कोरोनाकाल में कैसा रहा देश का हाल

By SHUBHAM SHARMA

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हमारे देश में जब से कोरोना आया तब से हमें एक अलहदे रूप में खामोशी देखने मिली और मुँह पर मास्क व हाथों में सैनिटाइजर दिखाई देने लगा तथा इंसानी दूरियाँ बढ़ गयीं एंव चारों ओर सोशल डिस्टेंसिंग जैसे शब्द की आहट सुनाई देने लगी तो वहीं हमारी सरकार ने इस महामारी से निपटने लिए जो रणनीतियां बनाई थी

वह किस हद तक उपयुक्त थी या उपयुक्त नहीं थी यह भी एक गौर करने योग्य विषय रहा है और इससे भी दूर्भेद्य प्रश्न यह है कि कोरोना के बीच जिस तरह प्रधानमंत्री तथा नेताओं ने कहा थाली बजाओ, 21 दिन में जीत लेंगे कोरोना की जंग यह महज एक अंधविश्वास ही साबित हुआ और थाली व ताली के आसरे क्या वाकई कोरोना दूर हुआ? या फिर नेताओं के उन बयानों से कोरोना दूर हुआ जिसमें कहा गया कि गाय के मूत्र का सेवन करने से कोरोनावायरस नहीं हो सकता है खैर अब तो लगता है कि नेताओं की जुबान आवाम को गुमराह करने तथा कट्टरतापूर्ण राजनीति करने ही बनी है। 

इस कोरोना काल में हमने देश की स्वास्थ्य व्यवस्था की दशा भी देखी और अस्पतालों की अव्यवस्था की पोल पट्टी भी खुलकर हमारे सम्मुख आ गई लेकिन सबसे सुखद खबर यही रही कि हमारे कोरोना योध्दाओं जिनमें खासकर डॉक्टर्स, पुलिस व्यवस्था, मीडियाकर्मी आदि ने अपना अहम अवदान अदा किया मगर सबसे दुखद खबर यह रही एक तो कोरोना महामारी से इन्सानों की जान गयी वहीं ऑक्सीजन की किल्लत भी हजारों इंसानों की जान निगल गयी। 

दूसरी ओर ध्यातव्य यह भी है कि भारत जैसे विशालकाय जनसंख्या वाले देश में कोरोना से बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किस दायरे तक संभव है आप शायद देखते होंगे कि हमारे देश में बसों में किस प्रकार से यात्रियों को ठूंस-ठूंस कर ले जाया जाता है मानो यूं लगता है कि यात्री कोई सामान है तथा इससे भी विस्तृत और वाजिब उदाहरण हमारी रेल व्यवस्था है

जिसके अंदर रेलों में आम लोग टॉयलेट के पास बैठकर भी सफर करने को मजबूर हो जाते हैं तथा ऐसी भीड़-भाड़ वाले साधनों में कोरोना से बचाओ का पालन कहाँ तक संभव है खैर यह तो सामान्य सी बात है इससे भी तागड़ी बात यह है कि छोटे-छोटे चुनाव से लेकर बंगाल चुनाव में जो सरकार का लचड़पन वाला रवैया दिखा उसने भी कोरोना को हवा दी बाकी कोरोना को बढा़ने का कार्य बहती गंगा में हाथ धोकर कुंभ स्नान ने कर दिया हां लेकिन कुछ लोगों की इस बात से धार्मिकता और आस्था खतरे में आ जाएगी मगर यह रंगीन पर्दे के पीछे की काली सच्चाई है। 

अब इस कोरोना काल में सरकार की तारीफ की बात तो रह ही गई तो आपको यह आगाह कर दें कि सरकार ने वर्ष 2020 में कोरोना काल की शुरुआत के उपरांत 20 लाख करोड़ के राहत पैकेज की घोषणा की थी जिसमें मुफलिस कामगारों तथा झोपड़पट्टी वाले  गरीब व्यक्तियों को ₹10000 रुपए लघु उद्योग शुरू करने के लिए लोन के रूप में दिये जाने की बात की और यह वही पैसा था

जिससे गरीब परिवार का 2 माह का भरण पोषण करना भी दूभर था अब बात जरा उसकी भी कर ले जिसे सरकारी उचित मूल्य की दुकान भी कहा जाता है उसके लिए सरकार ने कहीं इल्ली लगा चना तो कहीं तिलूला लगा खराब हो चुका चावल बटवाया तथा उसके पश्चात् तो आलम यह हो गया सरकारी उचित मूल्य की दुकानों पर बाजरा के भी दर्शन हो गए जिसे ले जाकर लोगों ने रोटी के रूप में थोड़ा सा चखा और फिर अपना बाजरा लेकर दुकानों पर बेच दिया। 

