क्या आप जानते है शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद क्या कर है

By SHUBHAM SHARMA

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एक सपना

दिसंबर 2018 मध्य प्रदेश के भोपाल का 74 बंगले इलाका. बी-8 में एक नेता एक सपना देख रहा है. माहिष्मती के राज्य से महेंद्र बाहुबली को निकाल दिया गया है और वो प्रजा के बीच जा चुका है, भल्लाल देव राज्य पर राज कर रहा है, पदच्युत बाहुबली को जनता हाथोंहाथ स्वीकार करती है, वो अपनी समानांतर सत्ता स्थापित करता है, सबका भला करता है, कामगारों के बीच शिला पर बैठे पंचायत करते महेंद्र को देख जलने वाले कहते हैं. ‘ये जहां भी रहेगा महाराज बनकर रहेगा.’ सपना टूट जाता है, एक नए सपने की शुरुआत होती है.

यात्रा 

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, मध्य प्रदेश में आभार यात्रा निकालना चाहते हैं. प्रदेश के पूरे 52 जिलों में, शिवराज अपनी यात्राओं के लिए चर्चित रहे हैं, नर्मदा यात्रा, जनआशीर्वाद यात्रा, जनादेश यात्रा. किस भी शब्द के आगे यात्रा लगा दीजिए, शिवराज उस पर निकल जाते थे. लेकिन अभी की यात्रा मध्य प्रदेश के नागरिकों और अपने समर्थकों का आभार प्रकट करने के लिए है. दिखाना चाहते हैं कि सीएम की कुर्सी गई तो क्या? मामा तो अब भी हैं. लेकिन इस यात्रा का विरोध हो रहा है, वैसा विरोध नहीं जैसा अमित शाह की रथयात्रा का पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी कर रही हैं, ये विरोध भाजपा के अंदर से हो रहा है. कहा जा रहा है कि जब चुनाव जीते ही नहीं तो काहे का आभार. काहे की यात्रा. जवाब शिवराज के पास है. यात्रा चाहे जब शुरू हो, शिवराज पहले ही अलग रास्ते पर बढ़ चुके हैं.

कहावत

इंग्लिश में एक बड़ी बुरी चीज होती है. Buyer’s remorse, इसका मतलब ख़रीदार का पछतावा, इंसान जिस चीज को खरीदने के लिए पगलाया रहता है, एक बार खरीद ले तो उसे पछतावा होने लगता है. ये सोच हावी हो जाती है कि सही चीज खरीदी है या नहीं. इससे सस्ती या इससे बेहतर चीज मिल जाती, कई बार ये ख़याल तक आता है कि जो चीज खरीदी, वो लेनी भी चाहिए थी या नहीं? कई बार ये चुनाव के बाद भी होता है. हम इसकी बात क्यों कर रहे हैं, ये जानने से पहले बघेली की एक उखान जान लें. ‘ दादू के मरे के नहीं, शनीचर के लहटे के दुक्ख है’. ये दादू शिवराज सिंह चौहान की सरकार थी. दादू मर चुके हैं, लहट कर कांग्रेस सरकार आई है. ये तथ्य नहीं है, ये वही Remorse है जो शिवराज सिंह चौहान पैदा करना चाहते हैं.

वो दिखाना चाहते हैं, मुख्यमंत्री कोई हों. ‘मामा’ वही हैं. वो हार के बाद थक नहीं गए हैं, गुम नहीं गए हैं. हाशिए पर नहीं चले गए हैं. वो एमपी में हैं और भरपूर चर्चा में हैं. आम सोच ये है कि चुनावों में हारने वाला दुखी होता है, सच ये है कि असल मज़े वही करता है. जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाता है, चार-छ: महीने तो नज़र ही नहीं आता. शिवराज ऐसा कुछ नहीं कर रहे. कांग्रेस की 114 के मुकाबले भाजपा की 5 सीटें ही कम आई हैं. वो जताना चाहते हैं, माई के लाल मामा से नाराज़ नहीं थे. उनका हारना बस विधायकों के प्रति गुस्सा था, उनकी हार कांग्रेस का तुक्का है, उसी कांग्रेस के लिए वो 52 जिलों के दिलों में गिल्ट पैदा करना चाहते हैं.

बयान 

अब चौकीदारी करने की ज़िम्मेदारी हमारी है, और हम चुप बैठने वालों में से नहीं हैं कि हार गए तो एकाध महीना आराम कर लें. ये तो सीखा ही नहीं है. आज से शुरू. नेता प्रतिपक्ष तो पार्टी तय करेगी, लेकिन फिर भी हम नेता तो रहेंगे भाई.


