Seoni News: सिवनी जिले में खाद्य विभाग की कार्यप्रणाली को लेकर समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं। विशेषकर मिठाई की दुकानों से सैंपल कलेक्शन और उसकी जांच रिपोर्ट को लेकर जनता और व्यापारियों के बीच गहरी असंतुष्टि का माहौल बनता जा रहा है। हर कुछ दिनों में खाद्य विभाग द्वारा दुकानों से सैंपल एकत्र कर जांच के लिए भेजने की खबरें प्रमुखता से सामने आती हैं, लेकिन उन सैंपल्स की रिपोर्ट का क्या परिणाम आया, यह जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाती है।
खाद्य विभाग का सैंपल कलेक्शन: एक दिखावा?
खाद्य विभाग द्वारा सैंपल कलेक्ट करने की प्रक्रिया को अक्सर समाचारों में प्रचारित किया जाता है। स्थानीय समाचार पत्रों और अन्य मीडिया में उन दुकानों के नाम सार्वजनिक किए जाते हैं, जहां से सैंपल एकत्र किए गए होते हैं। इससे आम जनता में उन दुकानों के प्रति शंका उत्पन्न होती है, जैसे कि कहीं उन दुकानों में कुछ गड़बड़ी तो नहीं है। ऐसे में ग्राहक इन दुकानों से सामान खरीदने में हिचकिचाते हैं, जिससे व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
लेकिन सवाल उठता है कि जब सैंपल कलेक्ट करने के समय दुकान का नाम सार्वजनिक किया जाता है, तो सैंपल की जांच के बाद आने वाली रिपोर्ट क्यों नहीं सार्वजनिक की जाती? आखिरकार, यदि कोई दुकान दोषमुक्त है तो उसकी प्रतिष्ठा बहाल करने का भी अधिकार है।
रिपोर्ट सार्वजनिक क्यों नहीं की जाती?
नाम उजागर ना करने की बात कहते हुए कई दुकानदारों ने बताया कि खाद्य विभाग जानबूझकर जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं करता। उनके अनुसार, अगर सैंपल में कोई गड़बड़ी नहीं भी मिलती, तो भी रिपोर्ट को छुपा लिया जाता है। इस कारण से उन दुकानदारों पर हमेशा संदेह की तलवार लटकी रहती है। इससे उनके व्यवसाय पर असर पड़ता है क्योंकि ग्राहक उनकी दुकानों से दूरी बनाते हैं।
कई व्यापारियों ने यह भी आरोप लगाया कि सैंपल कलेक्ट करने के समय यदि “जेब गर्म” कर दी जाए या समय पर “लिफाफा” पहुंचा दिया जाए, तो उस दुकान का नाम या तो सार्वजनिक नहीं किया जाता या फिर रिपोर्ट में गड़बड़ी नहीं दिखाई जाती। इसका सीधा मतलब यह है कि जिन दुकानों के मालिक समय पर “सुविधा शुल्क” दे देते हैं, उनकी रिपोर्ट को नजरअंदाज किया जाता है और जिनके पास इसका साधन नहीं है, उन्हें निशाना बनाया जाता है।
सिवनी के व्यापारियों की मांग: रिपोर्ट सार्वजनिक होनी चाहिए
सिवनी के मिठाई व्यापारियों का कहना है कि खाद्य विभाग को सैंपल कलेक्शन के बाद जांच रिपोर्ट को भी उतनी ही प्रमुखता से सार्वजनिक करना चाहिए, जितनी प्रमुखता से सैंपल कलेक्ट करने की खबर को दी जाती है। उनका मानना है कि इससे व्यापारियों पर लग रहे बेबुनियाद आरोपों का निवारण होगा और ग्राहकों के मन में उठ रही भ्रांतियों का समाधान होगा।
व्यापारियों का यह भी कहना है कि यदि जांच में उनकी दुकान को दोषमुक्त पाया जाता है, तो यह जानकारी भी समाचार पत्रों में प्रकाशित होनी चाहिए ताकि उनकी साख पर लगे दाग साफ हो सकें।
नाम छुपाने की मजबूरी: व्यापारियों में डर का माहौल
कई व्यापारियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि खाद्य विभाग के अधिकारी उनसे “विशेष सुविधा” की मांग करते हैं। यदि कोई व्यापारी इस मांग को पूरा नहीं करता, तो उसके सैंपल में गड़बड़ी बता दी जाती है, चाहे सैंपल सही हो या गलत। इस कारण कई व्यापारी खुलकर अपने विचार व्यक्त करने से भी डरते हैं। उनका मानना है कि यदि उन्होंने खाद्य विभाग के खिलाफ कुछ भी बोला, तो उनकी दुकान पर फर्जी केस डाल दिए जाएंगे।
एक दुकानदार ने कहा, “हमारा नाम मत लिखना, वरना हमारे सैंपल में गड़बड़ी बताकर मामला बना देंगे।”
बुधवारी बाजार का मामला: बड़े दुकानदार क्यों बच जाते हैं?
सिवनी के बुधवारी बाजार में स्थित कई बड़े मिष्ठान विक्रेताओं का नाम सैंपल कलेक्शन के समय बहुत ही कम आता है। व्यापारियों का आरोप है कि ये बड़े विक्रेता समय-समय पर खाद्य विभाग को “लिफाफा” भेजते रहते हैं, जिस कारण उनके सैंपल जांच के लिए नहीं भेजे जाते या फिर भेजे जाने के बाद भी उनका नाम सार्वजनिक नहीं किया जाता।
छोटे व्यापारियों का कहना है कि खाद्य विभाग इन बड़े दुकानदारों के साथ मिलकर एक साठगांठ करता है, जिससे उन्हें अनदेखा किया जाता है और छोटे व्यापारियों को निशाना बनाया जाता है।
खाद्य विभाग की पारदर्शिता पर उठते सवाल
इस पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल खाद्य विभाग की पारदर्शिता पर उठता है। यदि सैंपल कलेक्शन के समय सबकुछ पारदर्शी होता है, तो जांच के बाद की रिपोर्ट क्यों छिपाई जाती है? जनता और व्यापारियों को यह जानने का पूरा हक है कि सिवनी में खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता का स्तर क्या है और कौन सी दुकानें इस मानक पर खरी उतरती हैं।
व्यापारियों का यह भी मानना है कि जब तक खाद्य विभाग अपनी कार्यप्रणाली में पारदर्शिता नहीं लाता, तब तक उनके ऊपर लगने वाले भ्रष्टाचार के आरोपों से वे बच नहीं पाएंगे।
सिवनी के खाद्य विभाग की यह पूरी प्रक्रिया संदेहास्पद है। सैंपल कलेक्ट करने की खबरें जितनी जोर-शोर से प्रचारित की जाती हैं, उतनी ही जोर-शोर से जांच की रिपोर्ट को भी प्रकाशित किया जाना चाहिए। इससे न केवल व्यापारियों की साख बची रहेगी, बल्कि ग्राहकों का विश्वास भी बना रहेगा।
यदि खाद्य विभाग वास्तव में पारदर्शी और निष्पक्ष है, तो उसे सैंपल कलेक्शन के बाद जांच की रिपोर्ट को भी सार्वजनिक करने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।