सिवनी: कृषि विज्ञान केंद्र सिवनी के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. शेखर सिंह बघेल वैज्ञानिक, डॉ. के. के. देशमुख, डॉ. राजेंद्र सिंह ठाकुर, इंजि. कुमार सोनी द्वारा बरघाट विकासखंड के ग्राम कॉचना में प्रगतिशील किसान अयोध्या प्रसाद भोयर के खेतों का भ्रमण किया गया।
इस दौरान रवी मौसम की धान की किस्म जे. आर 206 एवं सी. आर 314 फसलों के खेतों का भ्रमण किया गया। कृषि वैज्ञानिकों द्वारा धान की खेती की समस्याओं को जाना एवं तकनीकी मार्गदर्शन प्रदान किया गया, कृषि वैज्ञानिकों के दल ने जानकारी देते हुए बताया कि रबी मौसम की धान की फसल इस वक्त पकने की स्थिति में आ चुकी है, ऐसे समय में खेतों में पर्याप्त पानी एवं नमी को बनाए रखना अति आवश्यक है ताकि बालियों में दाना सही आकार में भर सके एवं उत्पादन में कमी ना आए, साथ ही श्री अयोध्या प्रसाद भोयर द्वारा खेती में अतिरिक्त आमदनी के रूप में मछली उत्पादन का कार्य किया जा रहा है।
अतः मछली उत्पादक तालाबों का भ्रमण के दौरान जानकारी देते हुए बताया गया की गर्मी के मौसम में तालाब की साफ सफाई एवं चारों ओर खरपतवार को हटाने की सलाह दी गई साथ ही तालाब के चारों ओर मेड को अच्छी तरीके से बांधकर आगामी समय में बेहतर मछली उत्पादन का कार्य के साथ आगामी सिंगाडा कि फसल का बेहतर उत्पादन लिया जा सके। भ्रमण के दौरान ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी श्री विक्रम सिंह की उपस्थिति रही।
नरवाई न जलाएं, बेहतर प्रबंधन करें
रबी मौसम की फसल की कटाई कंबाइन हार्वेस्टर से करने के परिणाम स्वरूप प्राप्त फसलों के पौधों का जो अवशेष बचता है। इस हेतु कृषि विज्ञान केंद्र सिवनी के कृषि वैज्ञानिकों ने अन्नदाता किसानों से अपील की है कि वह पराली (नरवाई) को माटी के लिए सोना है।
इसका बेहतर प्रबंधन हेतु सलाह दी ताकि फसलों के अवशेष जो धरती माता का आहार हैं। इन्हें कृषि यंत्रों के माध्यम से मिट्टी में मिला सकते हैं। इसके लिए मल्चर, रिवर्सिबल फ्लो, रोटावेटर का उपयोग किया जा सकता है। किसान भाई स्ट्रा चोपर, हे रैक, एवं स्ट्रा बेलर का प्रयोग करके फसल अवशेषों की गांठे-बंडल बनाकर अतिरिक्त आमदनी प्राप्त कर सकते हैं।
साथ ही हमारे किसान भाई सुपर एस. एम. एस. के द्वारा फसल अवशेषों को भूसा के रूप में परिवर्तित कर पशुओं के आहार के लिए एकत्र कर सकते हैं। इसके साथ ही किसान भाई जीरो टिल और सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल, हैप्पी सीडर द्वारा बुवाई कर फसल अवशेष का कारगर प्रबंधन कर सकते हैं। इसके साथ ही फसल अवशेषों को एक स्थान पर एकत्र कर जवाहर जैव विघटक डीकंपोजर का प्रयोग कर बेहतरीन खाद बनाकर जैविक एवं प्राकृतिक खेती की ओर अग्रसर हो सकते हैं