प्रयागराज: मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में मुस्लिम पक्ष की दलील का विरोध करते हुए हिंदू पक्ष ने मंगलवार को कहा कि वक्फ अधिनियम के प्रावधान उस पर लागू नहीं होंगे, क्योंकि विवादित संपत्ति वक्फ संपत्ति नहीं है।
न्यायालय ने कहा कि यह वाद स्वीकार्य है और इसके अस्वीकार्य होने का निर्णय केवल साक्ष्य प्रस्तुत होने के बाद ही किया जा सकता है। इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन द्वारा मुस्लिम पक्ष द्वारा मुकदमे की स्वीकार्यता के संबंध में दायर आवेदनों पर की जा रही है।
हिंदू पक्ष के वकील राहुल सहाय ने मुस्लिम पक्ष की दलीलों का जवाब देते हुए कहा कि इस मामले में पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के प्रावधान लागू नहीं होंगे। उन्होंने दलील दी कि पूजा स्थल अधिनियम में स्थान या संरचना के धार्मिक चरित्र को परिभाषित नहीं किया गया है।
इसका धार्मिक चरित्र केवल साक्ष्य द्वारा ही तय किया जा सकता है, जिसका निर्णय केवल सिविल न्यायालय द्वारा ही किया जा सकता है। सहाय ने ज्ञानवापी मामले में पारित एक निर्णय भी प्रस्तुत किया जिसमें न्यायालय ने कहा था कि धार्मिक चरित्र का निर्णय केवल सिविल न्यायालय द्वारा ही किया जा सकता है।
हिन्दू पक्ष ने यह भी कहा कि वक्फ अधिनियम, 1995 के प्रावधान उस पर लागू नहीं होंगे, क्योंकि विवादित संपत्ति वक्फ संपत्ति नहीं है। विवादित संपत्ति एक मंदिर थी और उस पर बलपूर्वक कब्जा करने के बाद, उन्होंने (मुसलमानों ने) नमाज अदा करना शुरू कर दिया।
लेकिन इस तरह से भूमि का चरित्र नहीं बदला जा सकता, ऐसा तर्क दिया गया। आगे दलील दी गई कि चूंकि विचाराधीन संपत्ति वक्फ संपत्ति नहीं है, इसलिए इस अदालत को मामले की सुनवाई करने का अधिकार है।
कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में बुधवार को भी सुनवाई जारी रहेगी। मुस्लिम पक्ष बाद में हिंदू पक्ष के तर्कों के जवाब में अपना दृष्टिकोण रखेगा।