अब जरा जिक्र कोरोनाकाल कि शिक्षा का भी कर लिया जाए तो अच्छा रहेगा तो मुझे लगता है कि प्राथमिक शिक्षा का वह विद्यार्थी भी इस कोरोना काल की ऑनलाइन शिक्षा से भली भांति परिचित हो चुका होगा वहीं दूसरी ओर वह 10वीं और 12वीं के विद्यार्थी है जो शायद इस दौर में सबसे ज्यादा मानसिक तनाव से ग्रसित रहे हैं उनके हाथ में महज ऑनलाइन क्लास ही रही जिनके हाथों में कलम और किताबें होती थी तथा सोच में बोर्ड परीक्षा के उत्तम एग्जाम होते थे

हालांकि अब वह बिना परीक्षा के पास हो जाएंगे इससे विद्यार्थियों के लिए थोड़ी चिंता कम होना तो स्वाभाविक है परंतु यथार्थ यह भी है कि उनके मुस्तकबिल की रोशनी पर तिमिर की स्याही दिख रही है अब हम गौर करते हैं उन युवाओं कि तरफ  जिनकी वजह से भारत को दुनिया सबसे युवा देश कहा जाता है जहां 35.6 करोड़ आबादी युवाओं की है जिनमें ऐसे युवा शामिल हैं जिन्हें पढ़ाई करते हुये 15 से 20 वर्ष हो गए हैं उनका ख्वाब नौकरी पाना था जो अब इस बेरोजगारी की दशा में स्वयं का खर्चा चलाने के लिए मोहताज है

यदि इनकी ऑनलाइन शिक्षा की बात की जाय तो इनकी डिग्रियां पूर्ण होने को है और इन्होंने तकरीबन 2 साल से कॉलेजों के दर्शन नहीं किए ऐसे में इनका साथी मोबाइल ही रहा है तथा जिनके पास मोबाइल नहीं था उनके पास मस्तिष्क की कल्पना ही थी। 

इस कोरोना तथा लॉकडाउन के मध्य  सबसे बड़े मजदूरों के पलायन और किसान आंदोलन पर यदि बात ना की जाए तो पूर्ण रूप से बात अधूरी रह जाएगी। मजदूरों के पलायन में मजदूरों की स्थिति तथा किसान आंदोलन में किसानों की स्थिति या तो वह मजदूर और किसान जानते होंगे या फिर यह कायनात जानती होगी कि कैसी अकल्पनीय  परिस्थितियों में लाखों की तादात में मजदूरों के पलायन और किसान आंदोलन का जन सैलाब हमने देखा भी और सहा भी तथा अधिकार और न्याय के लिए लिए डटे रहे लेकिन पीछे मुड़कर नहीं देखा। 

इस कोरोना काल में हमारे देश के हजारों मुफलिस प्रवासी मजदूर पैदल चलते-चलते मर गए और हजारों किसान आंदोलन करते-करते मर गए मगर ना मजदूरों की पुकार सुनी गयी और ना किसानों की हुंकार सुनी गयी बस सुनी गयी तो सिर्फ सरकार की तानाशाही आवाज सुनी गयी। उन मजदूरों के साथ उनके बच्चों का बचपन कड़ी धूप में पैदल सड़कों पर गुजरा तो लाखों किसान बरसात और ठंड में जीने को मजबूर हो गये पर वाजिब इंसाफ ना मजदूरी करने वाले मजदूर को मिला और ना किसानी करने वाले किसान को मिला हां लेकिन इस दौरान किसान आंदोलन के समर्थन में कुछ जमींर वाले इंसानों ने अपने पदों की आहुति दे दी। 

ब हम जिक्र करते हैं कि कोरोना वायरस भारत में कैसे आया तो सबसे पहले हमारे मस्तिष्क में यह प्रश्न प्रजनित होना अत्यावश्यक कि कोरोना वायरस हमारे देश में आया कैसे और कौन लाया क्या कोरोना पैदल चलकर हमारे देश में आ गया या फिर किसी गरीब का तांगा या टैक्सी उसे लेने विदेश गई थी? खैर ये प्रश्न तो विचारणीय है लेकिन हंसने वाली बात भी है अब आते है मूल वजह पर तो वह वजह यही है कि हमारे देश में कोरोनावायरस वही लेकर आये जो हवाई जहाजों में बैठकर हवा में उड़कर विदेश गए थे मगर असलियत में कोरोना वायरस शारीरिक, मानसिक, आर्थिक व शैक्षणिक, परेशानियों का सबब ज्यादातर मध्यम व निम्न वर्ग के लिए बन गया।

लेकिन किसी अर्ज़मंद महापुरुष ने क्या खूब कहा है कि “इस पूरी दुनिया में इतना अंधकार नहीं कि वह एक छोटे से दीपक के प्रकाश को मिटा सके” और यकीनन उम्मीदों के सूरज का कभी अंत नहीं होता है रफ़्ता-रफ़्ता कोरोना खत्म होगा तथा हमारे देश की खुशहाली व समृद्धि पुनः लौट आयेगी।
लेखक: सतीश भारतीय

SHUBHAM SHARMA

Shubham Sharma is an Indian Journalist and Media personality. He is the Director of the Khabar Arena Media & Network Private Limited , an Indian media conglomerate, and founded Khabar Satta News Website in 2017.

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