विशेष रिपोर्ट | सिवनी, बरघाट, धारनाकला (एस.शुक्ला)- धान खरीदी व्यवस्था, जो किसानों और मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए बनाई गई थी, आज उसी व्यवस्था में खुलेआम मनमानी, भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी का खेल खेला जा रहा है। धारणाकला क्षेत्र के धान खरीदी केन्द्रों पर जो हालात सामने आ रहे हैं, वे न सिर्फ चौंकाने वाले हैं बल्कि शासन-प्रशासन की कार्यप्रणाली पर भी बड़े सवाल खड़े करते हैं।
घर से ही तैयार होकर आ रही धान की बोरियां
धान खरीदी केन्द्रों पर नियमों को ताक पर रखकर ऐसा तंत्र खड़ा कर दिया गया है, जिसमें खरीदी केन्द्रों से खाली बारदाने सीधे किसानों के घरों तक पहुंचाए जा रहे हैं। वहीं, किसान घर से ही धान भरकर बोरियां तैयार कर रहे हैं और वही बोरियां सीधे खरीदी प्रांगण में लाकर खड़ी कर दी जा रही हैं।
इस पूरे खेल में न तो धान खरीदी केन्द्र के प्रांगण में गिराई जा रही है और न ही वहां मौजूद हम्माल व मजदूरों से तौल और भराई का काम कराया जा रहा है। परिणामस्वरूप, पूरा खरीदी तंत्र केवल कागजों और पोर्टल पर सिमटकर रह गया है।
धान खरीदी पोर्टल पर आंकड़े बढ़ाने की होड़
जानकारों के अनुसार यह पूरा खेल धान खरीदी पोर्टल पर खरीदी की मात्रा और कमीशन राशि बढ़ाने के उद्देश्य से किया जा रहा है। प्रशासन की आंखों के सामने, दिनदहाड़े धान का यह काला बाजार फल-फूल रहा है। हैरानी की बात यह है कि यह गोरखधंधा न तो रात के अंधेरे में हो रहा है और न ही चोरी-छिपे, बल्कि खुलेआम संचालित किया जा रहा है।
महिला स्व सहायता समूह भी विवादों में
महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से सहकारी समितियों के साथ-साथ महिला स्व सहायता समूहों को भी धान उपार्जन कार्य से जोड़ा गया था। बीते तीन-चार वर्षों से ये समूह इस व्यवस्था का हिस्सा हैं।
लेकिन कमीशन बढ़ाने की लालच में कुछ महिला स्व सहायता समूहों से जुड़े दलाल और ठेकेदार ही धान खरीदी में काला बाजारी को बढ़ावा दे रहे हैं। यह कोई नई बात नहीं है—पिछले सत्र में भी घर-घर बोरियां बांटने का खेल जमकर चला था, जो इस सत्र में और भी बेखौफ तरीके से जारी है।
हम्माल मजदूरों के हक पर खुला डाका
धान खरीदी केन्द्रों पर आमतौर पर 50 के करीब मजदूर, हम्माल और महिलाएं कार्यरत रहती हैं, जिन्हें धान की तुलाई और भराई का काम मिलता है। लेकिन जब धान पहले से भरी बोरियों में सीधे केन्द्रों तक पहुंचाई जाती है, तो इन मजदूरों को काम ही नहीं मिलता।
इतना ही नहीं, धान खरीदी के नाम पर मिलने वाली प्रशासनिक व्यय राशि भी कथित तौर पर हजम की जा रही है। यानी एक ओर मजदूरों का रोजगार छीना जा रहा है, वहीं दूसरी ओर सरकारी धन का भी दुरुपयोग हो रहा है।
स्लॉट बुकिंग बना भ्रष्टाचार का नया हथियार
किसानों की सुविधा के लिए शासन द्वारा स्लॉट बुकिंग प्रणाली लागू की गई थी, ताकि किसान आसानी से नजदीकी धान खरीदी केन्द्र में अपनी उपज बेच सकें। लेकिन अब यही व्यवस्था व्यापारियों और दलालों के लिए हथियार बन गई है।
कई मामलों में किसानों के नाम से पंजीकृत धान समीपी केन्द्रों के बजाय दूर-दराज के केन्द्रों में बेची जा रही है। वजह साफ है—वहीं केन्द्र ज्यादा चुने जा रहे हैं, जहां घर-घर खाली बारदाने देने की सुविधा उपलब्ध है। इसका सीधा असर आसपास के ईमानदार खरीदी केन्द्रों पर पड़ रहा है।
आंकड़ों का खेल और नियमों की अनदेखी
यही वजह है कि जिन धान खरीदी केन्द्रों पर कभी 40–50 हजार क्विंटल से ज्यादा खरीदी नहीं हुई, वे अब 80 हजार से 1 लाख क्विंटल तक के आंकड़े पार कर रहे हैं। नियमों की खुलेआम अनदेखी कर औसत और कमीशन बढ़ाने का खेल खेला जा रहा है, जो पूरे सिस्टम को खोखला कर रहा है।
प्रशासन का पक्ष
इस पूरे मामले पर प्रशासनिक अधिकारियों ने सख्त कार्रवाई के संकेत दिए हैं।
“यदि इस तरह की गतिविधियां धान खरीदी केन्द्रों पर हो रही हैं, तो जांच कर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।” — अंजली शाह, जिला पंचायत सीईओ
“अगर ऐसी अनियमितताएं पाई जाती हैं, तो जांच के बाद एफआईआर की कार्रवाई भी की जाएगी।” — मनोज पुरबिया, जिला खाद्य अधिकारी, सिवनी
अब सवाल यह है…
क्या धान खरीदी केन्द्रों में चल रहे इस खुले खेल पर वाकई लगाम लगेगी? या फिर मजदूरों, किसानों और शासन—तीनों की आंखों में धूल झोंककर यह काला कारोबार यूं ही चलता रहेगा?