शिवराज सिंह चौहान, 12 दिसंबर 2018, भोपाल

13 दिसंबर – बीजेपी कार्यालय, भोपाल – शिवराज सिंह चौहान बीजेपी कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों के बीच बैठे थे.
14 दिसंबर – बीजेपी कार्यालय, भोपाल – शिवराज सिंह चौहान, उसी बीजेपी कार्यालय में पत्रकारों के बीच बैठे थे. थोड़ी ही देर बाद वो रफ़ाल डील पर अए फ़ैसले के बाद राहुल गांधी को घेरते नज़र आए.
17 दिसंबर – शिवराज सिंह चौहान की तस्वीरें आती हैं. नई सरकार का शपथ ग्रहण हो रहा है, शिवराज सिंह ने दाईं ओर ज्योतिरादित्य सिंधिया और बाईं ओर कमल नाथ का हाथ लिए हवा में बाहें उठा रखी हैं.
19 दिसंबर – शिवराज सिंह चौहान बुधनी में हैं.
20 दिसंबर – शिवराज भोपाल में हैं, शहडोल और रीवा के विधायकों के साथ. थोड़ी देर बाद जबलपुर के विधायकों से मिलते हैं, फिर पता लगता है शिवराज बीना जा रहे हैं, सोशल मीडिया पर लोगों के अकाउंट पर शिवराज सिंह चौहान की तस्वीरें भरी जा रही हैं. पता चला शिवराज सिंह चौहान ट्रेन से बीना जा रहे हैं. शाम तक बीना से तस्वीरें आने लगती हैं, शिवराज सिंह चौहान एक दोस्त की बेटी की शादी में जा पहुंचे हैं. रात को वापस ट्रेन से भोपाल लौटते हैं.
21 दिसंबर – शिवराज मंडीदीप में नज़र आते हैं. फिर होशंगाबाद में मातमपुर्सी में पहुंच जाते हैं. थोड़े समय में सिवनी-मालवा और फिर हरदा में नजर आते हैं.
22 दिसंबर – शिवराज भोपाल के रैनबसेरे में रहने वालों से मिलते हैं.
23 दिसंबर – शिवराज नज़र आते हैं, सीहोर में. सुरई गांव में मोटरसाइकिल की सवारी करते गांववालों से मिल रहे होते हैं. एक गांव पर नहीं रुक जाते एक के बाद एक कई गांव खजुरी, आमडोह, ढाबा, आमझीर, बिलपाटी, बनियागांव, अमीरगंज, सिराली, बीलाखेड़ी आप नाम लेते जाओ शिवराज सिंह चौहान हर गांव में पहुंच रहे हैं. रास्ते में कहीं मिल गए तो बच्चों के जन्मदिन का केक खा रहे हैं.

मुख्यमंत्री से ज़्यादा एक्टिव हैं शिवराज सिंह चौहान
आंकड़ों में देखिए, बात समझ आएगी. हार के बाद शिवराज सिंह चौहान ये पंक्तियां लिखे जाने तक कुल 148 ट्वीट-रिट्वीट कर चुके हैं. इसकी तुलना अगर कमल नाथ के ट्विटर अकाउंट से करें तो वहां नतीजों के साफ़ होने के बाद महज़ 30 ट्वीट-रिट्वीट किए गए हैं. इतने ट्वीट तो शिवराज सिंह ने अकेले 12 दिसंबर को कर डाले थे. जबकि उसके पहले उनका ट्विटर अकाउंट इतना सक्रिय नहीं था, काउंटिंग के दिन यानी 11 दिसंबर को वहां सिर्फ एक ट्वीट नज़र आया था. 13 तारीख को शिवराज सिंह चौहान की तरफ से आए ट्वीट्स की संख्या 14 थी. इन आंकड़ों को अगर आप रमन सिंह या वसुंधरा राजे सिंधिया के ट्वीट्स की संख्या से कंपेयर करें तो बात और साफ़ हो जाती है. हार के बाद जहां रमन सिंह ने अब तक सिर्फ 36 ट्वीट किए हैं, वहीं वसुंधरा के ट्वीट्स की संख्या भी महज़ 54 है.

ये शिवराज खतरनाक लगते हैं

बीजेपी को भी और कांग्रेस को भी. कमल नाथ भले आज मुख्यमंत्री हैं, लेकिन बड़े ताल की तरह गहरा सच ये भी है कि शिवराज आज भी मध्य प्रदेश के सबसे बड़े नेता हैं. कमल नाथ हमेशा शिवराज सिंह चौहान के बाद आए मुख्यमंत्री की तरह देखे जाएंगे. उनकी तुलना होगी और जब नहीं होगी तब शिवराज सारे प्रयास कर डालेंगे कि ऐसी तुलना हो. इस हार के साथ शिवराज पर लगा ‘माई के लाल’ वाला दाग धुला मानिए. जनता इससे ज़्यादा गुस्सा नहीं पालती. शिवराज की वापसी दिग्विजय सिंह जैसे नहीं हुई है. अगर सत्ता से जाने को वनवास की संज्ञा दी जाए तो शिवराज का ये वनवास पॉजिटिव अर्थ लिए होगा न कि दिग्विजय सिंह के राजनैतिक वनवास की तरह. हारे हुए शिवराज ज़्यादा खतरनाक हैं. वो सबसे ज़्यादा समय तक मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री रहे. ये इकलौता तथ्य ही उनके फेवर में जाता है. शिवराज मध्य प्रदेश में तब आए थे. जब मध्य प्रदेश दिग्विजय सिंह के दो शासनकाल और बीजेपी के दो मुख्यमंत्री देख चुका था. अब वो हिसाब मांगने वाले मूड में हैं.

इस सक्रियता से बीजेपी का एक धड़ा भी डरा है. डर भी जायज़ है. क्या हो अगर विधानसभा चुनाव के नतीज़ों का असर 2019 में नज़र आए? क्या हो अगर दौर गठबंधन का आए? क्या हो अगर नरेंद्र मोदी की एक्सेप्टेंस पर सवाल उठें और क्या हो अगर शिवराज सिंह चौहान की प्रेस कांफ्रेंस की बात सही निकल जाए. चौकीदार की ज़िम्मेदारी वो खुद लेना चाहें तो?

SHUBHAM SHARMA

Shubham Sharma is an Indian Journalist and Media personality. He is the Director of the Khabar Arena Media & Network Private Limited , an Indian media conglomerate, and founded Khabar Satta News Website in 2017.

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