बीबीसी, हिण्डनबर्ग व जॉर्ज सोरोस के बाद अब क्या?

By SHUBHAM SHARMA

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– राकेश सैन – एक जुलाई, 2021 को ‘न्यूयार्क टाइम्स’ ने दक्षिण एशिया व्यवसायी संवाददाताओं के लिए आवेदन मांगे। इसके लिए शर्तों में लिखा कि अभ्यर्थी ऐसा हो जो भारत सरकार के विरुद्ध लिखे और वहां सत्ता परिवर्तन में योगदान दे। विदेशी मीडिया के एक वर्ग में मोदी, भारत और हिन्दू विरोध का यह छोटा सा उदाहरण है।

इसी साल के आरम्भ में कुछ चिन्तकों ने आशंका जताई कि 2023 चुनावी वर्ष है और इसमें कई तरह के षड्यन्त्र सामने आ सकते हैं।

चेतावनी के एक-डेढ़ माह के भीतर ही जिस क्रम से बीबीसी लन्दन की गुजरात दंगों पर दस्तावेजी फिल्म, उद्योगपति गौतम अडानी पर हिण्डनबर्ग की रिपोर्ट और भारत में सत्ता परिवर्तन को लेकर अमेरिकी अरबपति जार्ज सोरोस की योजना सामने आई, उससे अब प्रश्न पूछा जाने लगा है कि इन तीनों के बाद, अब आगे क्या?

गत सप्ताह ‘द सण्डे गार्जियन’ समाचार पत्र में प्रकाशित रिपोर्ट में दावा किया गया है कि प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी को हटाने, चुनावों में सत्ता परिवर्तन को लेकर कुछ देसी-विदेशी शक्तियां पिछले तीन महीनों में लन्दन से लेकर दिल्ली तक अलग-अलग बैठकें कर चुकी हैं।

बैठकों में जिन मुद्दों पर चर्चा हुई उनमें मोदी सरकार की कमजोरियों को सामने लाना, सरकार के विरुद्ध नकारात्मक विमर्श गढऩा, चुनाव से छह माह पहले सरकार के खिलाफ बड़ा अभियान चलाना शामिल हैं। रिपोर्ट अनुसार, इसमें मीडिया,सूचना तकनॉलोजी विशेषज्ञों, अभियानवादियों को साथ लेने, ऑनलाइन व पारम्परिक शैली से काम करने की जरूरत पर जोर दिया गया। रिपोर्ट का दावा है कि इसके लिए भारतीय मूल के लोगों और अन्य विदेशी संगठनों की तरफ से कोष उपलब्ध कराया जा रहा है।

सजग होने की बात है कि अब इस तरह के घटनाक्रम भी सामने आ रहे हैं, जो उक्त आशंका को बल प्रदान करते हैं। हाल ही में बीबीसी ने दो धारावाहिकों की एक दस्तावेजी फिल्म बनाई, इसमें साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान वहां के मुख्यमन्त्री के रूप में प्रधानमन्त्री मोदी के कार्यकाल पर निशाना साधा, जबकि वास्तविकता ये है कि लाख कोशिशों के बावजूद देश की न्यायिक प्रणाली उन्हें दोषमुक्त कर चुकी है।

दूसरे प्रकरण में अडानी समूह के खिलाफ हिण्डनबर्ग रिपोर्ट आई। पिछले कुछ सालों में अडानी समूह ने देश-विदेश में अपना प्रभाव जमाया और वैश्विक विस्तार अभियान को आगे बढ़ाया। यह समूह भारत की पहचान को दिनो-दिन और सुदृढ़ करने में आगे बढ़ रहा था। उस पर एक अमेरिकी कम्पनी हिण्डनबर्ग की रिपोर्ट आई और अडानी समूह की चूलें हिल गईं।

हाल के कुछ वर्षों सें दुनिया में जिस गति से भारत विरोधी विमर्श को फैलाया जा रहा है उसी की शृंखला के रूप में इस रिपोर्ट को देखा जा रहा है। तभी तो अमेरिका के वालस्ट्रीट जनरल ने इस प्रकरण पर अपनी रिपोर्ट में लिखा-हिण्डनबर्ग ने ‘हिन्दू राष्ट्रवादी प्रधानमन्त्री’ के आर्थिक विकास के गुजरात मॉडल से भरोसा हिला दिया है और ‘यह भारतीय उद्योग-जगत के बारे में बहुत कुछ कहता है।’ तीसरा सन्दिग्ध चरित्र के अमेरिकी अरबपती जॉर्ज सोरोस की भारत में सत्ता परिवर्तन की योजना सामने आना अपने आप में बहुत कुछ कहता है।

