इंसानों की सोच पर और मूल रूप से श्रम पर निकृष्ट प्रभाव ही नहीं डाल रही बल्कि सत्य को पहचानने के लिए श्रम करने की शक्ति को सीमित कर रही है। 

सोशल मीडिया पर आपने महापुरुषों के या किसी लोकप्रिय व्यक्ति के विचारों को पढ़ लिया तो आपको 2 मिनट नहीं लगते और आप तय कर लेते है क्या सही है और क्या गलत है तथा जब इच्छा हुई तो उन शब्दों को कहीं भी लिख देते हैं और कहीं भी बोल दिते है तथा सुनने और पढ़ने वाले स्वीकार भी कर लेते हैं यही इंसानों की नजर में सत्य की अवधारणा बन गई है लेकिन यह कहीं ना कहीं असत्य प्रमाणित होती है क्योंकि अपने द्वारा या किसी दूसरे द्वारा बोले गए शब्द तब तक सही मायनों में समग्र रूप से सत्य साबित नहीं होते जब तक उनका आपने अपने जीवन में श्रम के साथ विभिन्न परिस्थितियों में प्रयोग नहीं किया है। 

यदि ठोस शब्दों में कहें तो आप किसी भी विचार और विषय आदि पर जितना ज्यादा श्रम करेगें उतना ही आप सत्य को पहचान पाएंगे और आपका सत्य तब तक सत्य नहीं है जब तक उसे आप लिखने तथा पढ़ने के अलावा जीवन के विभिन्न पहलुओं में उसका प्रयोग नहीं करते हैं।

हमारी दिनचर्या में हम आए दिन यहां वहां सुनते और पढ़ते हैं कि झूठ नहीं बोलना चाहिए, किसी का बुरा नहीं करना चाहिए, हमें अपने अंदर नैतिक मूल्यों को जिंदा रखना चाहिए आदि ऐसे विचार आपने सोशल मीडिया से लेकर विभिन्न पुस्तकों और आदि जगहों पर पढ़े तथा सुने होंगे एवं इन पर सोचते भी होगें लेकिन उनकी सत्यता किस मात्रा तक है यह आपको तभी पता चलेगा जब आप उन शब्दों का जीवन में प्रयोग करेगें और आपके जीवन की परिस्थितियों पर लागू किये गये वह विचार आप में सत्यता तथा असत्यता निर्मित करते हैं। 

अब बात करें हम असली सत्य की तो आपके मस्तिष्क यह प्रश्न प्रादुर्भूत होना लाजमी है कि सत्य की अवधारणा यथार्थता में प्रजनित कैसे होती है? तो इसका जवाब यह है कि असलियत में सत्य श्रम से पैदा होता आप जिस भी विषय पर सत्य को खोजते है तो उस विषय पर आपके द्वारा किये गये श्रम का परिणाम आपको सत्य से वाक़िफ़ कराता हैतथा आप जितना श्रम करेगें उतना सत्य को जानेगें लेकिन यह भी ध्यातव्य है कि सत्य को जानने के लिए आपके द्वारा किया गया श्रम परिस्थितियों के अनुसार आपके मस्तिष्क में सत्य और असत्य की व्याख्या करता है तथा जो आपकी नजर में सत्य होगा हो सकता है वह दूसरे की नजर में असत्य हो क्योंकि जब आप सत्य को जानने के लिए श्रम करते हैं तो हो सकता है आपकी परिस्थितियां अलग हो और आप उस श्रम से पैदा हुए परिणाम को असत्य भी मान सकते हैं और दूसरे व्यक्ति के श्रम से पैदा हुए परिणाम को वह उसकी परिस्थितियों के अनुसार सत्य मान सकता है और सही मायनों में यही सत्य की व्याख्या हो सकती है यानी आप जिस स्तर का विभिन्न परिस्थितियों में यथार्थ को जानने के लिए श्रम करेगें उसी स्तर तक आप यथार्थ को जान सकते हैं और यही जीवन का असली सत्य है। 

SHUBHAM SHARMA

Shubham Sharma is an Indian Journalist and Media personality. He is the Director of the Khabar Arena Media & Network Private Limited , an Indian media conglomerate, and founded Khabar Satta News Website in 2017.

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