सिवनी, बरघाट:धारनाकला से गगेरूआ रोड में स्थित आष्टा का माता काली का मंदिर आस्था और विश्वास का केंद्र है। यहाँ दूर-दूर से हजारों की तादाद में श्रद्धालु अपनी मन्नत लेकर आते हैं और उनकी मन्नतें भी माता काली के प्रताप से पूर्ण होती हैं। तथा माता काली भक्तों के कष्टों का हरण भी करती है।
दोनों नवरात्रियों में प्रज्वलित होते हैं हजारों कलश
आष्टा के ऐतिहासिक माता काली के दरबार में वर्ष के दोनों नवरात्रि पर्व भक्तों द्वारा हजारों की तादाद में कलश प्रज्वलित किए जाते हैं। और पूरे नौ दिन मां के दरबार में अखंड ज्योति का प्रकाश जगमगाता रहता है। साथ ही ग्रामीण मान्यता के तहत खप्पर भी स्थापित किए जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि पर्व पर भक्त अपनी मन्नत पूरी होने पर कलश स्थापित करते हैं और मां का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि आष्टा के काली मां के दरबार में सिवनी जिले के साथ-साथ अन्य प्रांतों से भी भक्त आस्था के साथ यहाँ दर्शन के लिए हाजिरी लगाते हैं। चैत्र नवरात्रि में मां के दरबार में भक्तों का तांता लगा हुआ है। यही नहीं, आस्था और विश्वास के चलते श्रद्धालु यहाँ नवरात्रि पर्व में नौ दिनों तक निवास करते हुए मां की सेवा में लगे रहते हैं। और यही कारण है कि आष्टा के मां काली के मंदिर की महिमा दूर-दूर तक फैली हुई है।
1651 ज्योति कलशों से जगमगा रहा है मंदिर
आष्टा के काली मां के मंदिर में चैत्र नवरात्रि में 1651 ज्योति कलश भक्तों द्वारा प्रज्वलित किए गए हैं जिनकी देखरेख मंदिर समिति द्वारा की जा रही है। इस संबंध में समिति के प्रमुख पटेल ने बताया कि वर्ष के दोनों नवरात्रि पर्व में मंदिर में भक्तों द्वारा हजारों की तादाद में कलश प्रज्वलित कर जवारे बोये जाते हैं तथा भक्ति-भाव के साथ नौ दिनों तक पूजन-अर्चना कर भक्त मां का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यही नहीं, मां के दरबार में भक्तों की हर मुराद पूरी होती है। यही कारण है कि मां के दरबार में दोनों नवरात्रि पर्व में यहाँ भक्तों का तांता लगा रहता है।
13वीं शताब्दी का है मंदिर का निर्माण
लोक मान्यता के अनुसार आष्टा का मां काली का मंदिर 13वीं सदी में हिमादंपंथी स्थापत्य शैली में बना है जो अपनी अनूठी शैली के लिए विख्यात है। जिले से 40 किलोमीटर की दूरी तथा धारणाकला से गगेरूआ मार्ग में स्थित माता काली का मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा स्वीकृत है। यह मंदिर आस्था का केंद्र है और नवरात्रि में जिला ही नहीं, संभाग तथा देश भर से श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
एक ही रात में हुआ है मंदिर का निर्माण
जनश्रुति के मुताबिक आष्टा के मां काली के मंदिर का निर्माण एक रात में ही हुआ है। कहा जाता है कि देवी मां की कृपा से बड़े-बड़े पत्थरों से विशाल मंदिर रात में स्वतः तैयार हो रहा था। लेकिन इसी दौरान मंदिर पर लोगों की नजर पड़ गई और मुर्गे की बागं पड़ जाने से मंदिर का काम अधूरा रह गया। बड़े-बड़े पत्थर की शिला आज भी मंदिर के आसपास बिखरी हुई है।
आठ मंदिरों के कारण पड़ा है आष्टा नाम
इतिहासकारों तथा जनमान्यता के अनुसार 13वीं सदी में विदर्भ के देवगिरी यादव राजाओं का राज्य यहाँ तक फैला हुआ था। यादव राजा महादेव व रामचंद्र के मंत्री हिमाद्री ने यहाँ आठ मंदिरों का निर्माण वास्तुकला की एक विशेष शैली से कराया था। आठ स्थानों पर मंदिर का निर्माण होने के कारण बाद में इस गाँव का नाम आष्टा पड़ गया। इनमें से अधिकांश मंदिर ध्वस्त हो गए हैं जिनकी मरम्मत तथा जीर्णोद्धार का कार्य वर्तमान में प्रगति पर है।
पुरातत्व विभाग के प्रभारी तपन विश्वास के अनुसार बचे हुए मंदिरों को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण सरिक्षतं रखने का प्रयास किया जा रहा है। वर्तमान में मां के दरबार में दो मंदिर तथा एक मंडप मौजूद हैं। मंदिर के गर्भगृह में मूर्ति नहीं है। मंदिर की पिछली दीवार से मिली हुई उत्तर मुखी मां काली की पाषाण मूर्ति स्थापित है। तथा मंदिर के चौकोर पत्थरों की जुड़ाई लोहे व शीशे की छड़ों से हुई है। पत्थरों को एक के ऊपर एक रखकर लोहे के शिकंजे से कसा गया है ताकि उनका भार संतुलित रहे। जिससे मंदिर अत्यंत भव्य एवं दर्शनीय हो गया है।
प्रतिमा स्थापना है वर्जित
आष्टा के ऐतिहासिक मां काली के दरबार के गाँव आष्टा में दोनों नवरात्रि पर्व में किसी भी स्थान अथवा निजी तौर पर घरों में तक प्रतिमा स्थापना नहीं होती है। यहाँ के बुजुर्ग बताते हैं कि वर्षों पूर्व यहाँ प्रतिमा स्थापना का प्रयास किया गया था। किन्तु प्रतिमा खंडित हो गई तथा कुछ ऐसी घटनाएँ घटीं जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती। तब से आष्टा में नवरात्रि पर्व में प्रतिमा स्थापित नहीं की जाती। सभी गाँव के भक्त मां काली के दरबार में पूजन-अर्चना वर्षों से करते चले आ रहे हैं।