वर्तमान में भारत अपनी संस्कृति, विज्ञान और टेक्नोलॉजी के साथ जिस तरह से आगे बढ़ रहा है उससे कुछ शक्तियों को पेचिश होना स्वभाविक है। दुनिया की महाशक्तियों को लग रहा है कि आज का भारत उनकी हां में हां नहीं मिला रहा।

अमेरिका से हथियार खरीदने की जगह भारत ने रूस को चुना। आज भारत की डिजीटल भुगतान प्रणाली दुनिया में धूम मचा रही है। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो अब तक लगभग 8 लाख करोड़ रुपये की नशीली दवाएं नष्ट कर चुका है तो परावर्तन निदेशालय भ्रष्ट लोगों से 1.2 लाख करोड़ रुपये का काला धन जब्त कर चुका है।

भारत ने फाइजर और मॉडर्न से कोरोना वैक्सीन आयात नहीं की बल्कि स्वदेशी टीके विकसित कर विदेशी कम्पनियों के व्यवसायिक एकाधिकार को चुनौती दी।  

भारत ने हथियार सौदागरों से खरीददारी बन्द कर सीधे फ्रांस से राफेल खरीदे। भारत में रक्षा उपकरण बनाने शुरू हुए और अब हमारा देश शस्त्र निर्यातक देशों में शामिल हो चुका है। प्रधानमन्त्री मोदी ने मध्य पूर्व से महंगा तेल खरीदना बन्द कर रूस से भारी मात्रा में सस्ती दर पर खरीदना शुरू कर दिया।

वर्तमान भारत की और भी अनेक विशेषताएं हैं जिन सभी का वर्णन कुछ कालमों में सम्भव नहीं। वर्तमान में देश में जिहादी, खालिस्तानी, नक्सली आतंक या तो अन्तिम सांसें ले रहा है, या कहीं सिर उठाने की कोशिश होती है तो उसको सख्ती से कुचला जा रहा है। ऐसे में विदेशी शक्तियों का 2024 के चुनावों में भारत व मोदी विरोध में सक्रिय होना कोई अनहोनी नहीं है।

तस्वीर का दूसरा पक्ष यह भी है कि, उक्त तथ्यों के आधार पर इन चुनावों में भाजपा के नेतृत्व में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठजोड़ सरकार, प्रधानमन्त्री व सहयोगियों को जनता से जुड़े मुद्दों पर बच कर निकल जाने की सुविधा भी नहीं दी जा सकती।

गरीबी, रोजगार, उच्च शिक्षा, शिक्षा के ढांचागत विकास, प्रतिभा पलायन, कृषि-किसान, स्वास्थ्य, प्रशासनिक भ्रष्टाचार, कुपोषण, अधूरी परियोजनाओं आदि अनेक विषय ऐसे यक्ष प्रश्न हैं जिनका उत्तर दिए बिना आगे नहीं बढ़ा जा सकता। इन चुनावों में जनता को अपने अनुभव,अपेक्षाओं, सरकार के कार्यों, नीतियों से सम्बन्धित विषयों पर निष्पक्ष हो मन्थन करना होगा।

सरकार की उपलब्धियों व असफलताओं को अपनी बुद्धि की कसौटी पर कसना होगा। सत्ताधीशों व विपक्ष से हर तरह के प्रश्न करने होंगे। अपने विवेक अनुसार किसी को सिंहासन या विपक्ष  में बैठाने का निर्णय लेना होगा परन्तु यह काम देश की जनता को करना है, षड्यन्त्रकारी शक्तियों को नहीं।

भारत का राजनीतिक भविष्य भारतीय तय करेंगे दूसरा कोई और नहीं। बीबीसी, हिण्डनबर्ग व जॉर्ज सोरोस जैसे षड्यन्त्रों से सावधान रहते हुए भारतीयों को लोकतान्त्रिक प्रणाली की पहरेदारी करनी होगी।

– राकेश सैन
32, खण्डाला फार्म कालोनी,
ग्राम एवं डाकखाना, लिदड़ां,
जालन्धर।

SHUBHAM SHARMA

Shubham Sharma is an Indian Journalist and Media personality. He is the Director of the Khabar Arena Media & Network Private Limited , an Indian media conglomerate, and founded Khabar Satta News Website in 2017.

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