हमारे मुल्क की मीडिया जिसे भारतीय संदर्भ में लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है और यकीनन लोकतंत्र की विद्यमानता को कायम रखने में मीडिया का अहम अवदान रहा है तथा यदि यह कहा जाए तो भी समुचित होगा कि मीडिया मन की नहीं बल्कि जन की आवाज का एक यथोचित जरिया है भारत में जब से कोरोना काल का आगाज हुआ है तब से मीडिया का एक विविक्त रूप हमें देखने मिला है और मीडिया की मुसलसल तत्परता भी गंभीर रही है चाहे वह कोरोना मरीजों की स्थिति की खबरें रही हो, सोशल डिस्टेंसिंग के संदेश, मजदूरों का भीषण पलायन, किसान आंदोलन,ऑक्सीजन की कमीं की आहट हो, रेमडेशिविर इंजेक्शन की खलल, अस्पतालों की अव्यवस्था हो या फिर आवाम को कोराना महामारी के प्रति जागरूक करना रहा हो मीडिया ने इन सभी खबरों और जागरूकता पूर्ण संदेशों को विचारशीलता से प्रस्तुत कर अपना बेहद अहम अवदान अदा किया है मगर यह भी सत्य है कि हमारे मुल्क में दो तरह की मीडिया है एक जनसरोकार वाली मीडिया है दूसरी सरकार की चापलूसी वाली मीडिया है।
अब हम बात करते हैं कोरोनाकाल के उस आलम की जिसने समूचे विश्व में न महज जन-धन की क्षति की वरन् इन्सानी दूरियाँ भी की और रिश्तों में भी दरार उद्भूत कर दी जिसका उदाहरण यह भी है कि आपने समाचारपत्र में पढ़ा होगा या टीवी पर देखा हो या फिर आप उस स्थिति में शरीक रहें हो जहाँ कोरोना से किसी के पिता या परिजन की मौत हो जाती है और उनके बेटे व परिवार उनका शव लेने से भी इंकार कर देते हैं तथा इस वक्त तो दशा यह है कि कोरोना से इंतकाल होने वाले व्यक्ति का शव दाहसंस्कार के लिए किसी भी परिजन को अब नहीं दिया जा रहा है इसके पीछे एक तो संक्रमण फैलने का डर है दूसरी ओर अफवाह यह भी है कि ऐसी स्थिति में मानव तस्करी को अंजाम दिया जा रहा है।
इससे आप तसव्वुर कर सकते कि ऐसे दुर्भेद्य हालातों में मीडिया की आखों में नींद न आयी हां लेकिन मीडिया जगत के कुछ अनुभवी और ख़्याति प्राप्त लोग सदा के लिए सो गये दूसरों की दास्ताँ कहते-कहते जिनमें रिपब्लिक भारत चैनल के एंकर विकास शर्मा, आज तक न्यूज़ चैनल के एंकर रोहित सरदाना, इंडिया टुडे ग्रुप के नीलांशु शुक्ला, टीवी–9 मराठी के पत्रकार पांडुरंग रायकर, पत्रकार शेष नारायण सिंह, पाइनियर अख़बार की राजनीतिक संपादक ताविषी श्रीवास्तव, पत्रकार गोविंद भारद्वाज, समाचार एजेंसी पीटीआई के पत्रकार अमृत मोहन जैसे आदि पत्रकारों की कोरोना वायरस के संक्रमण से मौत हो गयी।
वैश्विक स्तर पर अंतरराष्ट्रीय मीडिया निगरानी सगंठन प्रेस इम्बलम कैंपेन (पीईसी) का कहना है कि कोरोना के कारण दुनियाभर में वर्ष 2020 में 602 पत्रकारों की मौत हुई थी अमेरिका में सबसे अधिक 303 पत्रकारों की मौत हुई। एशिया में 145 मौतें दर्ज की गईं, यूरोप में 94, उत्तरी अमेरिका में 32 और अफ्रीका में 28 मौतें तथा हमारे भारत में 53 मौतें रिकॉर्ड की गईं।
आपको सचेत कर दें कि बोलता हिन्दुस्तान की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 28 दिनों में 52 पत्रकार कोरोना की वजह से मर चुके हैं तथा वन इंडिया के मुताबिक देश में अब तक 165 पत्रकार कोरोना के कारण अपनी जान गंवा चुके हैं। हमारे देश में 2021 में अप्रैल माह में प्रतिदिन लगभग 2 पत्रकारों की कोरोना से जान गई है।
