सोरायसिस का रामबाण इलाज है घृतकुमारी, निशान से भी मिलता है छुटकारा

By SHUBHAM SHARMA

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सर्दियों में सोरायसिस नामक रोग के मामले कुछ ज्यादा ही बढ़ जाते हैं। सोरायसिस एक वंशानुगत बीमारी है लेकिन यह कई अन्य कारणों से भी हो सकता है। आयुर्वेद के अनुसार, सोरायसिस एक गैर-संक्रामक त्वचा रोग है। इसमें शरीर में वात व पित्त की अधिकता के कारण त्वचा के टिश्यूज में विषैले तत्व फैल जाते हैं, जो सोरायसिस की समस्या पैदा करते हैं। जिन लोगों को सोरायसिस होता उन्हें त्वचा में जलन, खुजली, त्वचा का लाल पड़ना और सूजन जैसे लक्षण दिखते हैं।

कैसे होता है सोरायसिस

हमारे शरीर में दिन-प्रतिदिन बदलाव होते रहते हैं जिनमें से अधिकांश का हमें अंदाजा भी नहीं होता। जैसे हमारे, नाखून, बाल इत्यादि बढ़ते हैं ठीक वैसे ही हमारी त्वचा में भी परिवर्तन होता है। जब हमारे शरीर में पूरी नयी त्वचा बनती है, तो उस दौरान शरीर के एक हिस्से में नई त्वचा 3-4 दिन में ही बदल जाती है। यानी सोरायसिस के दौरान त्वचा इतनी कमजोर और हल्की पड़ जाती है कि यह पूरी बनने से पहले ही खराब हो जाती है। इस कारण सोरायसिस की जगह पर लाल चकते और रक्त की बूंदे दिखाई पड़ने लगती है। हालांकि सोरायसिस कोई छूत की बीमारी नहीं हैं और ये ज्यादातर पौष्टिक आहार ना लेने की वजह से होती है।

यदि आपके खानपान में पौष्टिक तत्वों की कमी है और आप घी-तेल भी बिल्कुल ना के बराबर खाते हैं तो आपको यह रोग हो सकता है। सोरायसिस त्वचा पर मॉश्चराइजर ना लगाने, त्वचा को चिकनाहट और पर्याप्त नमी ना मिलने के कारण भी होता है। त्वचा की देखभाल ना करना, बहुत अधिक तेज धूप में बाहर रहना, सुबह की हल्की धूप का सेवन न कर पाना इत्यादि कारणों से सोरायसिस की समस्या होने लगती हैं। सोरायसिस के उपचार के लिए कुछ दवाईयां का सेवन किया जा सकता है लेकिन इससे निजात पाने के लिए आपको त्वचा की सही तरह से देखभाल करना जरूरी है।

क्या हैं सोरायसिस के कारण

  • सोरायसिस होने का कारण आनुवांशिक भी हो सकता है।
  • यदि माता-पिता दोनों इससे ग्रस्त हैं, तो बच्चे को भी सोरायसिस होने की संभावना 60 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।
  • इसके अलावा प्राकृतिक वेगों (मल व पेशाब) को कई बार रोकना भी कालांतर में इस रोग का कारण बन सकता है।
  • इसी प्रकार मसालेदार, तैलीय, चिकनाईयुक्त व जंक फूड्स खाने, चाय काफी और शराब का सेवन व धूम्रपान भी सोरायसिस के कारण बन सकते हैं।

सोरायसिस के लिए बचाव

  • स्व-चिकित्सा (सेल्फ मेडिकेशन) से दूर रहें। अनुभवी आयुर्वेद चिकित्सक से परामर्श लेने के बाद ही उपचार शुरू करें।
  • पानी में साबुत अखरोट उबालकर और इसे हल्का ठंडाकर त्वचा के प्रभावित अंगों पर लगाएं। प्रभावित अंग को ताजे केले के पत्ते से ढक दें।
  • 15 से 20 तिल के दाने एक गिलास पानी में भिगोकर पूरी रात रखें। सुबह खाली पेट इनका सेवन करें।
  • पांच से छह महीने तक प्रात: 1 से 2 कप करेले का रस पिएं। यदि यह रस अत्यधिक कड़वा लगे, तो एक बड़ी चम्मच नींबू का रस इसमें डाल सकते हैं।
  • खीरे का रस, गुलाब जल व नींबू के रस को समान मात्रा में मिलाएं। त्वचा को धोने के बाद इसे रातभर के लिए लगाएं।
  • आधा चम्मच हल्दी चूर्ण को पानी के साथ दिन में दो बार लें।
  • घृतकुमारी का ताजा गूदा त्वचा पर लगाया जा सकता है या इस गूदे का प्रतिदिन एक चम्मच दिन में दो बार सेवन करें।
  • यदि आपको उपर्युक्त उपचार विधियों से राहत नहीं मिलती है, तो आयुर्वेद चिकित्सक से सलाह अवश्य लें। आयुर्वेद चिकित्सा के माध्यम से सर्वप्रथम रक्त व टिश्यूज की शुद्धि की जाती है। फिर यह पद्धति पाचन तंत्र को मजबूत कर त्वचा के टिश्यूज को सशक्त करती है।
  • सुबह टहलें और नियमित रूप से पेट साफ रखें।

SHUBHAM SHARMA

Shubham Sharma is an Indian Journalist and Media personality. He is the Director of the Khabar Arena Media & Network Private Limited , an Indian media conglomerate, and founded Khabar Satta News Website in 2017.

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