दिल्ली: दिल्ली विधायक अमानतउल्लाह खां के साथ जितने मौलानाओं ,इमाम ,मुफ़्तीयो व धर्म गुरुओं ने ऐलान किया है कि डासना मंदिर महन्त यति नरसिंघानन्द जी की गिरफ्तारी के लिए शुक्रवार की नमाज के बाद जिलाधिकारी व पुलिस को ज्ञापन दिया जाएगा एवम ये कार्य तब तक चलेगा जब तक गिरफ्तारी नही होती ।
मुस्लिम धर्म गुरुओं का कहना है कि यति महाराज आपसी सौहार्द खराब कर रहे हैं । एवम हमारा मुस्लिम समाज सभी धर्मों का सम्मान करता है एवम किसी अन्य धर्म या धर्म गुरू से कोई विद्वेष नही रखता है । तो ये स्वागत योग्य बात है पर यदि वास्तव में मुस्लिम धर्म गुरुओं की ये सकारात्मक सोच है तो ला इलाहा इल्लल्लाह मोहम्मद रसूलल्लाह कलमे का क्या अर्थ है जिसका भावार्थ स्पष्ट संदेश देता है कि अल्लाह के अलावा कोई दूसरा भगवान पूजनीय नहीं है”.
यदि ओर आगे की बात करें तो वो 24 आयते कौन सी है जिन पर सन 1986 में दिल्ली के मैट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट जेड़एस लोहाट ने एक जजमेंट पास कर लिखा था कि इन आयतों के सूक्ष्म अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि ये आयतें बहुत हानिकारक हैं और घृणा की शिक्षा देती हैं।
जिनसे एक तरफ मुसलमानों और दूसरी ओर देश के शेष समुदायों के बीच मतभेद पैदा होने की संभावना है। हाल ही में खुद मुस्लिम समुदाय के वसीम रिजवी ने माननीय सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर उन आयतों पर रोक लगाने की मांग की है जिससे इस्लामिक कट्टरपंथ को बढ़ावा मिलता है खैर अब ये कानूनी विषय है परंतु प्रश्न ये है कि जब मुस्लिम धर्म गुरु आपसी सौहार्द की बात कर रहे हैं तो खुले मन से उन चीजों को क्यों स्वीकार नही करते जिससे गैर मुस्लिम समाज की भावनाओ को ठेस पहुचती है एवम गैर मुस्लिमो के प्रति आक्रामक विचार का पोषण होता है ।
आज आधुनिक युग मे समय है कि हम सभी उन कुरूतियों या प्रथाओं को अपनी सभ्यता से दूर करें जिससे समाज को नुकसान हो रहा है। हिन्दू समाज ने भी सामाजिक सुधार हेतु अपनी बहूत से पुरानी प्रथाओं पर पाबंदी लगाई है । इसी प्रकार मुस्लिम समाज को भी उन विचारों को प्रतिबंधित करना चाहिए जिसमें विद्वेष की भावना का जन्म होता हो अन्यथा आज का समाज आधुनिक व शिक्षित है जिसमे हर व्यक्ति पढ़ता है व उन चीजो के खिलाफ बोलता भी है जो गलत है ।
तो प्रत्येक के खिलाफ फतवा निकालेना , गर्दन व जीभ कलम करने की बात करना , सर तन से जुदा व तन सर से जुदा कहना ये सब बातें किसी भी विकसित व सभ्य समाज का हिस्सा नही हो सकती।
मुस्लिम समाज को गैर मुस्लिम समाज के लिए काफ़िर,कुफ्र व उनके प्रति हिसांत्मक विचारधारा को प्रतिबंधित करना चाहिए यदि मुस्लिम समाज इस विचारधारा पर प्रतिबंध नही लगाता तो इसका अर्थ साफ है कि आपसी सौहार्द की बात करना व दूसरे धर्मों के प्रति सम्मान दिखाना एक नाटक मात्र है एवम शिक्षित समाज को आज सब कुछ जानने जा अधिकार के साथ अभिव्यक्ति की आजादी के निमित गलत बातों का विरोध करने का भी अधिकार है।