वहीं कोरोना से पत्रकारों की होती मौतों को देखकर कई राज्यों के सीएम ने उन्हें आर्थिक मदद का फ़रमान भी जारी किया जैसे उत्तर प्रदेश के मूख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ऐलान किया था कि पत्रकारों को 5 लाख का स्वास्थ्य बीमा तथा कोरोना से मौत पर 10 लाख की सहायता दी जायेगी और तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री के. पलानीस्वामी ने घोषणा की थी कि यदि कोई पत्रकार कोराना वायरस से मरता है तो उसके परिवार को 5 लाख रूपये की सहायता दी जायेगी तथा हाल ही में झारखंड के पूर्व सीएम रघुवर दास ने मृत मीडिया कर्मियों को 5-5 लाख रुपए देने की मांग की है।
लेकिन केन्द्र सरकार की तरफ से विभिन्न राज्यों के मीडिया कर्मियों के लिए जिन्हें कोरोना योध्दा कहकर भी संबोधित किया गया उन्हें ना तो कोई विशेष स्वास्थ्य व्यवस्था की गयी और न ही सरकार द्वारा कोई आर्थिक मदद का ऐलान किया गया बस केवल मीडिया कर्मियों को सरकार द्वारा कोरोना योध्दा कहकर आश्वासन दे दिया गया।
भारत में जब से कोरोना आया है तब से बहुत से लोगों की नौकरियां भी गयीं हैं जिनमें मीडिया जगत के छोटे-बड़े अनुभवी लोग भी शरीक हैं जिनकी नौकरियां चली गयीं ऐसे कई समाचार समूह हमारे सम्मुख है जिन्होंने आय की कम प्राप्ति होने पर अपने मीडिया कर्मियों को नौकरी से निकाल दिया है जिनमें दैनिक हिंदी अख़बार ‘हिंदुस्तान’ का एक सप्लीमेंट ‘स्मार्ट’ बंद हुआ है इस सप्लीमेंट में क़रीब 13 लोगों की टीम काम करती थी जिनमें से 8 लोगों को कुछ दिनों पहले इस्तीफ़ा देने के लिए बोल दिया गया।
दिल्ली-एनसीआर से चलने वाले न्यूज़ चैनल ‘न्यूज़ नेशन’ ने 16 लोगों की अंग्रेज़ी डिजिटल की पूरी टीम को नौकरी से निकाल दिया था। टाइम्स ग्रुप में ना सिर्फ़ लोग निकाले गए हैं बल्कि कई विभागों में छह महीनों के लिए वेतन में 10 से 30 प्रतिशत की कटौती भी गई है।
इसी तरह नेटवर्क18 में भी जिन लोगों का वेतन 7.5 लाख रुपये से अधिक है उनके वेतन में 10 प्रतिशत की कटौती हुई है कुछ दिनों पहले द हिंदू के मुंबई ब्यूरो से लगभग 20 पत्रकारों के इस्तीफे लिए जाने का मामला भी सामने आया था औरटाइम्स ऑफ इंडिया ने अपने कई संस्करण बंद कर दिए महाराष्ट्र के सकाल टाइम्स ने अपने प्रिंट एडिशन को बंद कर 50 से अधिक कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया तथा हिंदुस्तान टाइम्स मीडिया समूह ने भी लगभग 150 कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया एवं एक सूचना के जरिये मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार अनवर खान ने बताया कि भोपाल के एक नामी ग्रामी समाचार समूह द्वारा 50 मीडिया कर्मियों को नौकरी से एक साथ निकाला गया है और इस वक्त तो कोरोना महामारी से आलम यह हो गया है कि मीडिया जगत के बहुत से लघु समाचारपत्र तथा समाचार चैनल बंद भी हो गये हैं यह ऐसे समाचार समूह थे जिनकी आय का प्रमुख जरिया विज्ञापन ही था जिससे स्थिति यह उद्भूत हो गयी है कि श्रमजीवी पत्रकारों को अपनी आजीविका चलाना भी मुहाल हो गया है तथा इस दौर में मीडिया के क्षेत्र में आने वाले विद्यार्थियों के सम्मुख भी चुनौतियां ज्यादा है रोजगार कम है तथा यदि रोज़गार प्राप्ति होती भी है तो इतनी भी आय प्राप्त नहीं हो पाती जिससे एक सामान्य परिवार का जीवन यापन हो सके।
ऐसे में यह प्रश्न दिमाग में प्रजनित होना लाजमीं है कि कम से कम पत्रकारों की सामान्य मासिक आय के मानदंड निश्चित होने की अपरिहार्यता है जिससे पत्रकार किसी भी समाचार समूह में अपने कर्तव्य का समग्रता से स्वतंत्रतापूर्वक यथोचित पालन कर सकें।